Explainer: EWS को 10% आरक्षण, सुप्रीम कोर्ट इन 3 प्वॉइंट्स पर थोड़ी देर में सुनाएगा फैसला

सामान्य वर्ग के लोगों को आर्थिक आधार पर 10 फीसदी आरक्षण देने के मामले में सुप्रीम कोर्ट आज फैसला सुनाएगा. चीफ जस्टिस यूयू ललित की बेंच आज इस मामले में फैसला देगी. जनवरी 2019 में संविधान में 103वां संशोधन कर आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग के लोगों के लिए 10 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था की गई थी.

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चीफ जस्टिस यूयू ललित की बेंच EWS कोटा मामले में फैसला सुनाएगी. (फाइल फोटो-PTI) चीफ जस्टिस यूयू ललित की बेंच EWS कोटा मामले में फैसला सुनाएगी. (फाइल फोटो-PTI)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 07 नवंबर 2022,
  • अपडेटेड 10:30 AM IST

आर्थिक आधार पर सामान्य वर्ग के लोगों को 10 फीसदी आरक्षण देना सही है या नहीं? इस पर सुप्रीम कोर्ट आज फैसला सुनाएगा. चीफ जस्टिस यूयू ललित की बेंच इस पर थोड़ी देर में फैसला सुनाएगी. 

2019 के लोकसभा चुनाव से पहले मोदी सरकार ने सामान्य वर्ग के लोगों को आर्थिक आधार पर 10 फीसदी आरक्षण देने के लिए संविधान में 103वां संशोधन किया था. इसे लेकिन सुप्रीम कोर्ट में 40 से ज्यादा याचिकाएं दायर हुई थीं. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने 27 सितंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.

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क्या है EWS कोटा?

जनवरी 2019 में मोदी सरकार संविधान में 103वां संशोधन लेकर आई थी. इसके तहत आर्थिक रूप से पिछड़े सामान्य वर्ग के लोगों को नौकरियों और शिक्षा में 10 फीसदी आरक्षण देने का प्रावधान किया गया है.

कानूनन, आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से ज्यादा नहीं होनी चाहिए. अभी देशभर में एससी, एसटी और ओबीसी वर्ग को जो आरक्षण मिलता है, वो 50 फीसदी सीमा के भीतर ही मिलता है. लेकिन सामान्य वर्ग का 10 फीसदी कोटा, इस 50 फीसदी सीमा के बाहर है. 

2019 में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में बताया था कि आर्थिक रूप से कमजोर 10% आरक्षण देने का कानून उच्च शिक्षा और रोजगार में समान अवसर देकर 'सामाजिक समानता' को बढ़ावा देने के लिए लाया गया था. 

पर इसे चुनौती क्यों?

सामान्य वर्ग को 10 फीसदी आरक्षण को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है. इसे लेकर 40 से ज्यादा याचिकाएं दायर हुई थीं. इन याचिकाओं में तर्क दिया गया है कि 10 फीसदी आरक्षण संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन है.

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तमिलनाडु सरकार ने भी EWS कोटे का विरोध किया है. तमिलनाडु सरकार की ओर से पेश हुए सीनियर एडवोकेट शेखर नफाड़े ने तर्क दिया कि आरक्षण के लिए आर्थिक स्थिति को आधार नहीं बनाया जा सकता. 

एकेडमिशियन मोहन गोपाल ने इस मामले में 13 सितंबर को अपनी दलीलें रखीं थीं. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में EWS आरक्षण को 'धोखाधड़ी' बताया था. साथ ही इसे पिछले दरवाजे से आरक्षण की अवधारणा को नष्ट करने की कोशिश भी बताया था.

दूसरी ओर सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि संशोधन के जरिए दिया गया आरक्षण अलग है और सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए 50 फीसदी कोटा को छेड़े बिना दिया गया था. इसलिए ये संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं करता.

सुप्रीम कोर्ट को क्या तय करना है?

इस संशोधन के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए 8 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने तीन प्वॉइंट नोट किए थे. इन्हीं पर सुप्रीम कोर्ट को फैसला लेना है. ये तीन प्वॉइंट हैं--

1. क्या 103वें संशोधन को संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन कहा जा सकता है?

2. क्या निजी गैर-सहायता प्राप्त संस्थानों में प्रवेश के लिए EWS कोटा देने की अनुमति देने संवैधानिक ढांचे का उल्लंघन है?

3. एससी, एसटी, ओबीसी को दिए जाने वाले कोटे से EWS कोटे को बाहर रखना क्या संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन है?

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अभी कितना है आरक्षण?

कानूनन देश में आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से ज्यादा नहीं हो सकती है. अभी देश में 49.5 फीसदी आरक्षण है. ओबीसी को 27%, अनुसूचित जातियों (एससी) को 15% और अनुसूचित जनजातियों (एसटी) को 7.5% आरक्षण की व्यवस्था है. इनके अलावा आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग के लोगों को 10% आरक्षण दिया जाता है.

 

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