दिल वाले दुल्हनिया ले जायेंगे फिल्म में काजोल की मां का किरदार निभाने वालीं फरीदा जलाल आजतक से एक्सक्लूसिव बातचीत पर कहती हैं, मराठा मंदिर टाउन में है. फिल्म के सभी कास्ट इस थिएटर से काफी दूर रहते हैं. यह हमारे लिए एक अलग ही दुनिया हो गई है. बच्चे के तौर पर इस थिएटर से मेरी यादें ताजा हैं. हम बचपन में इस थिएटर में जाने के लिए मरते थे. वहां जाकर फिल्म देखना हमारे लिए बहुत बड़ी बात होती थी. हालांकि आज भी इस थिएटर को लेकर लोगों के बीच पागलपन जस के तस है.
फरीदा आगे कहती हैं, मुगल ऐ आजम, पाकिजा जैसी फिल्में यहीं पर रिलीज हुई हैं. लेकिन एक बात जो है कि डीडीएलजे जैसी कोई फिल्म नहीं रही कि इतने सालों तक चले. यह अपने आपमें एक रेकॉर्ड है. वो भी इस आइकॉनिक मराठा मंदिर में, सबसे बड़ी बात है. मेरे लिए उस थिएटर में जाना सपने जैसे था, आप सोचें कि मेरी एक फिल्म वहां आज भी चल रही है. एक आर्टिस्ट के लिए इससे बड़ी क्या बात होगी. याद है उस दौर में लोग उस थिएटर में घंटों लंबी लाइन लगाए खड़े रहते थे. चाहे धूप हो या बारिश टिकट की आस में लोग टस से मस तक नहीं होते थे. ऐसे में 26 साल तक किसी फिल्म का चलना जादू से कम नहीं है. मैं आज भी जिस इंसान से मिलती हूं, मुझे किसी ने ऐसा नहीं कहा कि उन्होंने पहली बार फिल्म देखी हो.
किसी ने 30 से किसी ने 300 बार डीडीएलजे देखी है. यह कितनी बड़ी बात है. यही सुनने को मिलता है. मेरा रोम-रोम खुश हो जाता हूं. इस फिल्म से जुड़ी इतनी सारी यादें हैं और लोगों से शेयर किया हुआ है कि अब बताने को कुछ रहा ही नहीं. हर बात बासी सी हो गई है. मेरे जेहन में कोई बात बची ही नहीं. अब तो लोगों को मुझसे ज्यादा बातें पता हैं. डीडीएलजे की मेकिंग बहुत शानदार रही थी. यह काफी पार्ट में बनी थी. करण इसके इनचार्ज बने थे. उदय चोपड़ा ने यह अश्योर किया था कि हर कोई इस मेकिंग का हिस्सा रहे और इंटरव्यूज दे. करण हमें ऑनलोकेशन बैठा कर ढेरों सवाल किया करता था और पूछा करता था कि कौन सा सीन फेवरेट है और कौन सा फेवरेट गाना है.
परमीत सेठी ने कही यह बात
यह बात जानकर आपको हैरानी होगी कि हमारी फिल्म 26 साल की हो गई है. रोजाना मराठा मंदिर में फिल्में चली भी है लेकिन मैंने एक बार भी जाकर फिल्म नहीं देखी है. यह जज करने वाली बात है लेकिन पता नहीं ऐसा क्यों हुआ. कभी जा नहीं पाया. परमीत आगे कहते हैं, डीडीएलजे की बात करें कि दुनिया में एकमात्र ऐसी फिल्म होगी, जो इतने सालों तक थिएटर में रही और वहां से निकली नहीं है. इसे हिस्टॉरिक कहना भी कम होगा. यह तो अजूबा हुआ है. क्यों हुआ और कैसे हुआ, यह तो नहीं पता लेकिन कुछ तो खासियत होगी जिस वजह से यह भीड़ से अलग होगी.
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शूटिंग के दिनों को याद करते हुए परमीत कहते हैं, जो स्टेशन पर एक्शन सीक्वेंस था, उसकी शूटिंग हम पनवेल में कर रहे थे. उस रात को शाहरुख, आदित्य चोपड़ा, अर्चना और हम सभी थे. उस रात को हम एक गेम खेल रहे थे, जो काफी यादगार और मस्तीभरा था. गेम के दौरान सभी हंस-हंसकर पागल हो गए थे. शाहरुख उस दौरान आदित्य की जमकर टांग खींच रहे थे. वो रातभर हम जागे रहे और अल सुबह हमारी शूटिंग होनी थी. नींद के झोंक में हमने उस एक्शन सीक्वेंस की शूटिंग की थी.
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फिल्म के बारे में परमीत कहते हैं, कुछ फिल्में ऐसी होती हैं, जो परफेक्ट होती है और उसकी टाइमिंग जबरदस्त होती है. इसमें हर चीज सटीक बैठती है. जो आगे चलकर कल्ट क्लासिक बन जाती है. हमें नहीं पता था कि हम किस ऑइकॉनिक फिल्म का हिस्सा बनने वाले हैं. फिल्म पर उपरवाले का हाथ था. सबको यहां से निकलकर बहुत बड़ा बनना था. शाहरुख को यहां से सुपरस्टार बनना था, मुझे यहां से ब्रेक मिलना था. यह हिस्ट्री होनी थी, जो बेहद ही अनप्लान्ड होती है. मैं इसके लिए ऊपरवाले का दिल से शुक्रिया करता हूं.
नेहा वर्मा