अपने तीखे बयानों, ट्वीट से हमेशा सुर्खियों में रहने वाली अभिनेत्री कंगना रनौत के हिस्से में हाल में 2 बड़ी उपलब्धियां जुड़ीं. बर्थडे की पूर्व संध्या पर उन्हें मणिकर्णिका और पंगा के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार मिला, और जन्मदिन के दिन थलाइवी के ट्रेलर ने प्रशंसकों के साथ ही उनके विरोधियों को भी अभिनय का लोहा मानने को मजबूर कर दिया. कहा जाने लगा है कि कंगना का एक और राष्ट्रीय पुरस्कार पक्का हो गया है.
कंगना रनौत की छवि एक ऐसी बेलौस और आजाद ख्याल अभिनेत्री की है जो बिना नफा नुकसान के किसी से भी पंगा लेने की कूवत रखती है. वह अपने हक के लिए किसी से भी भिड़ सकती हैं. ऐसा कहना मुश्किल है कि उनकी फिल्मों से उन्हें यह अंदाज मिला है. लेकिन ऐसा संयोग भी हो सकता है कि उनकी फिल्में उनके व्यक्त्वि का विस्तार सी लगती हैं. तनु वेड्स मनु, क्वीन से लेकर मणिकर्णिका और पंगा तक अपने वजूद, अस्तित्व को खोजती हुई औरत है, जिसमें कंगना ने जान डाल दी है.
थलाइवी के ट्रेलर में कंगना का अभिनय
थलाइवी के ट्रेलर में उनका अभिनय शबाब पर दिखता है. कहानी जे जयललिता की है जो 6 बार तमिलनाडु की मुख्यमंत्री रहीं. यह अपने जमाने की मशहूर तमिल अभिनेत्री के राजनीति में आने और मर्दों की दुनिया में मुकाम हासिल करने की कहानी है. ट्रेलर में पहला शब्द ही होता है 'जया', साथ ही बैकग्राउंड में नृत्य और संगीत है. इसके साथ ही एक डायलॉग है 'अब हमें वह फिल्म वाली बताएगी कि राजनीति कैसे की जाती है'. डॉयलाग के साथ ही पर्दे पर कंगना की आंखें घूमती हैं जिसमें इस तंज को चुनौती के रूप में स्वीकार करने की बेताबी दिखती है. 'यह मर्दों की दुनिया है और हम एक औरत को आगे करके खड़े हैं' इस संवाद से ही पूरी फिल्म की झलक मिल जाती है. एक औरत को इस पुरुषवादी सोच से लड़ने के लिए क्या कुछ करना होगा.
इस संवाद के साथ ही याद आ जाती है सुप्रीम कोर्ट की एक टिप्पणी जिसमें कोर्ट ने कहा था हमें समझना होगा कि इस समाज का ढांचा पुरुषों ने पुरुषों के लिए बनाया है. इसमें कोई कमी भले ही न दिखाई देती हो लेकिन यह पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण को दिखाता है. संविधान समानता की गारंटी देता है. मामला था सेना में महिलाओं के परमानेंट कमीशन देने में हीलाहवाली का. सुप्रीम कोर्ट को अगर 2021 में इस तरह की टिप्पणी करनी पड़ रही है तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि आज से 35-40 साल पहले किसी महिला को अपना हक पाने के लिए कितनी कुर्बानी देनी पड़ती होगी.
एमजीआर संग जया की केमिस्ट्री
ट्रेलर आगे बढ़ता है जिसमें एमजी रामचंद्रन के साथ जया की फिल्मी केमिस्ट्री दिखाई गई है. दोनों ने साथ में 30 फिल्में की थीं. इंडस्ट्री में दोनों को लेकर कई तरह की अफवाह थीं लेकिन जयललिता ने सार्वजनिक रूप से उन्हें गुरु से ज्यादा कुछ नहीं माना. एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि उनकी जिंदगी के एक तिहाई हिस्से पर मां का प्रभाव था और एक तिहाई हिस्से पर एमजीआर का, बाकी का एक तिहाई हिस्सा ही उनका है. लेकिन एमजीआर के मन में कहीं न कहीं जया के लिए सॉफ्ट कॉर्नर था. बीबीसी में छपी खबर के मुताबिक एक बार राजस्थान में शूटिंग चल रही थी. रेगिस्तान में बिना चप्पल के जया को डांस करना था. जया को मुश्किल हो रही थी. एमजीआर से यह देखा न गया और उन्होंने जया को गोद में उठा लिया. जयललिता ने यह बात खुद एक इंटरव्यू में बताई थी.
