चुटकी में सुपरहिट गाने की धुन बनाते थे ‘पंचम दा’ , ऐसा था संगीत के जादूगर 'पंचम दा' का जीवन

आर.डी बर्मन यानी 'पंचम दा' ने 27 जून 1939 को कोलकाता में जन्‍में पंचम दा का सिर्फ 54 साल की उम्र में देहांत हो गया.

Advertisement
आर.डी बर्मन आर.डी बर्मन

दीपिका शर्मा

  • नई दिल्‍ली,
  • 27 जून 2016,
  • अपडेटेड 10:07 AM IST

4 जनवरी 1994 को हिन्‍दी संगीत जगत सितारे पंचम दा ने अपनी अंतिम सांस ली थी. 27 जून 1939 को कलकत्ता में जन्‍में पंचम दा का सिर्फ 54 साल की उम्र में देहांत हो गया.

पंचम दा का पूरा नाम राहुल देव बर्मन था. आरडी बर्मन को हिन्‍दी फिल्‍म इंडस्‍ट्री के मौलिक संगीतकारों में गिना जाता है. उन्‍हें हमेशा पंचम दा के नाम से पुकारा जाता रहा और इस नाम के पीछे भी कई कहानियां हैं. संगीत उनके खून में दौड़ता था और पिता सचिन देव बर्मन फिल्‍म इंडस्‍ट्री में बड़े नामी संगीतकार थे और पंचम दा ने उन्‍हीं से संगीत के सुरों को साधना सीखा.

Advertisement

1960 के दशक से 1990 के दशक तक आरडी बर्मन ने 331 फिल्‍मों में संगीत दिया . आरडी जितना अपने संगीत के लिए मशहूर थे उतना ही अपनी आवाज के लिए भी. कई फिल्‍मों में उन्‍होंने खुद गाना भी गाया है. एक संगीतकार के तौर पर उन्‍होंने ज्‍यादातर अपनी पत्‍नी आशा भोंसले और किशोर (दा) कुमार के साथ काम किया है. इन दोनों के साथ उन्‍होंने जबरदस्‍‍त हिट गाने दुनिया को दिए. उन्‍हें हमेशा अगली पीढ़ी का संगीतकार कहा जाता रहा और उनसे प्रेरणा लेकर कई संगीतकार आगे बढ़े. पंचम दा की मौत के बाद भी उनके गाने सुपरहिट होते रहे हैं.

बचपन में आरडी की नानी ने उनका उपनाम टुबलू रखा था, हालांकि बाद में वे पंचम के उपनाम से मशहूर हुए. पंचम नाम पड़ने के पीछे कई कहानियां हैं. एक कहानी के अनुसार बचपन में जब वे रोते थे तो पांचवे सुर (पा) में रोते थे, इसलिए उनका नाम पंचम रखा गया. दूसरी कहानी यह है कि वे बचपन में पांच अलग-अलग तान में रोते थे. तीसरी कहानी के अनुसार जब अभिनेता अशोक कुमार ने उन्‍हें देखा तो वे बार-बार 'पा' शब्‍द का उच्‍चारण कर रहे थे इसलिए उनका नाम पंचम पड़ गया.

Advertisement

पंचम दा की शुरुआती पढ़ाई कोलकाता के सेंट जेवियर्स स्‍कूल में हुई. सिर्फ 9 साल की उम्र में आरडी ने अपना पहला गाना ‘ऐ मेरी टोपी पलट के आ’ कम्‍पोज किया, जिसे उनके पिता ने 1956 में फिल्‍म ‘फंटूश’ में इस्‍तेमाल किया. ‘सर जो तेरा चकराये’ की धुन भी आरडी ने ही अपने बचपन में तैयार की थी, जिसे उनके पिता ने 1957 में गुरु दत्त की फिल्‍म ‘प्‍यासा’ में प्रयोग किया.

मुंबई में पंचम दा को उस्‍ताद अली अकबर खान ने सरोद और समता प्रसाद ने तबले की ट्रेनिंग दी. वे सलील चौधरी को भी अपना गुरु मानते थे. उन्‍होंने अपने पिता के साथ ऑर्केस्‍ट्रा में हार्मोनिका और माउथ ऑर्गन भी बजाया. कई फिल्‍में में वे पिता के साथ सहायक संगीतकार भी रहे.

