फैक्ट चेक: टोपी और लुंगी पहन कर बंगाल में हिंदुओं ने की हिंसा? ये स्क्रीनशॉट फर्जी है  

हाल ही में बंगाल में वक्फ कानून के विरोध में हिंसा के संदर्भ में एक फर्जी बीबीसी रिपोर्ट का स्क्रीनशॉट वायरल हो रहा है, जिसमें दावा किया गया है कि हिंदू लोग मुस्लिम कपड़े पहनकर हिंसा भड़का रहे हैं. इस कथित खबर में बीबीसी का लोगो और दो चित्र शामिल हैं, जो पुराने CAA विरोध प्रदर्शनों से लिए गए हैं. आजतक की फैक्ट चेक टीम ने इस दावे का पड़ताल कर सच्चाई का पता लगाया है.

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आजतक फैक्ट चेक

दावा
बीबीसी की इस रिपोर्ट से पता चलता है कि हाल ही में बंगाल में हुई हिंसा में कुछ हिंदू, मुस्लिमों जैसे कपड़े पहन कर पत्थरबाजी कर रहे थे.  
सच्चाई
ये बीबीसी की पुरानी रिपोर्ट का एडिटेड स्क्रीनशॉट है. असली रिपोर्ट साल 2019 की है और सीएए विरोधी प्रदर्शनों से संबंधित है.

ज्योति द्विवेदी

  • नई दिल्ली,
  • 22 अप्रैल 2025,
  • अपडेटेड 6:40 PM IST

बंगाल में वक्फ कानून के विरोध में भड़की हिंसा को लेकर खूब फर्जी खबरें वायरल हो रही हैं. अब बीबीसी की एक कथित खबर का स्क्रीनशॉट शेयर करते हुए कुछ लोग आरोप लगा रहे हैं कि बंगाल में हिंदू, मुस्लिमों के कपड़े पहन कर हिंसा भड़काने में लगे हैं.

खबर की हेडलाइन है- "टोपी-लुंगी पहनकर संघ के लोग बरसा रहे थे ट्रेन पर पत्थर': प्रेस रिव्यू". इसमें बीबीसी का लोगो लगा है और दो तस्वीरें भी हैं. पहली तस्वीर में एक मुस्लिम टोपी पहने हुए व्यक्ति जलते हुए वाहन के सामने बाहें फैला कर खड़ा है. वहीं, दूसरी फोटो में एक सफेद टोपी वाला शख्स लाठी से ट्रेन का शीशा तोड़ता नजर आ रहा है.  

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एक फेसबुक यूजर ने इस स्क्रीनशॉट को शेयर करते हुए लिखा, "कुंठित नफरती संघ, भेष बदलू , वेतन भोगी, संघी अपराधियों का दल जो  बंगाल के मुर्शिदाबाद में मुस्लिम ड्रेस में अपराध को अंजाम देने बंगाल गए हैं. ममता की पुलिस ने करीब 150 दंगाइयों को पकड़ा है जिसे बंगाली नहीं आती वो सिर्फ़ हिंदी बोल सकते हैं."  

आजतक फैक्ट चेक ने पाया कि ये स्क्रीनशॉट एडिटेड है. ये बीबीसी की साल 2019 की एक खबर से छेड़छाड़ करके बनाया गया है, जो सीएए के विरोध में हुए प्रदर्शनों से संबंधित थी.

बीबीसी ने हाल-फिलहाल में ऐसी कोई रिपोर्ट नहीं छापी है जिसमें हिंदुओं के, मुस्लिम टोपी पहन कर बंगाल में हिंसक गतिविधियां करने का जिक्र हो.

कैसे पता लगाई सच्चाई?  

वायरल स्क्रीनशॉट को गूगल पर सर्च करने से हमें बीबीसी की 21 दिसंबर, 2021 की एक रिपोर्ट मिली. ये खबर नागरिकता संशोधन क़ानून के विरोध में हुए प्रदर्शनों से संबंधित है.

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इस खबर में न तो ट्रेन का शीशा तोड़ने वाले शख्स की फोटो है, न ही जलते वाहन के सामने खड़े व्यक्ति की फोटो. इसमें "REJECT CAB BOYCOTT NRC" जैसे स्लोगन वाली तख्तियां लेकर प्रदर्शन करते मुस्लिमों की फोटो लगी है. यहां फोटो का क्रेडिट गेटी इमेजेज को दिया गया है और लिखा है- 'प्रतीकात्मक तस्वीर'. यानी, ये फोटो खबर में सिर्फ प्रतीक के तौर पर इस्तेमाल की गई है. साफ पता लग रहा है कि इस प्रतीकात्मक तस्वीर को हटाकर वायरल स्क्रीनशॉट में दो बिल्कुल अलग तस्वीरें लगा दी गई हैं.

बीबीसी की 2019 की रिपोर्ट में बताया गया है कि नागरिकता कानून के विरोध में हो रहे प्रदर्शनों के बीच पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में छह लोगों को ट्रेन पर पत्थर फेंकते हुए देखा गया था. इनमें से दो को पुलिस ने हिरासत में ले लिया. इसमें द टेलीग्राफ़ के हवाले से लिखा है कि इन छह लोगों ने टोपी और लुंगी पहनी थी और सभी का संबंध संघ परिवार से था.

वायरल स्क्रीनशॉट में लगी तस्वीरों की क्या कहानी है?  

वायरल स्क्रीनशॉट की पहली फोटो को रिवर्स सर्च करने से ये हमें एशियन एज की 15 दिसंबर, 2019 की एक रिपोर्ट में मिली. यहां इस फोटो का क्रेडिट न्यूज एजेंसी पीटीआई को दिया गया है. साथ ही, बताया गया है कि ये पश्चिम बंगाल के हावड़ा में नागरिकता कानून के विरोध में चल रहे प्रदर्शन से संबंधित है.  

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इसी तरह, स्क्रीनशॉट की दूसरी फोटो हमें द स्टेट्समैन की 13 दिसंबर, 2019 की खबर में मिली. यहां इसे सीएए विरोध प्रदर्शन से संबंधित बताया गया है.

क्या मुर्शिदाबाद हिंसा के 150 आरोपियों को बंगाली नहीं आती?

द हिंदू की एक रिपोर्ट के मुताबिक, मुर्शिदाबाद दंगों के मामले में 60 एफआईआर हुई हैं और 274 लोगों को गिरफ्तार किया गया है. हमें ऐसी कोई खबर नहीं मिली जिसमें लिखा हो कि इस मामले के 150 आरोपियों ने बयान हिंदी में दिया क्योंकि उन्हें बंगाली भाषा नहीं आती. जंगीपुर, मुर्शिदाबाद के एसपी आनंदा रॉय ने भी हमें बताया कि ये दावा पूरी तरह फर्जी है.

हमें Tv 29 नाम के एक पैरोडी एक्स अकाउंट का पोस्ट मिला जिसमें स्पष्टीकरण दिया गया है कि ये सिर्फ एक मजाक था.

साफ है, बीबीसी की एक पुरानी खबर को एडिट करके दावा किया जा रहा है कि वहां हिंदू, मुस्लिमों जैसे कपड़े पहन कर हिंसा कर रहे हैं और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचा रहे हैं.

(इनपुट: सूरज उद्दीन मंडल)

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