एमजीआर चाहते थे कि अम्मू पॉलिटिक्स ज्वाइन कर लें. एमजीआर की सीख थी कि 'अगर वो जनता को प्यार देंगी तो जनता उन्हें भी प्यार देगी'. जया ने यह बात गांठ बांध ली थी. लेकिन कहानी इतनी आसान नहीं थी. एमजीआर के चाहने के बावजूद जया को अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम में स्वीकार्यता नहीं मिल पा रही थी. जिसके लिए उन्हें संघर्ष करना था. 'ज्यादा पंख फैलाओगी तो मुंह के बल गिरोगी' जया का जवाब होता है 'अभी तो पंख फैलाए हैं उड़ान अभी बाकी है'. मर्दों की दुनिया में जया को एहसास हो गया है कि जैसे को तैसा जवाब देना होगा. अपनी बात वजन के साथ कहनी होगी. संसद के बाहर एक सदस्य कहते हैं कि 'हमें नहीं मालूम था कि साउथ वाले इतनी अच्छी अंग्रेजी बोल सकते हैं'. जया का जवाब होता है कि 'उन्हें नहीं मालूम था कि उत्तर भारत के लोग इतनी अच्छी अंग्रेजी समझ सकते हैं'.
जब तमिलनाडु विधानसभा में बेइज्जत हुईं थीं जया
अब आता है 1989 का वह दिन जब जया को तमिलनाडु विधानसभा में बेइज्जत किया जाता है. करूणानिधि मुख्यमंत्री थे और बजट भाषण पढ़ रहे थे. उसी समय जयललिता ने उत्पीड़न का सवाल उठाया जिस पर डीएमके के विधायकों ने उन पर हमला कर दिया. डीएमके के एक विधायक ने उनकी साड़ी का खुला पल्लू खींच दिया. उनके साथ धक्का मुक्की की गई. जया ने इस मुद्दे को स्त्री की अस्मिता से जोड़ दिया. जनता उन्हें एमजीआर का उत्तराधिकारी तो पहले ही मान चुकी थी लेकिन अभी प्यार देना बाकी था. इस घटना के बाद जया कहती है 'आज तूने जिस तरह भरी सभा में मेरा अपमान किया है वैसा ही चीरहरण कौरवों ने द्रौपदी का किया था, वो सत्ता की लड़ाई भी वो जीती थी, ये लड़ाई भी मैं जीतूंगी. क्योंकि महाभारत की लड़ाई का दूसरा नाम है जया'. इस घटना से जयलिलता के प्रति प्रदेश की जनता में सहानुभूति की लहर दौड़ गई. जया ने उसी दिन प्रण लिया था कि अब इस सदन में तभी लौटूंगी जब इसे महिलाओं के लिए सुरक्षित बना पाउंगी. संदेश साफ था और इरादे स्पष्ट कि अब मुख्यमंत्री बनने के बाद ही सदन में आना है.
डीएमके सरकार और उनके विधायक भूल कर बैठे थे. जया कैसे इस घटना को चीरहरण में बदल देंगी उन्हें एहसास ही नहीं था. जया ने करुणानिधि को भीष्म और धृतराष्ट्र की श्रेणी में खड़ा कर दिया. वह रथ लेकर प्रदेश के कोने-कोने में निकल पड़ीं. उन्होंने इसे धर्मयुद्ध बना दिया. 'यह लड़ाई अपनों के स्वाभिमान के लिए है. इस लड़ाई में हम गिर सकते हैं जख्मी हो सकते हैं लेकिन पीछे नहीं हट सकते'. ...और जनता ने उसका जवाब दिया 'यह जीत आपकी नहीं हम सबकी जीत होगी'. एमजीआर की उत्तराधिकारी और द्रौपदी जैसे अपमान ने उन्हें जनता के दिल में स्थायी जगह दे दी. इसके बाद 1991 में चुनाव हुए तो वह मुख्यमंत्री बनीं. जया को मालूम था कि मर्दों की दुनिया उन्हें जीने नहीं देगी, एमजीआर को छोड़कर किसी पुरुष पर उन्होंने कभी विश्वास नहीं किया था. इसलिए एक मिथकीय चरित्र गढ़ना उनकी मजबूरी थी. 'एक बात याद रखना अगर मुझे मां समझोगे तो तुम्हें मेरे दिल में जगह मिलेगी और अगर औरत समझोगे तो तुम्हें.... और विधायक-नेता समझ चुके थे कि उन्हें अम्मा के सामने झुककर चलना है.
मुश्किल हालातों का सामना कर बनी थीं सीएम
जयललिता ने कठिन हालातों में ही जन्म लिया था, परिस्थितियों ने उन्हें खुद के प्रति कठोर बना दिया. पिता का साया बचपन में ही उठ गया था. मां फिल्मों में काम करती थीं और बेटी को बेंगलुरु में अपनी बहन के पास छोड़ रखा था. जयललिता ने एक इंटरव्यू में कहा था कि वह न फिल्मों में आना चाहती थीं और न राजनीति में लेकिन फिल्मों में मां की वजह से आईं और राजनीति में अपने गुरु एमजी रामचंद्रन की वजह से. एमजीआर ने जब उनसे राजनीति ज्वाइन करने के लिए कहा था तो जया ने डेढ़ साल का समय लिया था. लेकिन जब एमजीआर ने कहा कि उनकी तबीयत ठीक नहीं रहती और वह जया से ज्यादा किसी और पर इतना विश्वास नहीं कर सकते तो जया ने हां कह दी.
1987 में एमजीआर की मृत्यु हो गई. एमजीआर का परिवार नहीं चाहता था कि जया अंतिम संस्कार में भाग लें. लेकिन बड़ी मुश्किलों के बाद जया एमजीआर के शव के सिरहाने तक पहुंचने में सफल रहीं. बीबीसी में छपी खबर के मुताबिक जयललिता दो दिन वैसे ही खड़ी रहीं. एमजीआर की पत्नी जानकी की महिला मित्रों ने उनके पैर चप्पलों से दबाए, चिकोटी काटी लेकिन वह टस से मस नहीं हुईं. लेकिन शव यात्रा में उन्हें शामिल नहीं होने दिया गया. इसके बाद उन्होंने ठान लिया कि वह एमजीआर की वारिस बनकर दिखाएंगी.
कुछ दिन में पार्टी में दो फाड़ हो गई. राज्यपाल ने एमजीआर की पत्नी जानकी रामचंद्रन को मुख्यमंत्री बनने का निमंत्रण दे दिया. लेकिन जयललिता के विरोध और सदन में मारपीट को आधार बनाकर केंद्र की राजीव गांधी सरकार ने तमिलनाडु सरकार को बर्खास्त कर दिया. 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद जयललिता कांग्रेस के साथ गठबंधन में विधानसभा चुनाव में उतरीं. इस चुनाव में जयललिता और कांग्रेस को बंपर बहुमत मिला, इस गठबंधन को 234 में से 225 सीटें मिली. जयललिता फिर से राज्य की मुख्यमंत्री बनीं और 5 साल का कार्यकाल पूरा किया.
जल्द पर्दे पर आ रही है थलाइवी
'बाहुबली' की पटकथा लिखने वाले केवी विजयेंद्र ने ही थलाइवी की पटकथा लिखी है. डायलॉग ऐसे हैं जो ट्रेलर के साथ ही लोगों के जुबान पर चढ़ने लगे हैं. विष्णु वर्द्धन इंदूरी और शैलेष आर सिंह ने यह फिल्म बनाई है. फिल्म तमिल, तेलुगू और हिंदी में 23 अप्रैल को रिलीज होने जा रही है.
इससे पहले आई पंगा और मणिकर्णिका में भी कंगना के अभिनय की तारीफ हुई थी. दोनों फिल्मों ने भले ही बड़ा व्यापार नहीं किया हो लेकिन लोगों का ध्यान खींचने में सफल रही हैं.
अमित राय