राम गोपाल वर्मा ने 30 मिनट में लिखी थी 'शिवा' की एक लाइन की कहानी, जिस फिल्म ने हमेशा के लिए बॉलीवुड को बदल दिया

आज की बॉलीवुड फिल्मों पर जिस एक डायरेक्टर की छाप सबसे ज्यादा देखी जा सकती है, उनमें से एक हैं राम गोपाल वर्मा. हिंदी दर्शकों का राम गोपाल वर्मा का सामना पहली बार फिल्म 'शिवा' से हुआ. नागार्जुन के लीड रोल वाली इस फिल्म ने बॉलीवुड को वो स्टाइल दिया जिसका असर स्क्रीन पर आज भी बना हुआ है.

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'शिवा' में नागार्जुन 'शिवा' में नागार्जुन

aajtak.in

  • नई दिल्ली ,
  • 07 दिसंबर 2022,
  • अपडेटेड 8:00 AM IST

नागार्जुन की हिंदी फिल्म 'शिवा' जब थिएटर्स में रिलीज हुई तो इसके एक सीन ने लोगों को बहुत इम्प्रेस किया. कॉलेज की पार्किंग में गुंडे हॉकी, डंडे और रॉड लिए शिवा का इंतजार कर रहे हैं. उनमें से जो सबसे पहले आगे आता है, उसे शिवा एक जोरदार पंच मारता है और वो लाइन से खड़ी साइकिलों पर जा कर गिरता है. मारपीट का भरपूर सामान लेकर पहुंचे गुंडों से लड़ने के लिए शिवा, वहीं पर गिरी एक साइकिल की चेन उखाड़ लेता है और उसके बाद वो होता है, जिसे देखने के लिए लोग आज भी टिकट पर पैसे खर्च करके थिएटर्स में पहुंच जाते हैं. 

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'शिवा' के डायरेक्टर राम गोपाल वर्मा ने कई साल बाद बताया कि उन्हें इस सीन को लेकर बहुत डाउट था और वो सोच रहे थे कि जनता को पता नहीं ये कैसा लगेगा. और इस डाउट की वजह ये थी कि 'शिवा' का ये सीन शूट करने के बाद उन्होंने घर लौटकर खुद साइकिल की चेन तोड़ने की कोशिश की, मगर उन्हें समझ आ गया कि ये कितना नामुमकिन है. लेकिन राम गोपाल वर्मा के रियलिज्म का कमाल ये है कि 'शिवा' रिलीज होने के कई साल बाद भी लोग आकर वर्मा को बताते थे कि उन्होंने फिल्म देखने के बाद साइकिल की चेन तोड़ी. (वीडियो में देखें ये सीन)

क्रिएटिव सोच के साथ, फिल्म मेकिंग का रियलिज्म मिला कर राम गोपाल वर्मा ने कितना तगड़ा कमाल किया, उसकी मिसाल लोगों का चेन तोड़ना है. 7 दिसंबर 1990 को 'शिवा' थिएटर्स में रिलीज हुई और बॉलीवुड को मिला राम गोपाल वर्मा का आइकॉनिक रियलिस्टिक स्टाइल, जिसने आगे चलकर बॉलीवुड फिल्मों का नक्शा बदल दिया. 

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आधे घंटे में लिखी थी कहानी 
राम गोपाल वर्मा ने अपने ब्लॉग में बताया था कि 'शिवा' बनाने में उनकी कोई खास दिलचस्पी नहीं थी. 'रात' टाइटल से वो एक हॉरर फिल्म बना रहे थे और इसी को बनाने पर उनका ध्यान ज्यादा था. लेकिन नागार्जुन के भाई वेंकट ने उनसे कहा कि क्या वो कोई हीरो को हाईलाइट करने वाली कहानी बना सकते हैं? इसके जवाब में वर्मा ने अपने कॉलेज एक्सपीरियंस याद करते हुए आधे घंटे में, एक लाइन की एक कहानी लिख डाली. यही 'शिवा' की शुरुआत थी. 

ब्लॉग में वर्मा ने लिखा, 'मैंने कालीचरण, अर्जुन और उस समय की ढेर सारी दूसरी फिल्मों से सीन और किरदार कॉपी किए थे. कुल मिलाकर शिवा मेरे लिए इंडस्ट्री में आने और अपनी मजबूत पोजीशन बनाने का एक एंट्री पॉइंट थी.' 