एक संगीतकार के तौर पर आरडी की पहली रिलीज फिल्‍म कॉमेडियन महमूद की पहली प्रोडक्‍शन 1961 की ‘छोटे नवाब’ थी. एक संगीतकार के तौर पर उनकी पहली हिट फिल्‍म 1966 में ‘तीसरी मंजिल’ रही. इस फिल्‍म के हिट संगीत से खुश होकर प्रोड्यूसर और लेखक नासिर हुसैन ने पंचम दा और गीतकार मजरूह सुल्‍तानपुरी के साथ 6 और फिल्‍में साइन की. एक तरफ उनके संगीत की तारीफ हो रही थी तो दूसरी तरफ पंचम दा अपने पिता के साथ सहायक के तौर पर भी काम जारी रखे हुए थे.

Advertisement

कहा तो यह भी जाता है कि किशोर कुमार का फिल्‍म ‘अराधना’ का सुपरहिट गाना ‘मेरे सपनों की रानी’ असल में पंचम दा की ही धुन थी, हालांकि फिल्‍म का संगीत उनके पिता एसडी बर्मन ने दिया था.

1970 के दशक में पंचम दा खूब हिट हुए. किशोर कुमार की आवाज, राजेश खन्‍ना की एक्टिंग और पंचम दा के म्‍यूजिक ने इस दशक में खूब वाहवाही बटोरी. 1970 में कटी पतंग के सुपरहिट संगीत से यह जोड़ी शुरू हुई और फिर रुकने का नाम नहीं लिया.

70 में पंचम दा ने देव आनंद की फिल्‍म ‘हरे रामा हरे कृष्‍णा’ के लिए संगीत दिया और आशा भोंसले ने ‘दम मारो दम’ गाना गाया, जो जबरदस्‍त हिट रहा. यह गाना फिल्‍म पर भारी न पड़ जाए इसी डर से देव आनंद ने पूरा गाना फिल्‍म में नहीं रखा. इसके बाद 1971 में भी आरडी ने कई जबरदस्‍त हिट गाने दिए.

1972 में ‘सीता और गीता', ‘रामपुर का लक्ष्‍मण’, ‘बोम्‍बे टू गोवा’, ‘अपना देश’, ‘परिचय’ जैसी फिल्‍मों में हिट संगीत दिया. इसके बाद 1973 में ‘यादों की बारात’, 1974 में ‘आप की कसम’, 1975 में ‘शोले’ और ‘आंधी’, 1978 में ‘कसमें वादे’, 1978 में ‘घर’, 1979 में ‘गोलमाल’, 1980 में ‘खूबसूरत’, 1981 में ‘सनम तेरी कसम’ जिसके लिए उन्‍हें फिल्‍मफेयर अवॉर्ड मिला, ‘रॉकी’, ‘मासूम’, ‘सत्ते पे सत्ता’, ‘लव स्‍टोरी’ जैसी फिल्‍मों में भी पंचम दा ने अपने संगीत का जलवा बिखेरा.

Advertisement

गायक कुमार शानू को पंचम दा ने ही पहला ब्रेक दिया यही नहीं गायक अभिजीत को भी आरडी ने ही बड़ा ब्रेक दिया. हरिहरन को भी पहली बार आरडी के साथ ही पहचान मिली. मोहम्‍मद अजीज ने भी पंचम दा के साथ ही 1985 में पहला गाना गाया.

1980 के दशक में पंचम दा का जादू फीका पड़ने लगा और बप्‍पी लाहिड़ी, लक्ष्‍मीकांत प्‍यारेलाल जैसे संगीतकार उनकी जगह लेने लगे. हालांकि इस दश्‍ाक में भी उन्‍होंने कई यादगार गाने दिए. पंचम दा को 1983 में फिल्‍म ‘सनम तेरी कसम’, 1984 में ‘मासूम’ और 1995 में ‘1942: ए लव स्‍टोरी’ में शानदार संगीत देने के लिए फिल्‍मफेयर अवॉर्ड से नवाजा गया.

पंचम दा की व्‍यक्तिगत जिंदगी के बारे में बहुत कम बात होती है . उनकी पहली पत्‍नी का नाम रीता पटेल था, जिनसे वे दार्जिलिंग में मिले थे और दोनों ने 1966 में शादी रचाने के बाद 1971 में तलाक ले लिया. कहा जाता है कि फिल्‍म ‘परिचय’ का गाना ‘मुसाफिर हूं यारो, न घर है न ठिकाना’ की धुन उन्‍होंने तलाक के बाद होटल में तैयार की थी.

1980 में उन्‍होंने गायिका आशा भोंसले से शादी रचा ली. इससे पहले दोनों ने कई फिल्‍मों में जबरदस्‍त हिट गाने देने के साथ ही कई स्‍टेज प्रोग्राम भी किए थे. जिंदगी के अंतिम दिनों में पंचम दा को पैसे की तंगी हो गई थी. उनकी मौत के 13 साल बाद 2007 में उनकी मां की मौत हुई.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement