प्रतापगढ़ लोकसभा सीट: कांग्रेस अपने दुर्ग में वापसी कर पाएगी

लखनऊ और इलाहाबाद के बीचों बीच बसी  प्रतापगढ़ लोकसभा सीट एक दौर में कांग्रेस का गढ़ रही है, कांग्रेस सरकार में विदेश मंत्री रहे राजा दिनेश सिंह यहीं से चुनकर संसद पहुंचते रहे हैं. लेकिन मौजूदा समय में अपना दल का कब्जा है.

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कांग्रेस प्रतीकात्मक फोटो कांग्रेस प्रतीकात्मक फोटो

कुबूल अहमद

  • नई दिल्ली,
  • 23 मार्च 2019,
  • अपडेटेड 9:34 AM IST

उत्तर प्रदेश की प्रतापगढ़ लोकसभा सीट देश की हाई प्रोफाइल सीटों में से एक रही है. लखनऊ और इलाहाबाद के बीचों बीच बसी ये सीट एक दौर में कांग्रेस का गढ़ थी. कांग्रेस सरकार में विदेश मंत्री रहे राजा दिनेश सिंह यहीं से चुनकर संसद पहुंचते रहे हैं. लेकिन मौजूदा समय में इस सीट पर अपना दल का कब्जा है. आंवला के उत्पादन में प्रतापगढ़ सूबे ही नहीं बल्कि देश भर में मशहूर है. यहां के लोगों का कृषि मुख्य व्यवसाय है. बेल्हा प्रतापगढ़ के नाम से जाना जाता था क्योंकि यहां सई नदी के किनारे मां बेल्हा देवी का मंदिर है.

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राजनीतिक पृष्ठभूमि

आजादी के बाद से ही प्रतापगढ़ लोकसभा सीट पर अभी तक करीब 15 बार लोकसभा सभा चुनाव हुए हैं. इनमें से 9 बार कांग्रेस ने जीत हासिल की है. जबकि एक बार सपा और एक ही बार बीजेपी जीत सकी है. इसके अलावा अपना दल, जनसंघ और जनता दल ने भी एक-एक बार जीत हासिल की है.

प्रतापगढ़ लोकसभा सीट 1957 में बनी है, इससे पहले इस इलाका का बड़ा हिस्सा फूलपुर लोकसभा सीट के तहत आता था. 1957 में कांग्रेस के मुनीश्वर दत्त उपाध्याय जीतकर सासंद पहुंचे. हालांकि दूसरे ही चुनाव 1962 में जनसंघ से अजीत प्रताप सिंह ने जीत हासिल की. इसके बाद 1967 में कांग्रेस ने दोबारा यहां जीत हासिल की और इस बार कांग्रेस के नेता दिनेश सिंह यहां के सांसद बने और वो लगातार दो बार इस सीट पर जीतकर विदेश मंत्री बने.  

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1977 में इस सीट पर रूपनाथ सिंह यादव लोकदल से उम्मीदवार बनकर उतरे और उन्होंने दिनेश सिंह को मात देकर संसद पहुंचे. अजीत सिंह ने कांग्रेस का दामन थाम लिया और 1980 में जीतने में सफल रहे, लेकिन 1984 में पार्टी ने दिनेश सिंह को मैदान में उतारा तो वो लगातार दो बार जीत हासिल की, लेकिन 1991 में जनता दल से राजा अभय प्रताप सिंह सांसद बने.

1996 में कांग्रेस के टिकट पर दिनेश सिंह की बेटी राजकुमारी रत्ना सिंह प्रतापगढ़ की पहली महिला सांसद बनी. 1998 में पहली बार बीजेपी ने राम विलास वेदांती उतारकर यहां कमल खिलाने में कामयाब रही. हालांकि 1999 में राजकुमारी रत्ना सिंह ने उन्हें हरा दिया. लेकिन 2004 में समाजवादी पार्टी के अक्षय प्रताप सिंह ने यहां की सीट पर जीत दर्ज और 2009 के चुनाव में कांग्रेस की रत्ना सिहं जीतने में कामयाब रही. 2014 में बीजेपी ने अपना दल से गठबंधन कर चुनावी मैदान में उतरी और ये सीट अपना दल के खाते में गई. कुंवर हरिबंश सिंह सांसद चुने गए.

सामाजिक ताना-बाना

प्रतापगढ़ लोकसभा सीट पर 2011 के जनगणना के मुताबिक कुल जनसंख्या करीब 23 लाख है. इसमें 94.18 फीसदी ग्रामीण औैर 5.82 फीसदी शहरी आबादी है. 2017 में हुए विधानसभा चुनाव के मुताबिक इस लोकसभा सीट पर पांचों विधानसभा सीटों पर कुल 1682147  मतदाता और 1829  मतदान केंद्र हैं. अनुसूचित जाति की आबादी इस सीट पर 19.9  फीसदी है जबकि अनुसूचित जनजाति की आबादी 0.03 फीसदी है. इसके अलावा प्रतापगढ़ संसदीय सीट पर राजपूत और कुर्मी मतदाताओं के साथ-साथ ब्राह्मण मतदाता काफी निर्णायक भूमिका में हैं. जबकि 14 प्रतिशत मुस्लिम आबादी भी है.

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प्रतापगढ़ लोकसभा सीट के तहत पांच विधानसभा क्षेत्र आते हैं,  जिनमें रामपुर खास, विश्वनाथ गंज, प्रतापगढ़, पट्टी और रानीगंज विधानसभा सीटें शामिल है. इनमें से रामपुर खास कांग्रेस के पास, विश्वनाथ गंज और प्रतापगढ़ अपना दल के पास है तो पट्टी और रानीगंज पर बीजेपा कब्जा है.  

2014 का जनादेश

2014 के लोकसभा चुनाव में प्रतापगढ़ संसदीय सीट पर 52.12 फीसदी मतदान हुए थे. इस सीट पर अपना दल के कुंवर हरिबंश सिंह ने बसपा के आसिफ निजामुद्दीन सिद्दीकी को एक लाख 68 हजार 222  वोटों से मात देकर जीत हासिल की थी.

अपना दल के कुंवर हरिबंश सिंह  को 3,75,789 वोट मिले

बसपा के सिफ निजामुद्दीन सिद्दीकी को 3,09,858 वोट मिले

कांग्रेस की राजकुमारी रत्ना सिंह को 1,38,620  वोट मिले

सपा के प्रमोद कुमार पटेल को 1,20,107 वोट मिले

सांसद का रिपोर्ट कार्ड

प्रतापगढ. लोकसभा सीट से 2014 में जीते कुंवर हरिबंश सिंह ने लोकसभा में बेहतर प्रदर्शन रहा है. पांच साल में चले सदन के 331 दिन में वो  299 दिन उपस्थित रहे. इस दौरान उन्होंने 1050 सवाल उठाए और 33 बहसों में हिस्सा लिया. इतना ही नहीं उन्होंने पांच साल में मिले 25 करोड़ सांसद निधि में से 20.99 करोड़ रुपये विकास कार्यों पर खर्च किया.

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