यूपी के बुंदेलखंड का एक जिला है झांसी. झांसी जिला भौगोलिक लिहाज से देखें तो बुंदेलखंड के मध्य में बसा है. झांसी शहर का यूपी की सियासत में ही नहीं, देश की राजनीति में भी अहम योगदान रहा है. यहां के राजनेता कभी उत्तर प्रदेश में सरकार बनाने और गिराने के लिए चर्चा में रहे हैं. साल 2017 के विधानसभा चुनाव में यहां की सभी चार विधानसभा सीटों पर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के उम्मीदवार जीते थे.
झांसी जिला उत्तरी भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के जिलों में से एक है. झांसी जिला उत्तर में जालौन, पूर्व में हमीरपुर और महोबा, दक्षिण में मध्य प्रदेश के टीकमगढ़, दक्षिण-पश्चिम में ललितपुर जिला है. पूर्व में मध्य प्रदेश के दतिया और ललितपुर जिले भी हैं जो दक्षिण में पहाड़ी क्षेत्र में फैले हुए हैं. इन्हें 1891 में झांसी जिले में जोड़ा गया था और 1974 में फिर से अलग जिला बना दिया गया.
झांसी यूपी के दक्षिण में पहुंज नदी के तट पर स्थित है. झांसी जिला, झांसी डिवीजन का प्रशासनिक मुख्यालय है, जिसे बुंदेलखंड का द्वार कहा जाता है. झांसी 285 मीटर (935 फीट) की औसत ऊंचाई पर पहुंज नदी और बेतवा नदी के बीच स्थित है. झांसी की पहचान पत्थरीले इलाकों को लेकर भी है. पत्थरों का एक बहुत बड़ा भाग झांसी किले के हर तरफ फैला हुआ है. 1817 से 1854 तक, शहर का प्राचीन नाम बलवंतनगर था. झांसी एक रियासत थी जिस पर मराठा राजाओं का शासन था.
झांसी रियासत पर रानी लक्ष्मी बाई के दत्तक पुत्र दामोदर राव के दावे को अंग्रेजों ने खारिज कर दिया था. जून 1857 से जून 1858 तक रानी लक्ष्मी बाई ने झांसी पर शासन किया. झांसी, उत्तर प्रदेश के सभी अन्य प्रमुख शहरों से सड़क और रेल नेटवर्क के जरिए जुड़ा हुआ है. उत्तर-दक्षिण गलियारा, श्रीनगर से कन्या कुमारी का रास्ता और पश्चिमी-पूर्वी गलियारा भी झांसी से होकर ही गुजरता है. इसके परिणामस्वरूप शहर में बुनियादी ढांचे का विकास हुआ है.
जिले की राजनीतिक पृष्ठभूमि
'बुंदेले हर बोलो के मुंह हमने सुनी कहानी थी, खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी' ये सुनते ही आज भी हृदय में साहस का संचार हो जाता है. बुंदेलखंड का केंद्र झांसी है. मध्य प्रदेश के नजदीक स्थित झांसी जिले की संस्कृति वहां से काफी मेल खाती है. कभी बलवंत नगर के नाम से प्रसिद्ध इस नगर को झांसी का नाम तब मिला जब यहां राजा वीर सिंह जूदेव की ओर से किले का निर्माण कराया जा रहा था. दरअसल, तब वो किला ओरछा स्टेट से झाई सा नजर आता था. झाई सा दिखने के कारण बलवंत नगर को झांसी नाम मिला. झांसी डिवीजनल कमिश्नर का मुख्यालय है जिसमें झांसी, ललितपुर और जालौन जिले शामिल हैं.
सभी सीटों का समीकरण
झांसी जिले में एक लोकसभा सीट है और चार विधानसभा सीटें. मऊरानीपुर विधानसभा सीट पहले चुनाव से ही आरक्षित है. झांसी सदर, बबीना और गरौठा सीट पर भारतीय जनता पार्टी मजबूत स्थिति में है. दलों की बात करें तो मुख्य मुकाबला बीजेपी, बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और समाजवादी पार्टी (सपा) के बीच रहा है.
