नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जीवन जितना प्रेरणादायक रहा, उनकी मौत उतनी ही रहस्यमयी रही. सरकारी आंकड़ों के अनुसार, नेताजी की मौत 1945 में एक विमान हादसे में हुई थी, लेकिन इसके 30 साल बाद रहस्यमयी तरीके से गुमनामी बाबा के पास से कुछ ऐसी चीज़ें मिली थी, जिससे कयास लगने लगे थे कि गुमनामी बाबा ही सुभाष चंद्र बोस हैं.
अब इन्हीं सवालों से जूझती हुई एक फिल्म का निर्माण किया जा रहा है. सुभाष चंद्र बोस के 122वें जन्मदिन के अवसर पर उनके जीवन पर आधारित एक फिल्म के पोस्टर को लॉन्च किया गया है. फिल्म का नाम गुमनामी है. ये एक बंगाली फिल्म होगी और इस फिल्म का निर्देशन श्रीजीत मुखर्जी ने किया है. बंगाल के एंटरटेनमेंट और मीडिया हाउस एसवीएफ इस फिल्म को प्रोड्यूस करने जा रहा है. फिल्म क्रिटिक तरण आदर्श ने फिल्म के पोस्टर को अपने ट्विटर अकाउंट पर शेयर किया है. माना जा रहा है कि फिल्म अगले साल सुभाष चंद्र बोस के जन्मदिन पर रिलीज़ हो सकती है. इससे पहले एक्टर राजकुमार राव नेताजी सुभाष चंद्र बोस की ज़िंदगी पर आधारित वेब सीरीज़ बोस: डेड और अलाइव में नज़र आए थे. राजकुमार अपने लुक के कारण भी काफी चर्चा में रहे थे.
गौरतलब है कि सरकार के अनुसार नेताजी की 1945 में एक विमान दुर्घटना में मौत हो गई थी लेकिन इसके तीस साल बाद नेताजी अचानक फिर से चर्चा में आ गए थे. दरअसल फैजाबाद में रहने वाले गुमनामी बाबा का 1985 में देहांत हुआ था. इसके दो दिन बाद बड़े गोपनीय ढंग से उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया था. उन्हें गुमनामी बाबा इसलिए बुलाया जाता था क्योंकि वह किसी से मिलते-जुलते नहीं थे. हालांकि लोग तब हैरान रह गए थे जब गुमनामी बाबा के कमरे से नेताजी के परिवार की तस्वीरें, कई पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित नेताजी से संबंधित आर्टिकल्स, कई बड़ी हस्तियों के पत्र और नेताजी की कथित मौत के मामले की जांच के लिए गठित की गई शाहनवाज आयोग एवं खोसला आयोग की रिपोर्ट तक मौजूद थी.
स्थानीय लोगों के मुताबिक, जब उनके निधन के बाद उनके नेताजी होने की बातें फैलने लगीं तो नेताजी की भतीजी ललिता बोस कोलकाता से फैजाबाद आईं और गुमनामी बाबा के कमरे से बरामद सामान देखकर यह कहते हुए रो पड़ी थीं कि यह सब कुछ उनके चाचा का ही है. इसके बाद से लोगों ने प्रदर्शन किए और केंद्र सरकार को दबाव में आकर मुखर्जी आयोग का गठन करना पड़ा वही इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देश दिया था कि गुमनामी बाबा के सामान को संग्रहालय में रखा जाए ताकि आम लोग उन्हें देख सकें.
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