राम गोपाल वर्मा

शॉक कर देने वाली वायलेंस की विरासत
'शिवा' रिलीज हुई और एक डिस्ट्रीब्यूटर ने पहले दिन फिल्म की रिपोर्ट देते हुए राम गोपाल वर्मा की टीम को बताया कि लोग थिएटर में चुपचाप बैठे फिल्म देख रहे थे. वर्मा ने अपने 'शिवा' पर लिखे अपने एक ब्लॉग में बताया, 'हमें समझ नहीं आ रहा था कि इसका मतलब क्या है, लेकिन रात में उसी डिस्ट्रीब्यूटर का फिर से फोन आया और उसने कहा कि उसे जनता के रिएक्शन का मतलब समझ आ गया है और असल में जनता बस स्तब्ध रह गई है. 

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'शिवा' से पहले 1989 में आई 'परिंदा' में भी दर्शकों ने स्क्रीन पर हिंसा देखी थी. लेकिन अनिल कपूर और जैकी श्रॉफ की 'परिंदा' में ये हिंसा बंदूकों से हो रही थी. डायरेक्टर विधु विनोद चोपड़ा ने 'परिंदा' में वायलेंस को एक बड़े मोरल कनफ्लिक्ट यानी नैतिक द्वंद्व में, एक बड़ा सबक देने के टूल की तरह यूज किया था. जबकि 'शिवा' में हिंसा एक थीम की तरह थी. बल्कि ये भी कहा जा सकता है कि वर्मा ने 'शिवा' में वायलेंस के डायनामिक को फिल्म के मजे का बड़ा हिस्सा बनाया और फिर कहानी फिट की. यहां नागार्जुन की लड़ाई, फिल्म के विलेन रघुवरन और उसके गुंडों से सारी लड़ाई हाथों से लड़ रहे हैं.

'शिवा' की हिंसा में सिर्फ और सिर्फ गुस्सा था, जोर आजमाईश थी, जिसे राम गोपाल वर्मा रियलिटी के लेंस से दिखा रहे थे. दिलचस्प ये था कि 'शिवा' के किरदार उसी तरह बातचीत कर रहे थे जिस तरह असल जिंदगी में लोग करते हैं. उनकी बातों में तेवर था, लेकिन 70s और 80s की तरह हीरो और विलेन की हर लाइन डायलॉगबाजी नहीं थी. फिल्म में एक्शन भी बहुत स्टाइलिश नहीं था, लेकिन उसकी प्रेजेंटेशन बहुत स्टाइलिश थी. वर्मा के इस स्टाइल को आपने 'सत्या' से लेकर 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' तक और कई नई फिल्मों में खूब देखा होगा. 

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इंडियन सिनेमा को बदल देने वाला कैमरा
फिल्मों के मेकिंग या बिहाइंड द सीन वीडियोज में आपने देखा होगा एक कैमरा होता है, जिसे कैमरापर्सन के शरीर पर हार्नेस के जरिए सेट किया जाता है. भाग दौड़ वाले सीन्स या फाइट सीन्स जब इस कैमरे से शूट होते हैं तो पर्दे पर बहुत रियल फील देते हैं. जैसे विलेन को दौड़ाते विलेन को आप भी पीछे से दौड़ते हुए देख रहे हैं या फिर फाइट सीन बिल्कुल आपके सामने हो रहा है. इस कैमरे को स्टेडीकैम कहा जाता है. 

वर्मा ने अपने ब्लॉग में बताया कि उन्होंने 'अमेरिकन सिनेमेटोग्राफर' मैगज़ीन में स्टेडीकैम के बारे में पढ़ा. वो एक कैमरा असिस्टेंट से इसके बारे में बात कर रहे थे तो उसने बताया कि चेन्नई में भी पिछले 4 साल से ऐसा एक कैमरा है लेकिन कोई उसे यूज नहीं करता. राम गोपाल वर्मा ने 'शिवा' में इसे यूज किया और इंडिया में स्टेडीकैम यूज करने वाले पहले डायरेक्टर बने. वर्मा ने बताया कि 'शिवा' की रिलीज के एक साल के अंदर इंडिया में 10 स्टेडीकैम इम्पोर्ट किए गए थे. आज इस कैमरे के बिना किसी भी फिल्म का शूट होना असंभव सा है.

राम गोपाल वर्मा ने 'शिवा' पहले 1989 में, तेलुगू में बनाई थी. फिल्म को मिले जबरदस्त रिस्पॉन्स के बाद उन्होंने अपनी ही फिल्म का, 'शिवा' के टाइटल से ही हिंदी में रीमेक बनाया और ये भी बहुत कामयाब रहा. अनुराग कश्यप, श्रीराम राघवन, वासन बाला जैसे कितने ही डायरेक्टर 'शिवा' को अपनी इंस्पिरेशन मानते हैं.

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