सिनेमा में जो रुतबा ऑस्कर अवॉर्ड्स का है, संगीत की दुनिया में वही ऊंचाई हासिल है ग्रैमी अवॉर्ड्स को. इस बार हुए 67वें ग्रैमी अवॉर्ड्स में भारतीय-अमेरिकन गायिका चंद्रिका टंडन को उनकी एल्बम 'त्रिवेणी' के लिए ग्रैमी अवॉर्ड मिला है. चंद्रिका ने ये अवॉर्ड 71 साल की उम्र में जीता है. दिलचस्प बात ये है कि बचपन से संगीत में रुचि रखने वालीं चंद्रिका ने करीब 45 साल की उम्र तक अपने इस पैशन को गंभीरता से फॉलो ही नहीं किया था. अब आप सोचेंगे कि वो कर क्या रही थीं?
चंद्रिका एक मल्टी-मिलियन-डॉलर कंपनी की नींव रख रही थीं, जिसके क्लाइंट दुनिया भर में हैं. मैनेजमेंट कंसल्टिंग इंडस्ट्री में दुनिया की 'बिग थ्री' कही जाने वाले कंपनियों में से एक, मैकेंजी एंड कंपनी में पार्टनर बनने वाली वो पहली भारतीय महिला थीं. वो यूएस की टॉप यूनिवर्सिटीज में से एक में, टेक्नीकल एजुकेशन में बड़ा बदलाव ला रही थीं. चेन्नई के जिस मद्रास क्रिस्चियन कॉलेज से पढ़ाई की, उसमें बिजनेस स्कूल की नींव रख रही थीं. और उनका ये पूरा सफर शुरू हुआ अपने ही घर पर की गई एक भूख हड़ताल से. आइए बताते हैं ग्रैमी अवॉर्ड विनर चंद्रिका टंडन के बारे में जिनका सफर और जीवन अपने आप में एक मिसाल है.
एक भूख हड़ताल ने बदल दिया चंद्रिका का जीवन
चंद्रिका 1954 में चेन्नई के एक तमिल ब्राह्मण परिवार में पैदा हुई थीं. उन्होंने एक पुराने इंटरव्यू में इंडिया टुडे को बताया था कि स्कूलिंग के बाद वो बी.कॉम. करने के लिए मद्रास क्रिस्चियन कॉलेज जाना चाहती थीं. क्योंकि उनके पिता और उनके दादा ने वहां से पढ़ाई की थी. मगर ये कॉलेज उनके घर से दूर था और वहां जाने के लिए ट्रेन लेनी पड़ती थी. उनकी मां नहीं चाहती थीं कि वो एक पारंपरिक तमिल ब्राह्मण परिवार में इस तरह के स्टीरियोटाइप तोड़ने वाली 'घर की पहली लड़की' बनें.
चंद्रिका ने बताया, 'वो हमेशा स्कूल में मेरे दोस्तों से कहती थीं- '17 की उम्र में उसकी सगाई कर देंगे. 18 में शादी.'' लेकिन चंद्रिका का प्लान कुछ और था. चंद्रिका ने घर पर लड़ाई की, लेकिन उनकी मां नहीं मानीं. और फिर वो भूख हड़ताल पर बैठ गईं. ये पहली बार था जब चंद्रिका ने घरवालों की मर्जी के खिलाफ जोर-आजमाईश की थी, जीत भी उन्हीं की हुई.
चेन्नई से निकलकर आई.आई.एम अहमदाबाद पहुंचीं चंद्रिका
कॉलेज के फाइनल ईयर में उन्होंने अपने एक अंकल और एक प्रोफेसर से आई.आई.एम. अहमदाबाद का नाम सुना था. साथ ही ये भी पता लगा था कि वो नॉर्मली फाइनल ईयर के स्टूडेंट्स को एडमिशन नहीं देते. अगली बार जब अंकल ने पूछा कि वो कॉलेज के बाद क्या करने वाली हैं तो उन्होंने बोल दिया कि वो आई.आई.एम. अहमदाबाद में जाने का सोच रही हैं.
