लोकसभा चुनाव 2024 का बिगुल बज चुका है. 19 अप्रैल को पहले चरण का मतदान है. इस बीच भारत पाकिस्तान बॉर्डर पर बसे राजस्थान के जैसलमेर में क्या है चुनावी माहौल? वहां के लोग क्या सोचते हैं? उनकी क्या समस्याएं हैं? इसे लेकर पेश है ग्राउंड रिपोर्ट. भारत-पाकिस्तान सीमा के पास कई गांव इस बात पर अफसोस जता रहे हैं कि पिछले चुनावों के बावजूद, इस क्षेत्र को दशकों तक उपेक्षा और उदासीनता का सामना करना पड़ा है.
26 साल के मोहम्मद खान के भी अन्य युवा की तरह सपने हैं. वह आगे बढ़ने, नई चीजें सीखने और आर्थिक रूप से अच्छा करना चाहते हैं. हालांकि, वह अपने आस-पास की परिस्थितियों के कारण असहाय महसूस करते हैं. खान जैसलमेर के लोंगेवाला में मुराद की ढाणी में रहते हैं, जो 1971 में ऐतिहासिक भारत-पाकिस्तान युद्ध का गवाह है.
लोंगेवाला क्षेत्र में सीमावर्ती क्षेत्र के आसपास के गांव जैसे गमलेवाला, मुराद की ढाणी, सद्देवाला, तनोट पूरी तरह से जर्जर स्थिति में हैं. इन गांवों में रहने वाले मतदाता सात दशक से अधिक समय बीत जाने के बाद भी अपेक्षा का शिकार हैं.
बुनियादी सुविधाओं का अभाव
जैसलमेर के मुराद की ढाणी के निवासी मोहम्मद खान ने बताया कि यहां स्कूल, पानी की कोई व्यवस्था नहीं है. बहुत दिक्कत है. बच्चों को पढ़ने के लिए स्कूल नहीं मिल रहा है. पांचवीं तक की पढ़ाई होती है. पांचवीं के बाद हम बच्चों को कहां भेजें? क्षेत्र के लोग इस बात से भली-भांति परिचित हैं कि क्षेत्र में आगामी लोकसभा चुनाव नजदीक हैं. कई लोग दावा करते हैं कि उन्होंने पहले भी मतदान किया था, लेकिन उनके जीवन में कोई ठोस बदलाव नहीं आया.
रोजगार का नहीं है कोई साधन
खान ने कहा कि हमें उम्मीद है कि कोई अच्छा व्यक्ति यहां आएगा. यहां कोई रोजगार उपलब्ध नहीं है. राजनेता आते हैं लेकिन विकास नहीं हुआ है. लोंगेवाला क्षेत्र में एक सरकारी स्कूल को छोड़कर कोई भी अच्छा स्कूल नहीं है. जब इंडिया टुडे ने स्कूल का दौरा किया, तो वहां एक अकेला शिक्षक मिला, जिसने दावा किया कि वह पांचवीं कक्षा तक अंग्रेजी से लेकर गणित तक सभी विषय पढ़ाता है.
जैसलमेर के मुराद की ढाणी के निवासी मोम्बे खान ने इंडिया टुडे से कहा, मुख्य समस्या स्कूल और पानी की है. पानी की बहुत बड़ी समस्या है. हमें कोई फंड नहीं मिलता है. मुराद की ढाणी के एक अन्य निवासी मंगन खान ने कहा, 'हम रामगढ़ से 40 किलोमीटर दूर बैठे हैं. सुविधाओं की कमी है. कोई डॉक्टर नहीं हैं. अगर किसी आदमी के पास अपनी गाड़ी नहीं है, तो वह मर जाएगा.'
जो बच्चे पांचवीं कक्षा से आगे पढ़ना चाहते हैं उन्हें 40 किलोमीटर दूर रामगढ़ जाना पड़ता है. एक अन्य स्कूल, जो आठवीं कक्षा तक है, वह लगभग 20 किलोमीटर दूर है, लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि उस दिशा में सार्वजनिक परिवहन का कोई साधन उपलब्ध नहीं है.
5वीं कक्षा से आगे की पढ़ाई के लिए कोई विकल्प नहीं
शिक्षक नेमीचंद मीना ने कहा, सर, अगर किसी को 5वीं कक्षा से आगे की पढ़ाई करनी है तो उसके लिए रामगढ़ ही एकमात्र विकल्प है, यहां से 40 किलोमीटर दूर रामगढ़ जाना होगा और उच्च शिक्षा के लिए जोधपुर तक जाना होगा. लगभग 40 किलोमीटर के क्षेत्र में कोई निजी या सरकारी अस्पताल नहीं है, बड़ी संख्या में ग्रामीण अपनी देखभाल स्वयं कर रहे हैं. बीमार पड़ने पर रामगढ़ ले जाना पड़ता है. ग्रामीणों का कहना है कि गंभीर बीमारी से पीड़ित व्यक्ति के लिए खतरा ज्यादा है.
निर्दलीय प्रत्याशी रविंदर सिंह भाटी ने कहा, मैं आपको बताना चाहूंगा कि बाड़मेर के शिव और जैसलमेर के कुछ हिस्से में डीएनपी, डेजर्ट नेशनल पार्क है, जहां आज तक स्कूल, नेटवर्क, पानी, स्वास्थ्य इनमें से कोई भी सुविधा नहीं है.
इस क्षेत्र में कई युवाओं और बूढ़ों के लिए आजीविका का एकमात्र स्रोत भेड़ और बकरियों का पालन है.
मुराद की ढाणी से करीब 5 किलोमीटर दूर राजपूत बहुल गमलेवाला गांव के 25 साल के बाबू सिंह की जिंदगी बिल्कुल मोहम्मद खान जैसी ही है. वह भी अपने भाग्य पर अफसोस जताते हुए दावा करते हैं कि बकरी और भेड़ पालने के अलावा गांव में करने के लिए बहुत कुछ नहीं है. मोहम्मद खान की तरह, वह भी जीवन में आगे बढ़ना चाहते हैं, लेकिन अवसर नहीं है. गमलेवाला गांव सहित लोंगेवाला में स्थित गांवों में घरों तक जाने के लिए पक्की सड़कें नहीं हैं.
देव अंकुर