नए साल में बस इन 5 चीजों से तौबा कर ले बॉलीवुड, खुश हो जाएगा हिंदी फिल्म फैन्स का दिल

कुछ गिनी-चुनी फिल्मों को छोड़ दें तो 2024 एक ऐसा साल रहा जिसमें जनता को बड़े और चर्चित बॉलीवुड प्रोजेक्ट्स, और एक्टर्स से निराशा ही हाथ लगी. फिर चाहे साल की शुरुआत में आई 'फाइटर' हो या साल खत्म होते-होते आई 'बेबी जॉन'. भला हुआ जो 'लापता लेडीज', 'स्त्री 2 और 'पुष्पा 2' जैसी फिल्मों ने मूड संभाले रखा.

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नए साल में बस इन 5 चीजों से तौबा कर ले बॉलीवुड नए साल में बस इन 5 चीजों से तौबा कर ले बॉलीवुड

aajtak.in

  • नई दिल्ली ,
  • 01 जनवरी 2025,
  • अपडेटेड 4:38 PM IST

2025 का स्वागत-सत्कार शुरू हो चुका है और लोग नए साल में, नई ऊर्जा के साथ, नई कामयाबियों के लिए कमर कस रहे हैं. सफर लंबा है तो नई एनर्जी और मोटिवेशन के साथ-साथ पर्याप्त एंटरटेनमेंट की व्यवस्था भी जरूरी होती है. इसलिए हमारे भरोसेमंद साथी बॉलीवुड को भी साथ ले लेना जरूरी है, जो लगातार कई सालों से सिनेमाई एंटरटेनमेंट कायदे से डिलीवर करता रहा है. हालांकि, बीते साल ये कुछ खास भरोसेमंद नहीं साबित हुआ. 

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कुछ गिनी-चुनी फिल्मों को छोड़ दें तो 2024 एक ऐसा साल रहा जिसमें जनता को बड़े और चर्चित बॉलीवुड प्रोजेक्ट्स, और एक्टर्स से निराशा ही हाथ लगी. फिर चाहे साल की शुरुआत में आई 'फाइटर' हो या साल खत्म होते-होते आई 'बेबी जॉन'. भला हुआ जो 'लापता लेडीज', 'स्त्री 2 और 'पुष्पा 2' जैसी फिल्मों ने मूड संभाले रखा. 

हालांकि, ध्यान देने वाली बात ये है कि जिन फिल्मों के नाम के आगे बॉक्स ऑफिस पर 'हिट' लिखा गया, उनमें से भी अधिकतर बॉलीवुड फिल्में ऐसी निकलीं जिन्हें बहुत मजेदार नहीं कहा जा सकता. ऐसे में पिछले साल की बॉलीवुड फिल्मों के हाल का निचोड़ निकालें तो जनता के बिहेवियर से इंडस्ट्री के लिए कुछ मैसेज साफ-स्पष्ट हैं:  

फिल्में बनें, 'प्रोजेक्ट' नहीं 
बॉलीवुड में ये ट्रेंड बनता जा रहा है कि एक फिल्म के चलते ही सब उसी तरह की फिल्में प्लान करने लगते हैं. पिछले कुछ सालों में देशभक्ति और राजनीति के चर्चित मुद्दों पर बनी कुछ फिल्में कामयाब हुईं. नतीजा ये हुआ कि बॉलीवुड से ऐसे ही टॉपिक पर बनी फिल्मों की अनाउंसमेंट की बाढ़ आ गई. 

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'बड़े मियां छोटे मियां' पोस्टर (क्रेडिट: सोशल मीडिया)

जनता बोर हुई और 2024 ऐसी फिल्मों के लिए बहुत बुरा साबित हुआ जिनमें जनता ने दूर से ही किसी फॉर्मुले पर एक 'प्रोजेक्ट' डिजाईन करने की कोशिश सूंघ ली. 'बड़े मियां छोटे मियां' का बुरा हाल इसी का नतीजा था. बड़ा बजट, बड़े हीरोज के साथ ढेर सारे स्टंट्स मिलाकर, एक देशभक्ति जगाने वाली फिल्म बनाने का फॉर्मूला जनता ने दूर से ही ताड़ लिया. 'फाइटर' के भी औसत प्रदर्शन के पीछे यही वजह थी. ऋतिक रोशन-दीपिका पादुकोण जैसे बड़े नाम ना होते तो 'फाइटर' का हाल बुरा होता.