चंद्रिका बताती हैं कि उनके अंकल को यकीन नहीं हुआ. उन्हें लगा कि ये चेन्नई की लड़की, जो 'एकदम देहाती' है, आई.आई.एम. अहमदाबाद इन्हें नहीं लेगा. तबतक चंद्रिका के लिए ये कॉलेज के बाद के लिए एक रैंडम चॉइस भर थी, लेकिन जब अंकल ने 'तुम्हारा एडमिशन नहीं होगा' वाला रवैया दिखाया तो उन्होंने तय कर लिया कि अब तो अप्लाई करके देखना है.
एडमिशन के लिए गाया फ्रेंच गाना
चंद्रिका की लाइफ में संगीत कहीं बैकग्राउंड में तो हमेशा था. लेकिन अपने ये हुनर सामने रखने की जरूरत उन्हें पहली बार आई.आई.एम. के इंटरव्यू में पड़ी. टेस्ट और अलग-अलग राउंड के कई इंटरव्यू के बाद चंद्रिका तीन लोगों के पैनल के सामने थीं, जिन्होंने 45 मिनट तक उनसे अलग-अलग कानूनों को लेकर खूब सवाल पूछे. क्योंकि चंद्रिका ने लिखा था कि उन्हें लॉयर बनने की बड़ी इच्छा है. इस पैनल में प्रोफेसर मोहन कौल भी थे, जो पेरिस की एक यूनिवर्सिटी में बड़ा वक्त बिता कर आए थे.
उन्होंने चंद्रिका के बायो में लिखा देखा कि उन्होंने एक कॉन्सर्ट किया है और वो फ्रेंच में गा सकती हैं. उन्होंने कहा, 'ये हमारे दिन का आखिरी इंटरव्यू है, तो हमें एक फ्रेंच गाने से एंटरटेन कीजिए.' चंद्रिका ने जवाब दिया 'जरूर' और उन्होंने फ्रेंच में गाना शुरू कर दिया. गाना खत्म हुआ तो प्रोफेसर मोहन ने कहा, 'मैंने कभी उम्मीद नहीं की थी कि चेन्नई का कोई व्यक्ति, जिसने कभी चेन्नई ना छोड़ा हो, फ्रेंच में इतना अच्छा गा सकता है.' संगीत सीढ़ी बना और चंद्रिका अब आई.आई.एम. अहमदाबाद पहुंच चुकी थीं.'
बैक सीट पर चला गया संगीत
चंद्रिका का कहना है कि वो पहली बार घर से पूरी तरह दूर गई थीं और एक तरह से खुद को तलाशने में लगी थीं. इसका असर उनकी पढ़ाई पर पड़ रहा था लेकिन वो गानों के सहारे यहां भी आगे बढ़ती रहीं. आई.आई.एम से पढ़ाई के बाद सिटीबैंक में उनकी नौकरी लग गई. बैंक ने उन्हें 5 महीने के ट्रेनिंग प्रोग्राम में बेरूत भेजा जो उस समय सिविल वॉर से जूझ रहा था. चंद्रिका की उम्र पूरे 20 साल भी नहीं थी और वो बेरूत से भारत के लिए उड़ी आखिरी फ्लाइट्स में से एक में बैठी थीं.
अगले एक दशक में वो यूएस में मैकेंजी जॉइन कर चुकी थीं. नई कंपनी में पहले ही दिन उन्हें न्यू जर्सी पहुंचने को कहा गया, जहां जाने के लिए ड्राइव करना था. चंद्रिका, जिन्होंने कभी कार का स्टीयरिंग व्हील नहीं छुआ था, उन्होंने 8 घंटे तक ड्राइविंग सीखी. लेकिन चंद्रिका को मिलने वाले अधिकतर लोग ऐसे थे जो भारत के बारे में बहुत कम जानते थे. वो उनसे ऐसे सवाल करते थे कि 'तुम्हारे माथे पर वो लाल डॉट (बिंदी) क्यों नहीं है?' लेकिन तब चंद्रिका का पूरा ध्यान पूरी तरह सिर्फ एक ही जगह था- आगे बढ़ने पर.
वो बताती हैं, '20s और 30s में मुझे दुनिया के बारे में बहुत खबर नहीं थी. मेरे एक ही मिशन था, मुझे बस आगे बढ़ते जाना था.' आज उनका कहना है कि तब वो अपने परिवार पर, अपनी इकलौती बेटी को भी पूरा समय नहीं दे पा रही थीं. 1999 तक चंद्रिका अपनी खुद की कंपनी शुरू कर चुकी थीं और एक बड़ी डील करने जा रही थीं. तभी वो एक तरह के क्राइसिस से गुजरीं, जिसे वो 'क्राइसिस ऑफ स्पिरिट' कहती हैं. यानी 'आत्मा का क्राइसिस'. वो एक फ्लाइट के दौरान परमहंस योगानंद की किताब 'ऑटोबायोग्राफी ऑफ अ योगी' (एक योगी की आत्मकथा) पढ़ रही थीं और उन्हें रोना आ रहा था.
