MP की 8 सीटों पर रण: मालवा-निमाड़ ने बदला था सूबे का मिजाज, BJP को कड़ी चुनौती

लोकसभा चुनाव के सातवें और आखिरी चरण के तहत मध्य प्रदेश की बची हुई आठ सीटों पर वोटिंग है. जिन सीटों पर चुनाव है, इसके तहत 64 विधानसभा सीटें आती हैं, जिनमें से 40 सीटों पर कांग्रेस का कब्जा है और महज 23 सीटें बीजेपी के पास है. जबकि एक सीट निर्दलीय को मिली थी.

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मंदसौर में कांग्रेस की रैली, CM भपेश बघेल, राहुल गांधी, CM कमलनाथ मंदसौर में कांग्रेस की रैली, CM भपेश बघेल, राहुल गांधी, CM कमलनाथ

कुबूल अहमद

  • नई दिल्ली,
  • 15 मई 2019,
  • अपडेटेड 12:58 PM IST

लोकसभा चुनाव के आखिरी और सातवें चरण में मध्य प्रदेश की आठ संसदीय सीटों पर 19 मई को वोट डाले जाएंगे. ये सभी सीटें मध्य प्रदेश के मालवा और निमाड़ इलाके की हैं, 2014 में बीजेपी इन सभी आठ सीटों को जीतने में कामयाब रही थी. बीजेपी के इस मजबूत गढ़ में कांग्रेस ने पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में जबरदस्त सेंधमारी करके सूबे का सियासी मिजाज बदल दिया था. ऐसे में बीजेपी के सामने अपने दुर्ग को बरकरार रखने की बड़ी चुनौती है.

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बता दें कि मध्य प्रदेश की जिन आठ संसदीय सीटों पर चुनाव हो रहे हैं. इसके तहत 64 विधानसभा सीटें आती हैं, जिनमें से 40 सीटों पर कांग्रेस का कब्जा है और महज 23 सीटें बीजेपी के पास है. जबकि एक सीट निर्दलीय को मिली थी. विधानसभा चुनाव जैसा ही वोटिंग पैटर्न रहा तो बीजेपी के लिए अपने पुराने नतीजे दोहराना आसान नहीं है.

इंदौर:

इंदौर लोकसभा सीट को बीजेपी का मजबूत दुर्ग माना जाता है. बीजेपी ने इस सीट पर पहली बार 1989 में कब्जा जमाया था, इसके बाद से जीत का यह सिलसिला लगातार जारी है. इंदौर से लगातार आठ बार बीजेपी की सांसद रही सुमित्रा महाजन ने उम्र के चलते इस बार चुनावी मैदान में नहीं उतरने का फैसला किया तो बीजेपी ने उनकी जगह शंकर लालवानी को प्रत्याशी बनाया है. कांग्रेस ने इस सीट पर पंकज सांघवी को उतारा है. इस तरह से यहां कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधी लड़ाई होती दिख रही है. विधानसभा चुनाव के बाद इंदौर का राजनीतिक समीकरण बदल गया है, यहां की आठ में से कांग्रेस और बीजेपी दोनों के पास चार-चार सीटें हैं.

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देवास:

मध्य प्रदेश की देवास लोकसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है. इस सीट पर कांग्रेस ने पद्मश्री और कबीर वाणी गाने वाले भजन गायक प्रहलाद सिंह टिपानिया पर दांव लगाया है. जबकि बीजेपी ने टिपानिया के खिलाफ अपने मौजूदा सांसद का टिकट काटकर पूर्व जज महेंद्र सिंह सोलंकी को मैदान में उतारा है. दोनों ही पार्टियों के उम्मीदवार अपनी राजनीतिक पारी का आगाज लोकसभा चुनाव से कर रहे हैं.

यह सीट 2008 में वजूद में आई थी. अस्तित्व में आने के बाद पहली बार 2009 में हुए चुनाव में कांग्रेस के सज्जन कुमार ने जीत दर्ज की थी. वह थावरचंद गहलोत को हराकर संसद पहुंचे थे. इसके बाद 2014 में मोदी लहर पर सवार बीजेपी ने यह सीट कांग्रेस से छीन ली और यहां से मनोहर ऊंटवाल सांसद बने. बीजेपी इस सीट को बरकरार रखने के लिए अपने मौजूदा सांसद का टिकट काटकर पूर्व जज को उतारा है तो कांग्रेस ने भजन गायक को उतारकर मुकाबले को दिलचस्प बना दिया है. देवास सीट के तहत 8 विधानसभा सीटें आती हैं, जिनमें से चार कांग्रेस और चार बीजेपी के पास है.

उज्जैन:

महाकाल की नगरी उज्जैन में कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधा मुकाबला है. हालांकि यह इलाका बीजेपी का मजबूत गढ़ माना जाता है. उज्जैन संसदीय सीट पर बीजेपी ने अपने मौजूदा सांसद चिंतामणि मालवीय की जगह इस बार अनिल फिरोजिया को मैदान में उतारा है. जबकि कांग्रेस ने बाबूलाल मालवीय को मैदान में उतारकर लड़ाई को दिलचस्प बना दिया है.

