भुवनेश्वर में रहने वाले विवेकानंद आचार्य के बेटे सूरज के टीचर ने अचानक एक दिन उन्हें बताया कि सूरज पीटी के दौरान अपने हाथ ऊपर नहीं उठा पाया. विवेकानंद को थोड़ी चिंता तो हुई, लेकिन उन्हें लगा कि ये कोई मामूली कमजोरी हो सकती है. डॉक्टर को दिखाने पर जो बात सामने आई, उसे सुनकर उनके पैरों तले से जमीन खिसक गई. उसे ‘ड्यूचेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी' (DMD) नाम की लाइलाज बीमारी थी.
एक ऐसी बीमारी, जिसमें मांसपेशियां कमजोर होने लगती हैं और इससे पीड़ित ज्यादातर लोगों की 20 से 30 साल की उम्र तक मौत हो जाती है. तब से लेकर अब तक विवेकानंद और उनका परिवार लगातार एक अनहोनी की आशंका के साथ जी रहा है.
इस बीमारी को लेकर जागरूकता फैलाने के मकसद से शुक्रवार (24 मार्च को) को दिल्ली के जंतर मंतर पर एक रैली निकाली गई. इसमें 21 राज्यों से आए तकरीबन 500 डीएमडी पीड़ित बच्चों के पेरेंट्स भी मौजूद रहे. फिल्म 'सलाम वेंकी' में DMD पीड़ित बच्चे की मां का किरदार निभा चुकीं फिल्म अभिनेत्री काजोल ने भी इस रैली के प्रति अपना समर्थन जाहिर करते हुए इंस्टाग्राम के जरिये लोगों से इसमें शामिल होने की अपील की थी.
रैली में व्हील चेयर पर बैठे डीएमडी पीड़ित बच्चे 'हम बच्चों की एक ही मांग, जीवनदान, जीवनदान' जैसे नारे लगाते नजर आए. वहीं उनके माता-पिता 'सेव अवर सन्स' के बैज पहने हुए दिखे. दरअसल, ज्यादातर मामलों में ये बीमारी लड़कों को होती है. इस रैली में DMD से पीड़ित बच्चों के माता-पिता ने इन बच्चों की परवरिश से जुड़े अपने संघर्षों को सामने रखा.
क्या चाहते हैं DMD पीड़ित बच्चों के पेरेंट्स?
डीएमडी पीड़ित बच्चों के पेरेंट्स की मांग है कि सरकार DMD से पीड़ित बच्चों का एक डेटाबेस तैयार करे. साथ ही, एक 'एम्पावर्ड पैनल' का गठन किया जाए, जिसमे सरकार के प्रतिनिधि, मेडिकल एक्सपर्ट और इस बीमारी से पीड़ित कुछ बच्चों के माता-पिता शामिल हों. ऐसा करने से इस बीमारी के शिकार बच्चों के इलाज को लेकर चल रहे प्रयासों में तेजी आएगी.
पेरेंट्स की मांग है कि डीएमडी को लेकर जो संस्थान रिसर्च कर रहे हैं, उन्हें हर सुविधा और फंड उपलब्ध कराया जाए, ये भी जरूरी है कि डीएमडी से पीड़ित बच्चों को मुफ्त दवाएं और फिजियोथेरेपी उपलब्ध कराई जाए.
सरकार ने दुर्लभ बीमारियों के लिए राष्ट्रीय नीति (एनपीआरडी 2021) के तहत सैकड़ों दुर्लभ बीमारियों की पहचान की है. पेरेंट्स चाहते हैं कि दुर्लभ बीमारियों की इस लिस्ट में से 'जानलेवा दुर्लभ बीमारियों' (life threatening rare diseases) की एक अलग श्रेणी बनाई जाए.
डीएमडी अभिभावकों में से एक प्रवीण सिंगला ने कहा कि इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है और हम पेरेंट्स यही चाहते हैं कि इस बीमारी की दवा बनाने के लिए देश में ही शोध हो. साथ ही, जब तक इसकी दवा की खोज नहीं होती है, तब तक बच्चों की देखभाल करने में सरकारी सहयोग मिले.