ऐसे हुई संगीत की तरफ वापसी
घर पहुंचकर उन्होंने एक कमरे में खुद को लॉक किया और सोचने लगीं कि 'मैं क्या करने की कोशिश कर रही हूं? मुझे किस चीज में खुशी मिलती है? क्या इससे मुझे खुशी मिल रही है?' शायद किताब की कुछ बातों से उनका कोई इमोशन ट्रिगर हुआ था. उन्हें एहसास हुआ कि काम के चक्कर में उन्होंने ना उन्होंने अपने परिवार को पूरा समय दिया ना ही लाइफ में कुछ और एक्सप्लोर किया.
यहां से चंद्रिका ने अपने संगीत की तरफ वापस लौटना शुरू किया. मगर अब चंद्रिका उस उम्र में नहीं थीं जहां बड़े-बड़े गुरु किसी को शिष्य बनाना चाहते हैं. साथ ही उन्हें अपनी कंपनी पर ध्यान भी देना था. तो उन्होंने खुद से घंटों बैठकर हिंदुस्तानी क्लासिकल संगीत के राग सीखने शुरू किए. इन रागों को उन्होंने अलग-अलग मंत्रोच्चार में इस्तेमाल किया. सबसे पहले उन्होंने 'ओम नमः शिवाय' का जाप राग में रिकॉर्ड किया और 90 की उम्र में पहुंचने जा रहे अपने ससुर को गिफ्ट किया.
राग और मंत्रों का कॉम्बिनेशन है चंद्रिका का संगीत
अपने दूसरे एल्बम 'सोल कॉल' में उन्होंने 'ओम नमः नारायणाय' मंत्र का जाप अलग-अलग रागों में किया. चंद्रिका का ये एल्बम 2011 में 'बेस्ट कंटेम्परेरी वर्ल्ड म्यूजिक एल्बम' कैटेगरी में ग्रैमी के लिए नॉमिनेट हुआ.
2013 में आया उनका एल्बम 'सोल मार्च', नमक सत्याग्रह (1930) के लिए महात्मा गांधी के दांडी मार्च से प्रेरित था. इस एल्बम में उन्होंने हिंदुस्तानी क्लासिकल संगीत को लैटीन और जैज म्यूजिक के साथ मिक्स किया और 75 म्यूजिक आर्टिस्ट्स के साथ रिकॉर्ड किया. 'सोल मंत्रा' (2014) एल्बम में उन्होंने 9 रागों में 'ओम नमः शिवाय' गाया. 'शिवोहम' (2017) में एल्बम में उन्होंने संस्कृत मंत्रों को, अंग्रेजी प्रार्थनाओं के साथ जोड़कर गाया.
2023 में आया चंद्रिका का एल्बम 'अम्मूज ट्रेजर' (अम्मू का खजाना) उनके नाती-नातिनों से प्रेरित गीतों का एक कलेक्शन है. चंद्रिका ने इन गीतों को दुनिया भर के 17 म्यूजिक आर्टिस्ट्स के साथ, 3 वॉल्यूम में रिकॉर्ड किया. इस एल्बम के लिए उन्हें ग्लोबल म्यूजिक अवॉर्ड्स की 'चिल्ड्रेन म्यूजिक' कैटेगरी में गोल्ड मैडल भी मिला.
जिस एल्बम 'त्रिवेणी' के लिए चंद्रिका को ग्रैमी अवॉर्ड मिला है, वो साउथ अफ्रीका के मशहूर बांसुरी वादक वाउटर केलरमैन (Wouter Kellerman) और जापानी-अमेरिकन सेलिस्ट एरु मात्सुमोतो (Eru Matsumoto) के बीच एक कोलेबोरेशन है. इस एल्बम को 'बेस्ट न्यू एज, एम्बिएंट ऑर चान्ट एल्बम' कैटेगरी में ग्रैमी मिला है.
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