2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के चिंतामणि मालवीय ने कांग्रेस के प्रेमचंद गुड्डू को 3 लाख मतों से हराया. पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव के बाद उज्जैन संसदीय सीट का समीकरण बदल गया है, यहां की आठ विधानसभा सीटों में से पांच पर कांग्रेस का कब्जा है और तीन पर बीजेपी का. ऐसे ही वोटिंग पैटर्न रहा तो बीजेपी के लिए यह सीट बरकरार रखना बड़ी चुनौती होगी.

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मंदसौर:

मध्य प्रदेश में किसान आंदोलन के रणभूमि रही मंदसौर संसदीय सीट पर सभी की निगाहें हैं. बीजेपी ने मंदसौर लोकसभा सीट से अपने मौजूदा सांसद सुधीर गुप्ता को फिर से मैदान में उतारा है, जबकि कांग्रेस ने एक बार फिर मीनाक्षी नटराजन पर ही भरोसा जताया है. 2014 में इन्हीं दोनों नेताओं के बीच सियासी जंग हुई थी और  सुधीर गुप्ता ने नटराजन को करीब 3 लाख मतों से मात दी थी. विधानसभा चुनाव के लिहाज से देखें तो मंदसौर संसदीय सीट के तहत 8 विधानसभा सीटें आती हैं, इनमें से 6 कांग्रेस और दो बीजेपी के पास है. ऐसे में कांग्रेस इस सीट पर बीजेपी को कड़ी चुनौती देती हुई नजर आ रही है.

खरगौन:

खरगौना लोकसभा सीट पर बीजेपी ने अपने मौजूदा सांसद सुभाष पटेल का टिकट काटकर गजेंद्र पटेल पर भरोसा जताया है. जबकि कांग्रेस ने गोविंद मुजाल्दा को मैदान में उतारा है. 2014 में बीजेपी के सुभाष पटेल ने करीब ढाई लाख मतों से जीत हासिल की थी. पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस इस इलाके में बड़ी सेंध लगाने में कामयाब रही है. खरगौना लोकसभा सीट के तहत 8 विधानसभा सीटें आती हैं, जिनमें से छह सीटें कांग्रेस ने जीती थी. जबकि महज एक सीट बीजेपी और एक सीट निर्दलीय ने कब्जा जमाया था. ऐसे बदले हुए समीकरण बीजेपी के लिए यह सीट बरकरार रखने बड़ी चुनौती है.

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खंडवा:

खंडवा लोकसभा सीट पर बीजेपी ने अपने मौजूदा सांसद नंदकुमार सिंह चौहान पर एक बार फिर भरोसा जताया है. जबकि कांग्रेस ने अपने दिग्गज नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव को उतारा है. यह इलाका कांग्रेस का मजबूत गढ़ माना जाता था, लेकिन 2014 में मोदी लहर में बीजेपी इसे भेदने में सफल रही थी. नंदकुमार चौहान ने अरुण यादव को तीन लाख से ज्यादा मतों से हराया था. हालांकि 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी चार-चार सीटों पर जीत दर्ज की है. ऐसे में कांग्रेस और बीजेपी के बीच कांटे का मुकाबला है.

रतलाम:

रतलाम-झबुआ इलाका कांग्रेस का मजबूत गढ़ माना जाता है. इस सीट पर कांग्रेस ने अपने दिग्गज नेता और मध्य प्रदेश में आदिवासी चेहरा कांतिलाल भूरिया को एक बार फिर उतारा है. जबकि बीजेपी ने जीएस डोमार को प्रत्याशी बनाया है. 2014 में मोदी लहर में बीजेपी इस सीट को जीतने में कामयाब रही थी और दिलीप सिंह भूरिया यहां से सांसद चुने गए थे. लेकिन एक साल के बाद ही उनका निधन हो गया और बाद में हुए उपचुनाव में कांतिलाल भूरिया बीजेपी से यह सीट छीनने में कामयाब रहे हैं. रतलाम-झबुआ संसदीय सीट के तहत 8 विधानसभा सीटें आती हैं. पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में इन आठ में से 5 कांग्रेस और 3 बीजेपी जीती थी. इस तरह से कांग्रेस और बीजेपी के बीच कांटे का मुकाबला है.

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धार:

धार लोकसभा सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है. इस सीट पर बीजेपी ने अपने मौजूदा सासंद सावित्री ठाकुर का टिकट काटकर छतर सिंह को उतारा है. जबकि कांग्रेस से दिनेश गिरवाल चुनावी मैदान में उतारकर मुकाबले को दिलचस्प बना दिया है. 2014 में इस सीट पर बीजेपी एक लाख से जीत दर्ज की थी, लेकिन विधानसभा चुनाव के बाद समीकरण बदल गए हैं. यहां आठ विधानसभा सीटों में से 6 कांग्रेस और दो बीजेपी के पास हैं. ऐसे में बीजेपी के लिए यह सीट बरकरार रखना आसान नहीं है.

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