अभिभावकों का दर्द
गुरुग्राम में रहने वाली पूजा हांडू भी इस मौके पर अपने छह साल के बेटे के साथ आई थीं. उन्होंने अपना दर्द जाहिर करते हुए कहा कि उनके बेटे के स्कूल में कई बार उसके सहपाठी उससे कहते हैं कि वो कभी चल नहीं पाएगा. ऐसा होने पर बेटा उनसे कई सवाल पूछता है, पर उनके पास इन सवालों का कोई जवाब नहीं होता. पूजा के पति अमित ने बताया कि इस बीमारी से निराश लोगों की मजबूरी का फायदा कई बार डॉक्टर भी उठाते हैं. वो लोगों को कई बार झूठा दिलासा देते हैं कि वो किसी विशेष थेरेपी के जरिये उनके बच्चों को ठीक कर देंगे. नाउम्मीदी के चलते अभिभावक इन पर यकीन कर इन्हें मोटा पैसा देते हैं, लेकिन हल इसके बाद भी नहीं निकलता.
कर्नाटक से आए रवि कुमार शहापुरकर और उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ से आईं अलका सिंह का कहना था कि उनके बच्चे अपने दोस्तों की तरह फुटबॉल खेलना चाहते हैं, लेकिन इस बीमारी के चलते उन्हें फोन पर गेम खेल कर ही संतोष करना पड़ता है.
इस मौके पर हरियाणा के कवि अरुण जैमिनी और चिराग जैन ने भी शिरकत की. अरुण जैमिनी ने कहा, 'मुझे इन मासूम बच्चों की आंखों में हजारों सपने दिख रहे हैं. इनमें से कोई नरेंद्र मोदी बन सकता है, तो कोई अब्दुल कलाम. सरकार को इनकी बीमारी की गंभीरता समझकर इनके इलाज का प्रबंध करना चाहिए.'
क्या है ‘ड्यूचेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी'?
‘ड्यूचेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी' जीन में गड़बड़ी की वजह से होने वाली एक दुर्लभ जेनेटिक (अनुवांशिक) बीमारी है. शुरुआत पांव की मांसपेशियों के कमजोर होने से होती है, जिससे बच्चे को चलने में दिक्कत होने लगती है. लेकिन जल्द ही, ये रोग हृदय और फेफड़ों सहित शरीर की हर मांसपेशी को अपनी चपेट में ले लेता है. भारत में पैदा होने वाले प्रत्येक 3500 पुरुषों में से एक लड़का डीएमडी के साथ पैदा होता है. लड़कियों में ये बीमारी बहुत कम होती है.
वर्तमान में डॉक्टर डीएमडी मरीजों को इलाज के नाम पर सिर्फ स्टेरॉयड्स की भारी डोज देते हैं. इससे बच्चे कुछ और सालों तक अपने पैरों पर चल तो पाते हैं - लेकिन इसकी कीमत उन्हें स्टेरॉयड्स के गंभीर साइड इफेक्ट झेल कर चुकानी पड़ती है.
इलाज को लेकर चले रहे शोध एक्सपर्ट की राय
दिल्ली के एम्स में पीडिएट्रिक न्यूरोलॉजी डिपार्टमेंट की हेड डॉ. शेफाली गुलाटी ने बताया कि दुनिया के कई हिस्सों में इस बीमारी का इलाज तलाशने के मकसद से क्लिनिकल ट्रायल चल रहे हैं. कई जगह एग्जॉन स्किपिंग, जीन थेरेपी और स्किन सेल थेरेपी का भी सहारा लिया जा रहा है. लेकिन अभी तक इसमें आंशिक सफलता ही मिली है. उन्होंने कहा कि सरकार ऐसे परिवारों की आर्थिक तौर से मदद करके उन्हें कुछ राहत दे सकती है.
(रिपोर्ट: आज तक ब्यूरो)
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