2017 का जनादेश
झांसी सदर विधानसभा सीटः इस सीट पर 2017 के चुनाव में मुख्य मुकाबला बीजेपी और बसपा के बीच रहा. इस सीट से कांग्रेस ने उम्मीदवार उतारा था. बीजेपी के रवि शर्मा 1 लाख 17 हजार 873 वोट पाकर विजयी रहे. बसपा के सीता राम कुशवाहा 62 हजार 95 वोट के साथ दूसरे और कांग्रेस के राहुल राय 51 हजार 242 वोट के साथ तीसरे स्थान पर रहे थे.
बबीना विधानसभा सीटः इस सीट से 2017 के चुनाव मे बीजेपी के राजीव सिंह विधायक निर्वाचित हुए. राजीव सिंह ने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी सपा के यशपाल सिंह को 16837 वोट के अंतर से हरा दिया था. बसपा के कृष्ण पाल सिंह राजपूत तीसरे स्थान पर रहे थे.
गरौठा विधानसभा सीटः इस सीट से 2017 में बीजेपी के जवाहर लाल राजपूत 93378 वोट पाकर विजयी रहे. राजपूत ने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी सपा के दीपनारायण सिंह यादव को 15831 वोट के अंतर से हरा दिया था. दीपनारायण को 77547 और बसपा के अरुण कुमार मिश्रा को 48378 वोट मिले थे.
मऊरानीपुर विधानसभा सीटः इस विधानसभा सीट से 2017 में बीजेपी के बिहारी लाल आर्य 98905 वोट पाकर विजयी रहे. दूसरे नंबर पर सपा की रश्मि आर्य रहीं जिन्हें 81934 वोट मिले. बसपा के प्रागी लाल 77919 वोट के साथ मिले.
जिले की बड़ी राजनीतिक हस्तियां
कुंवर मानवेंद्र सिंहः यूपी विधान परिषद के प्रोटेम स्पीकर कुंवर मानवेंद्र सिंह खांटी भाजपाई हैं. कुंवर मानवेंद्र पहली दफे 1985 में झांसी की गरौठा विधानसभा सीट से बीजेपी के टिकट पर जीतकर विधानसभा पहुंचे थे. वे 2002 से 2004 तक भी विधान परिषद के प्रोटेम स्पीकर रह चुके हैं.
डॉक्टर चंद्रपाल सिंह यादवः सपा के कद्दावर नेता डॉक्टर चंद्रपाल सिंब यादव राज्यसभा के सदस्य रहे हैं. इनकी गिनती मुलायम सिंह यादव के करीबी नेताओं में होती है. यूपी का मुख्यमंत्री रहते मुलायम सिंह यादव ने एक दफे सार्वजनिक मंच से डॉक्टर चंद्रपाल सिंह यादव को बुंदेलखंड का मिनी मुख्यमंत्री कह दिया था.
बेनी बाईः आजादी के बाद बुंदेलखंड की सबसे लोकप्रिय दलित नेता बेनी बाई धोबी जाति से आती थीं. बेनी बाई कभी इंदिरा गांधी के बेहद करीब रहीं. बेनी बाई ने झांसी की मऊरानीपुर और बबीना सीट से 12 विधानसभा और एक लोकसभा चुनाव लड़ा. वो पांच दफे विधानसभा और लोकसभा चुनाव हारीं. यूपी सरकार में मंत्री रही बेनी बाई के कद का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वो चाहे राज्यमंत्री रही हों या कैबिनेट मंत्री, उनका कार्यालय मुख्यमंत्री के कार्यालय वाली बिल्डिंग में ही रहता था.
रणजीत सिंह जूदेवः बुंदलेखंड की राजनीति में राजा समथर यानी राजा रणजीत सिंह जूदेव का बड़ा नाम रहा है. कभी प्रदेश सरकार में गृह मंत्री रहे राजा रणजीत सिंह के कद का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि एक दौर में इंदिरा गांधी और राजीव गांधी से उनका सीधा संपर्क हुआ करता था. सबसे कम उम्र में विधायक बनने का रिकॉर्ड रणजीत सिंह के ही नाम है. गरौठा विधानसभा सीट से रणजीत सिंह के ही नाम का सिक्का चलता था. बुंदलेखंड की यही इकलौती सीट है जहां कांग्रेस नेता और समथर रियासत के राजा रणजीत सिंह जूदेव के नाम डबल हैट्रिक का रिकॉर्ड है.
अमित श्रीवास्तव