पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुजफ्फरनगर जनपद को शुगर बाउल के नाम से जाना जाता है, क्योंकि यहां सबसे ज्यादा गन्ने की पैदावार होती है. यही वजह है कि एशिया की सबसे बड़ी गुड़ मंडी भी मुजफ्फरनगर में है. यहां के गुड़ की अपनी पहचान है.
इस इलाके की पहचान हमेशा गुड़ की मिठास के लिए रही है, लेकिन 2013 के दंगों ने यहां की तहजीब पर ऐसा दाग लगाया कि पूरे देश और दुनिया में इसकी चर्चा हुई. उस दंगे में हिंदू-मुस्लिम के बीच एक गहरी खाई पैदा हो गई. पलायन जैसी दर्दनाक तस्वीरें सामने आईं. दो समुदाय एक-दूसरे की जान के दुश्मन बन गए.
2014 के लोकसभा चुनाव और उसके बाद 2017 के विधानसभा चुनाव में मुजफ्फरनग दंगा एक बड़ा मुद्दा बना. जब दंगा हुआ तब राज्य में अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली सपा सरकार थी और केंद्र में मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार थी. लिहाजा, लोकसभा चुनाव से लेकर विधानसभा चुनाव तक बीजेपी ने इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया. इसका असर भी दिखा और बीजेपी को पूरे पश्चिमी यूपी से चुनाव में व्यापक जनसमर्थन मिला.
किसान आंदोलन ने पाटी दिलों की दूरियां
कहते हैं वक्त हर जख्म भर देता है. मुजफ्फरनगर में भी ऐसा ही नजर आ रहा है. जो मुजफ्फरनगर दंगों की तपिश लंबे वक्त महसूस करता रहा, वो खेती-किसाने के नाम पर एकजुट हो गया. बता दें कि ये वो इलाका है जहां जाट-गुर्जर समेत मुस्लिम समुदाय के लोग भी खेती-किसानी से जुड़े हैं. यही वजह रही कि जब केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ सड़कों पर उतरे तो जाट-मुस्लिम कंधे से कंधा मिलाकर साथ खड़े नजर आए.
मुजफ्फरनगर महापंचायत: मंच से टिकैत ने लगवाए अल्लाहु-अकबर और हर-हर महादेव के नारे
किसान आंदोलन के बीच ही जब मुजफ्फरनगर में एक महापंचायत बुलाई गई तो वहां से भी एकता की आवाज उठी. किसास नेता राकेश टिकैत ने 'हर-हर महादेव और अल्लाहु-अकबर' का नारा एक साथ लगवाकर हिंदु-मुस्लिम एकता का संदेश दिया.
जिले का इतिहास
मुजफ्फरनगर जनपद का नाम यहां के नवाब रहे मुज़फ्फर अली के नाम पर पड़ा था. यहां महाभारत काल में बसाई गई शुक्रताल नगरी भी मौजूद है, जिसे पश्चिम में सुखदेव तीर्थ नगरी के नाम से भी जाना जाता है, पूरे देश से यहां पर श्रद्धालु आते हैं.
जानकारों की मानें तो महाभारत काल में सुखदेव जी ने यहां राजा परीक्षित को एक वट वृक्ष के नीचे बैठकर गीता पढ़कर सुनाई थी. जिसके चलते शुक्रताल में कई सौ साल पुराना वट वृक्ष आज भी महाभारत काल की यादें ताज़ा किये हुए है.
पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाक़त अली भी मुज़फ्फरनगर के प्रसिद्ध नवाब ख़ानदान से ताल्लुक़ रखते थे. आज भी उनकी कोठी कहकशा एक विशाल स्कूल के रूप में यहां देखी जा सकती है. जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री मुफ़्ती मौहम्मद सईद भी मुज़फ्फरनगर से अपना पहला लोकसभा का चुनाव जीतकर कांग्रेस सरकार में गृह राज्य मंत्री बने थे.
