खत्म हो गया कोरोना संकट, लेकिन पीछे छोड़ गया मेंटल ट्रॉमा! सर्वे में सामने आए हैरान करने वाले आंकड़े

कोविड-19 पैंडेमिक ने दुनिया में लाखों लोगों की जान ले ली. इस बीमारी ने भारत सहित दूसरें देशों में लोगों को महीनों तक घर के अंदर रहने पर मजबूर कर दिया. आज भले ही कोविड का खतरा टल गया है, लेकिन एक सर्वे में पता चला है कि कोविड के बाद लोगों की मेंटल हेल्थ प्रभावित हुई है. आइए जानते हैं क्या कहता है सर्वे.

Advertisement
Mental Health Problems Mental Health Problems

सम्राट शर्मा

  • नई दिल्ली,
  • 06 मार्च 2024,
  • अपडेटेड 2:39 PM IST

कोरोना वायरस से उत्पन्न हुए कोविड-19 महामारी ने दुनिया में कई लोगों की जान ले ली. इस बीमारी ने भारत सहित दूसरें देशों में लोगों को महीनों तक घर के अंदर रहने पर मजबूर कर दिया. इसे आधिकारिक तौर पर अंतर्राष्ट्रीय चिंता का सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल घोषित किए जाने के चार साल बाद भी हम इसके बड़े प्रभावों के बारे में नहीं जानते हैं, जिसे डॉक्टर और वैज्ञानिक लॉन्ग कोविड कहते हैं. वहीं इस बीमारी का लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर भी गहरा प्रभाव पड़ा है. 

Sapien लैब द्वारा प्रकाशित Tara Thiagarajan और Jennifer Newson की मेंटल स्टेट की साल 2023 की वैश्विक रिपोर्ट में बताया गया है कि लोगों को लगा था कि कोविड के जाने के बाद लॉकडाउन खुल जाएगा और सब कुछ पहले जैसा हो जाएगा, लेकिन इस महामारी के जाने के बाद भी लोगों की मेंटल हेल्थ में सुधार नहीं हुआ है. 

भारत और विदेशों में लोगों के मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति
71 देशों (भारत में 46,982) में चार लाख से अधिक लोगों के साथ किए गए सर्वेक्षण में पाया गया है कि 30.4 प्रतिशत भारतीय मानसिक रूप से परेशान हैं और खराब मानसिक स्वास्थ्य से जूझ रहे हैं, जबकि वैश्विक स्तर पर यह आंकड़ा 27.1 प्रतिशत है. यूनाइटेड किंगडम, दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील और ऑस्ट्रेलिया में भारत की तुलना में अधिक लोग मानसिक परेशानी से पीड़ित हैं. वहीं इसके विपरीत, कनाडा, अमेरिका, सिंगापुर, फ्रांस, इज़राइल, इटली और श्रीलंका में लोगों का मानसिक स्वास्थ्य बेहतर है. 

Advertisement
लॉकडाउन खत्म होने के तीन साल बाद भी मानसिक रूप से परेशान हैं लोग



प्लास्टिक का इस्तेमाल खतरनाक!
रिपोर्ट में ये तर्क दिया गया है कि महामारी के कारण आए कई बदलाव अभी भी जारी हैं. जैसे कोरोना के बाद प्लास्टिक के उपयोग में वृद्धि हुई है. Surfrider फाउंडेशन की एक रिपोर्ट के अनुसार, प्लास्टिक में पाए जाने वाले Phthalates और अन्य केमिकल इंसान को डिप्रेशन, एंग्जाइटी, ADD, या schizophrenia  जैसी मानसिक बीमारियों का शिकार बना सकते हैं. 

मेंटल हेल्थ पर उम्र और लिंग का प्रभाव
रिपोर्ट में पाया गया कि कम उम्र में स्मार्टफोन का उपयोग करना और अल्ट्रा-प्रोसेस्ड भोजन खाने की वजह से मेंटल हेल्थ प्रोब्लम बढ़ी हैं. इसका सबसे ज्यादा प्रभाव 35 साल के युवाओं पर पड़ा है. जबकि 65 साल से अधिक उम्र वाले लोगों का मानसिक स्वास्थ्य में कोई बदलाव नहीं देखा गया है. 

Advertisement
काम और पढ़ाई मेंटल हेल्थ को कैसे कर रही प्रभावित


भारत में 18-24 वर्ष के आयु वर्ग के आधे से ज्यादा लोग (50.7 प्रतिशत) मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी परेशानियों से जूझ रहे हैं. वहीं 25-34 वर्ष के आयु वर्ग में यह संख्या 42.9 प्रतिशत, 35-44 वर्ष के बीच के लोगों के लिए 28.7 प्रतिशत और 45-54 वर्ष के आयु वर्ग में 17.6 प्रतिशत थी. इसके अलावा 55 वर्ष से ज्यादा की उम्र के लोगों में ये अनुपात काफी कम है. 

लिंग के आधार पर देखें तो पुरुषों की तुलना में महिलाएं मानसिक तनाक का ज्यादा शिकार हैं.  वैश्विक स्तर पर 28.7 प्रतिशत महिलाएं मेंटल हेल्थ की समस्या से जूझ रही हैं. वहीं, पुरुषों की हिस्सेदारी (28.8 प्रतिशत) और वैश्विक औसत 25.5 प्रतिशत से अधिक है. 

पुरुषों से ज्यादा महिलाएं मानसिक तनाव का शिकार



मानसिक स्वास्थ्य पर शिक्षा और प्रोफेशन का प्रभाव
सर्वेक्षण में पाया गया कि शिक्षा और मानसिक स्वास्थ्य में गहरा संबंध है. जितनी हाई एजुकेशन होगी, तनाव उतना ही कम होगा और ठीक इसका विपरीत भी होगा. भारत में प्राथमिक शिक्षा वाले लगभग 48 प्रतिशत लोग मेंटल हेल्थ की समस्या से जूझ रहे हैं, जबकि पीएचडी डिग्री वाले केवल 14.4 प्रतिशत लोग ही ऐसी मानसिक स्थिति में थे. 

वहीं प्रोफेशन के लिहाज से सेवानिवृत्त और गृहिणियों  का मानसिक स्वास्थ्य खराब होने की संभावना सबसे कम थी, जबकि पढ़ाई करने वाले या बेरोजगार लोगों में से 50 प्रतिशत से अधिक लोग मेंटल हेल्थ प्रोब्लम का शिकार हुए हैं. 

---- समाप्त ----

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement