MCD Election 2022: दिल्ली के 1.46 करोड़ से ज्यादा वोटर्स 4 दिसंबर को 250 वार्ड के लिए पार्षद चुनेंगे. इन 250 वार्ड के लिए 2,021 उम्मीदवार मैदान में हैं. यानी, औसत निकाला जाए तो हर वार्ड पर 8 उम्मीदवार.
सबसे ज्यादा 507 उम्मीदवार निर्दलीय हैं. आम आदमी पार्टी की ओर से 492 उम्मीदवारों ने पर्चा भरा है. बीजेपी की तरफ से 423, कांग्रेस से 332, बहुजन समाज पार्टी से 149, जनता दल (यूनाइटेड) से 31, एमआईएम से 20 और सीपीआई (एम) से 9 उम्मीदवारों ने नामांकन दाखिल किया है.
इससे पहले 2020 के विधानसभा चुनावों में 70 सीटों पर 672 उम्मीदवार थे और 2019 में 7 लोकसभा सीटों के लिए 147 उम्मीदवार मैदान में थे. लेकिन एमसीडी चुनाव के लिए दो हजार से ज्यादा उम्मीदवार हैं.
लेकिन ऐसा क्या है कि दिल्ली में नगर निगम चुनाव के लिए इतने उम्मीदवार उतर गए हैं? जबकि, जीतना सिर्फ 250 को ही. इन्हीं 250 पार्षदों में से एक मेयर चुना जाएगा.
क्या MP-MLAs से भी ज्यादा ताकतवर है पार्षद?
चूंकि, दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी है इसलिए यहां केंद्र सरकार का भी दखल है. राज्य सरकार भी है और नगर निगम भी. इसलिए यहां ताकत को लेकर भी जंग चलती रहती है.
दिल्ली की जमीन, पुलिस और सार्वजनिक व्यवस्था पर केंद्र सरकार का अधिकार है. बाकी सारे काम दिल्ली सरकार के अधीन है. जबकि, और दूसरे कामकाज नगर निगम के पास आते हैं.
इसे ऐसे समझिए कि दिल्ली में एम्स और सफदरजंग अस्पताल केंद्र सरकार के अधीन है, जबकि कुछ अस्पताल दिल्ली सरकार के अधीन है और कुछ अस्पताल या डिस्पेंसरी का जिम्मा नगर निगम के पास है.
अब बात रही पार्षद, विधायक और सांसद की ताकत की, तो सबके पास ताकत और जिम्मेदारी लगभग एक ही है, बस स्तर बढ़ जाता है.
मसलन, पार्षद अपने इलाके या वार्ड की जिम्मेदारी है, तो विधायक के पास अपने क्षेत्र या विधानसभा की जबकि सांसद भी अपने संसदीय क्षेत्र से जुड़े विकास के लिए जिम्मेदार है.
हालांकि, दिल्ली में तीनों नगर निगमों के एक होने से मेयर की ताकत मुख्यमंत्री के बराबर ही हो गई है. पहले तीन मेयर होते थे और इस वजह से मुख्यमंत्री ज्यादा ताकतवर होता था.
माना जाता है कि शीला दीक्षित की सरकार ने नगर निगम को तीन हिस्सों में बांटा ही इसलिए था, ताकि मुख्यमंत्री की ताकत को बढ़ाया जा सके.
किसको कितना फंड?
पार्षद, विधायकों और सांसदों को अपने-अपने इलाके या क्षेत्र में विकास कार्य के लिए फंड दिया जाता है. दिल्ली में पार्षदों को सालाना 1 करोड़ रुपये का फंड मिलता है.
वहीं, दिल्ली के सभी 70 विधायकों को 10-10 करोड़ रुपये का फंड हर साल मिलता है. जबकि, सांसदों को 5-5 करोड़ रुपये की सांसद निधि मिलती है.
हालांकि, दिल्ली नगर निगम पर कर्ज भी काफी है. CAG की रिपोर्ट बताती है कि 2012 में जब नगर निगम को तीन हिस्सों में बांटा गया था, तब उस पर 2,060 करोड़ रुपये का कर्ज था. वहीं, मार्च 2018 तक नॉर्थ दिल्ली पर 2,037 करोड़ रुपये का कर्ज आ गया था. जबकि ईस्ट दिल्ली पर 1,396 करोड़ और साउथ दिल्ली पर 381 करोड़ रुपये का कर्ज था.
कितनी बड़ी है दिल्ली नगर निगम?
पहले दिल्ली में एक ही नगर निगम हुआ करती थी. लेकिन 2012 में तब की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने नगर निगम को तीन हिस्सों में बांट दिया था.
दिल्ली में पहले 272 वार्ड थे. इनमें से 104-104 वार्ड साउथ और नॉर्थ दिल्ली में थे, जबकि 64 वार्ड ईस्ट दिल्ली में थे. अब सब मिलाकर 250 वार्ड ही होंगे.
दिल्ली का 97 फीसदी इलाका एमसीडी के अंडर में आता है. जबकि, बाकी का तीन फीसदी इलाका नई दिल्ली नगर परिषद (NDMC) और दिल्ली कंटेन्मेंट बोर्ड (DCB) के पास है.
दिल्ली नगर निगम के पास कौन-कौन से अधिकार?
आम लोगों से जुड़े लगभग सभी मुद्दे दिल्ली नगर निगम के अधिकार क्षेत्र में आते हैं. कुल मिलाकर कहा जाए तो दिल्लीवाले कैसे जिएंगे? ये सब दिल्ली नगर निगम ही तय करती है.
- सफाईः दिल्ली की कॉलोनियों और सड़कों पर साफ-सफाई करने, कूड़ा इकट्ठा करने और उसका निपटारा करने की जिम्मेदारी नगर निगम की है. घरों से कूड़ा इकट्ठा करना और उसको निपटाना.
- स्कूल, अस्पताल, डिस्पेंसरीः प्राइमरी शिक्षा के लिए स्कूल, डिस्पेंसरी और कुछ अस्पतालों का जिम्मा भी नगर निगम के पास होता है.
- टैक्स कलेक्शनः दिल्ली में लगभग 50 लाख संपत्तियां हैं. इन पर लगने वाला प्रॉपर्टी टैक्स नगर निगम ही वसूलती है. इसके अलावा टोल टैक्स भी नगर निगम ही लेती है.
- नक्शों को मंजूरीः दिल्ली में अगर कोई घर बनाना है या बिल्डिंग बनानी है तो उसका नक्शा एमसीडी ही पास करती है. बिल्डिंग अवैध बनी है और उसे तोड़ना है तो उसका काम भी नगर निगम ही करती है.
- सड़कों का रखरखावः नगर निगम सड़कों की साफ-सफाई तो करती ही है, साथ ही स्ट्रीट लाइट का जिम्मा भी इसी के पास होता है. दिल्ली के पार्कों का रखरखाव का काम भी नगर निगम ही संभालती है.
- अन्य कामः रहवासी इमारतों का रिकॉर्ड रखना, जन्म और मौत का रिकॉर्ड रखना, श्मशान और कब्रिस्तान को मैनेज करना और रेस्टोरेंट वगैरह के लिए लाइसेंस देना नगर निगम का काम है.
पिछली बार क्या रहे थे नतीजे?
दिल्ली नगर निगम में 15 साल से बीजेपी का कब्जा रहा है. अब तक दिल्ली में तीन नगर निगम हुआ करती थीं. इनमें नॉर्थ दिल्ली (NDMC), पूर्वी दिल्ली (EDMC) और साउथ दिल्ली (SDMC) नगर निगम थीं.
पिछली बार 272 वार्ड में से 181 पर बीजेपी ने जीत हासिल की थी. जबकि आम आदमी पार्टी ने 48 और कांग्रेस ने 27 वार्ड जीते थे.
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