Video: गुलाम मोहम्मद जोला से जानिए, 'हर-हर महादेव-अल्लाहू अकबर' के पीछे की कहानी
राजनीतिक हालात
मुज़फ्फरनगर कुल 6 विधानसभा सीटें हैं. मुजफ्फरनगर सदर, पुरकाजी, चरथावल, बुढ़ाना, खतौली और मीरापुर विधानसभा सीट इस जिले में आती हैं. 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने जनपद की सभी 6 सीटों पर जीत हासिल की थी. मुज़फ्फरनगर सदर विधानसभा से कपिल देव अग्रवाल, पुरकाज़ी से प्रमोद ऊंटवाल, चरथावल से स्वर्गीय विजय कश्यप, बुढ़ाना से उमेश मलिक, खतौली से विक्रम सैनी और मीरापुर विधानसभा से अवतार सिंह भड़ाना चुनाव जीते थे.
सदर सीट- बीजेपी के प्रत्याशी कपिल देव अग्रवाल ने अपने प्रतिद्वंदी सपा के गौरव स्वरूप को 14 हज़ार वोटों के अंतर से हराया था.
पुरकाजी सीट- बीजेपी के प्रमोद ऊंटवाल ने कांग्रेस के दीपक कुमार को 11253 वोटों से मात दी थी.
चरथावल सीट- भाजपा के प्रत्याशी स्वर्गीय विजय कश्यप ने अपने प्रतिद्वंदी सपा के मुकेश चौधरी को लगभग 23231 वोटों से हराकर इस सीट पर कब्जा किया था.
बुढ़ाना सीट- भारतीय जनता पार्टी के उमेश मलिक ने विजय हासिल करते हुए अपने विपक्षी सपा के प्रमोद त्यागी को 13201 वोटों से हराकर जीत हासिल की थी.
खतौली सीट- बीजेपी के विक्रम सैनी ने सपा के चन्दन चौहान को 31374 वोटों से मात देकर इस सीट पर कब्ज़ा किया था.
मीरापुर सीट- भाजपा के अवतार सिंह भड़ाना ने जीत जरूर हासिल की थी लेकिन वो अपने विपक्षी सपा के लियाक़त अली को मात्र 193 वोटों से हरा पाए थे.
यानी जिले में भले ही भाजपा ने क्लीन स्वीप किया हो, लेकिन उसे सीधी चुनौती सपा से ही मिली थी. 2022 के चुनाव में सपा आरएलडी से मिलकर लड़ रही है.
मुजफ्फरनगर में 2013 दंगे से पहले जाट मुस्लिम गठजोड़ से उनके वोट बैंक का रालोद को राजनैतिक लाभ पहुंचता रहा है. लेकिन दंगे के बाद चाहे वो लोकसभा का चुनाव हो या फिर विधानसभा चुनाव, यहां का वोट बैंक समीकरण धर्म और जातिगत आधार पर सिमटकर रह गया है.
2019 के लोकसभा चुनाव में यहां से बीजेपी के संजीव बलियान ने RLD के राष्ट्रीय अध्यक्ष स्वर्गीय चौधरी अजित सिंह को मात दी थी. इस चुनाव में संजीव बालियान को 5,73,780 वोट मिले थे, जबकि चौधरी अजित सिंह को 5,67,254 मत हासिल हुए थे. अब अजित सिंह के बेटे जयंत चौधरी अपनी पार्टी आरएलडी को लेकर आगे बढ़ रहे हैं और सपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं.
बात अगर जिले के जातिगत और धार्मिक समीकरण की करें तो 2013 दंगे से पहले यहां जाट और मुस्लिम का गठजोड़ दबाकर चलता था. इस जनपद का जाट और मुस्लिम वोटर जिस पार्टी पर पड़ जाता था, उसी पार्टी की यहां से जीत हो जाती थी. लेकिन दंगे के बाद यहां 2014 और 2019 में दो लोकसभा चुनाव हुए है. 2017 में विधानसभा चुनाव हुए. इन सभी चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को ही जीत हासिल हुई. जिसका सीधा सा मतलब है कि 2013 दंगे के बाद से यहां चुनाव हिंदू मुस्लिम के आधार पर ही देखने को मिला.
गन्ने का सही वक्त पर पेमेंट और सही दाम इस इलाके का बड़ा मुद्दा रहा है. लंबे समय से गन्ना भुगतान की मांग सही वक्त पर करने की मांग उठती रही है. किसान आंदोलन का चेहरा बने राकेश टिकैत ने इस बार किसानों की आवाज को पुरजोर तरीके से उठाया है. लिहाजा, इस बार गुन्ना भुगतान के अलावा एमएसपी और बिजली बिल समेत किसानों की और भी कई मांगें हैं जो चुनाव का मुद्दा बन रही हैं.
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