ऊपर से अब एक नया फॉर्मूला जरूरत से ज्यादा घिसा जाने लगा है- फ्रैंचाइजी और यूनिवर्स. 'सिंघम' जैसी फ्रैंचाइजी का तीसरी फिल्म तक आते-आते, मात्र स्टंट शो बनकर रह जाना दिखाता है कि अब मेकर्स सिर्फ जनता में अपनी पुरानी साख को इस्तेमाल करके हिट्स बना लेना चाहते हैं. दिवाली पर आई 'सिंघम अगेन' को कितना भी हिट कहा जाए, मगर बॉलीवुड के 5-7 बड़े नामों का एक फिल्म में साथ आकर 300 करोड़ भी कलेक्शन ना कर पाना एक मैसेज है. 

इसके ठीक उलट हॉरर यूनिवर्स में 'स्त्री 2' और 'मुंज्या' के साथ नई कहानियां दर्शकों के लिए कुछ इंटरेस्टिंग लेकर आईं तो जनता ने जमकर प्यार दिया, भले इन फिल्मों की कमियां साफ नजर आ रही थीं. मैसेज साफ है, मेकर्स अपनी फिल्ममेकिंग को मजबूत करने और नई-दिलचस्प कहानियां स्क्रीन पर लाने पर फोकस करें, जनता अपने आप थिएटर्स तक खिंची चली आएगी.
 
रिलीज डेट के पचड़े नहीं
2023 से ही बॉलीवुड ने फिल्मों की रिलीज डेट्स को लेकर जो पंगे किए हैं, वो कोई नहीं भूल सकता. 2024 में रिलीज डेट को लेकर मेकर्स की जिद और बिना सोचे समझे प्लानिंग का नतीजा ये रहा कि बेमतलब के क्लैश हुए जिससे फिल्मों को बड़ा नुकसान हुआ. अजय देवगन की 'मैदान' इतनी लम्बे समय से टलती आ रही थी कि अच्छी फिल्म होने के बावजूद ऑडियंस का इससे मन हट गया. 'खेल खेल में' जैसी अच्छी बनी हुई फिल्म, जिसे बाद में जनता ने भी ओटीटी पर खूब सराहा, सिर्फ इसलिए फ्लॉप हो गई कि इसे 'स्त्री 2' के साथ रिलीज कर दिया गया. 

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'मैदान' में अजय देवगन (क्रेडिट: सोशल मीडिया)

दिवाली पर तो हद ही हो गई जब 'भूल भुलैया 3' और 'सिंघम अगेन' के मेकर्स ने एक ही डेट पर फिल्म रिलीज करने की जिद नहीं छोड़ी. आखिरकार दोनों फिल्मों की कमाई पर असर पड़ा. साथ ही क्लैश से पहले दोनों फिल्मों के मेकर्स ने स्क्रीन-शेयरिंग को लेकर जो पंगे किए, उससे फिल्म फैन्स का ही मूड खराब हुआ. 2025 में बॉलीवुड को सबसे पहले तो ये सीख लेना चाहिए कि पहले फिल्में पूरी कर लें, फिर रिलीज डेट अनाउंस करें. 
   
साउथ जैसा बनने की कोशिशें नहीं 
साउथ की फिल्मों का एक्शन एक खास तरह का होता है. उसमें हाई-फाई बंदूकों और प्रैक्टिस किए गए स्टंट्स की बजाय हाथ से चलाने वाले धारदार हथियारों और गुत्थमगुत्था होकर लड़ने पर जोर होता है. साउथ की फिल्में शानदार बैकग्राउंड स्कोर लेकर आती हैं. पिछले कुछ समय से बॉलीवुड फिल्मों में इन चीजों को कॉपी करने की कोशिशें साफ नजर आने लगी हैं. मुंबई में बनी हिंदी फिल्मों में खून-खच्चर वाली हिंसा भरने की कोशिशें अलग से ही दिख जाती हैं. 

'बागी 4' पोस्टर (क्रेडिट: सोशल मीडिया)

कुछ समय पहले ही टाइगर श्रॉफ की फिल्म 'बागी 4' का पोस्टर रिलीज हुआ, जो 2025 में रिलीज होनी है. पोस्टर में टाइगर का अंदाज देखते ही सोशल मीडिया की जनता इसे 'साउथ से इंस्पायर बोलने लगी'. इंस्पायर होकर कुछ नया करने और इंस्पिरेशन को हुबहू कॉपी कर डालने में एक बारीक लाइन होती है, जिसे जनता अब बड़े अच्छे से सेन्स कर लेती है. ऑरिजिनल क्रिएटिविटी ही अब बॉलीवुड का भला कर सकती है. 
  
रीमेक तो बिल्कुल नहीं 
तमिल फिल्म 'सोरारई पोटरू' का हिंदी रीमेक 'सरफिरा' बुरी तरह फ्लॉप साबित हुआ. ओटीटी प्लेटफॉर्म्स की पॉपुलैरिटी ने ऑरिजिनल फिल्मों को हर दर्शक तक पहुंचाना शुरू कर दिया है. और 'सोरारई पोटरू' तो लॉकडाउन के समय रिलीज ही सीधा ओटीटी पर हुई थी. ऐसे में देखी हुई कहानी को ही फिर से कैसे देखा जाएगा? 

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'सरफिरा' में अक्षय कुमार (क्रेडिट: सोशल मीडिया)

ऊपर से पिछले कुछ सालों में 'रीमेक' कहकर लाई गई फिल्में इतनी फीकी साबित हुई हैं कि अब ये शब्द अपने आप में लोगों को किसी फिल्म से दूर कर देने के लिए काफी है. वरुण धवन की 'बेबी जॉन' के साथ 2024 खत्म होते-होते जो हश्र हुआ, उसकी सबसे बड़ी वजह यही थी कि ये तमिल फिल्म 'थेरी' का रीमेक थी. जबकि 'थेरी' हिंदी डबिंग में टीवी और यूट्यूब पर खूब देखी गई है. 

जितना फेक पीआर, उतना बंटाधार
बॉलीवुड इंडस्ट्री ने कई साल पहले पीआर के जरिए फिल्मों का माहौल बनाने की जो प्रैक्टिस शुरू की थी, उसका पर्दाफाश खुद इंडस्ट्री के ही लोग कर चुके हैं. ऊपर से 2024 में आई किसी भी फ्लॉप फिल्म के नाम से सोशल मीडिया सर्च कर लीजिए, खुद को फिल्म क्रिटिक-ट्रेड एक्सपर्ट बताने वाले तमाम ऐसे हैंडल मिलेंगे जो इन फिल्मों का पहला पोस्टर आने के साथ ही इन्हें ब्लॉकबस्टर बताते मिलेंगे. 

हद तो ये है कि फिल्म फ्लॉप होने लगती है तब भी ऐसे हैंडल इनके बचाव में लगे रहते हैं, क्योंकि डील तो पूरी करनी ही है. ऐसे में कई नाम तो आम जनता को रट चुके हैं, जिनके सोशल मीडिया हैंडल पर किसी फिल्म की तारीफ दिखते ही लोग तय कर लेते हैं कि इसे नहीं देखना है, ये पक्का खराब निकलेगी. सिद्धार्थ मल्होत्रा की 'योद्धा', अक्षय कुमार की 'बड़े मियां छोटे मियां' और 'सरफिरा' को शानदार फिल्में बताने वाले तमाम 'फिल्म क्रिटिक्स' अभी भी दिख जाएंगे. मगर इन फिल्मों के असली रिव्यू और जनता की राय का असर इन फिल्मों के हाल से ही पता चल रहा होगा. 

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बॉलीवुड लगातार एक ऐसी मशीनरी की तरह नजर आ रहा है जहां कोई भी तिकड़म भिड़ाकर जनता की जेब से टिकट के पैसे निकलवा लेने की कोशिश चल रही है. जबकि जनता को 3 घंटे तक थिएटर्स में, बिना ध्यान बंटे उलझाए रखने की कोशिश गायब होती जा रही है. इसका जवाब जनता ने 2024 में बॉलीवुड को अच्छे से दिया है. देखना ये है कि इंडस्ट्री 2025 में इन गलतियों से बाज आती है या नहीं क्योंकि अब जनता के पास ऑप्शन बहुत हैं और साउथ, पुष्पा 2-कल्कि 2898 AD जैसी पैन इंडिया फिल्मों के साथ हिंदी जनता में बॉलीवुड का ऑप्शन बनने लगा है.

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