Jhrakhand Elections 2019: हुड्डा, पवार, बघेल, गहलोत और अब सोरेन! क्षत्रपों के आगे बीजेपी बेबस

2014 के बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में भी नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी ने शानदार जीत दर्ज की. हालांकि, राज्य विधानसभा चुनावों में कई बार क्षेत्रीय क्षत्रप बीजेपी के लिए खासे सिरदर्द साबित हुए हैं.

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शरद पवार, हेमंत सोरेन और भूपेश बघेल शरद पवार, हेमंत सोरेन और भूपेश बघेल

जावेद अख़्तर

  • नई दिल्ली,
  • 23 दिसंबर 2019,
  • अपडेटेड 6:24 PM IST

  • क्षेत्रीय नेताओं से मिल रही है बीजेपी को कड़ी चुनौती
  • शरद पवार, हुड्डा, गहलोत, बघेल बने बीजेपी के लिए सिरदर्द
  • झारखंड में हेमंत सोरेन ने कराया बीजेपी को सत्ता से बाहर

कांग्रेस मुक्त भारत का नारा देने वाली भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) चुनावी राजनीति में अपने इस एजेंडे में कामयाब भी रही है. 2014 के बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में भी नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी ने दशकों तक देश पर राज करने वाली कांग्रेस को परास्त करने का कारनामा किया. हालांकि, राज्य विधानसभा चुनावों में बीजेपी का असर फीका पड़ता दिखाई दे रहा है और यहां के क्षेत्रीय क्षत्रप बीजेपी की बेबसी का सबब बने हुए हैं.

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पिछले एक साल के भीतर हुए राज्य विधानसभा चुनावों में इसकी तस्वीर देखने को मिली है. राजस्थान में अशोक गहलोत, छत्तीसगढ़ में भूपेश सिंह बघेल और हरियाणा में भूपिंदर सिंह हुड्डा ने कांग्रेस की तरफ से बीजेपी को सबसे बड़ी चुनौती पेश की है. अब झारखंड में कांग्रेस के सहयोग से झारखंड मुक्ति मोर्चा के हेमंत सोरेन बीजेपी के लिए सबसे बड़ी बाधा बने हैं.

राजस्थान और छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव के नतीजे दिसंबर 2018 में आए थे. राजस्थान में कांग्रेस ने अशोक गहलोत को आगे रखकर चुनाव लड़ा था. हालांकि, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट के चलते कांग्रेस ने सीएम पद के लिए गहलोत के नाम की घोषणा नहीं की थी. लेकिन गहलोत के तजुर्बे और सचिन पायलट की युवा शक्ति के सामने न वसुंधरा राजे की चल पाई और न मोदी-शाह के फॉर्मूले ही कारगर साबित हो पाए. राजस्थान में सत्ता परिवर्तन हुआ और अशोक गहलोत मुख्यमंत्री बने.

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छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल को मिली कमान

साल 2000 में छत्तीसगढ़ गठन के बाद सबसे पहले राज्य में कांग्रेस की सरकार बनी और अजित जोगी ने कमान संभाली. वो साल 2003 तक मुख्यमंत्री रहे. लेकिन इसके बाद छत्तीसगढ़ की राजनीति में बीजेपी नेता रमन सिंह ने ऐसी जबरदस्त एंट्री मारी कि 2003 से 2018 तक एकछत्र राज किया. 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस किसानों की कर्जमाफी के नारे के साथ उतरी. जनता ने कांग्रेस पर भरोसा किया और यहां के नतीजों ने सबको चौंका दिया. कांग्रेस ने एकतरफा जीत हासिल करते हुए 68 सीटों पर परचम लहराया, जबकि बीजेपी महज 15 सीटों पर ही सिमट गई. इस प्रचंड बहुमत के साथ भूपेश बघेल सबसे बड़े चेहरे के रूप में उभरे और पार्टी ने उन्हें इसका इनाम देते हुए मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी सौंपी.

पवार और हुड्डा ने दिखाई असली पावर

हाल ही में हुए महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा के चुनाव में क्षेत्रीय क्षत्रपों की ताकत सबसे ज्यादा देखने को मिली. हरियाणा में भूपिंदर सिंह हुड्डा चुनाव से ठीक पहले पार्टी के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर को हटाने पर अड़ गए और उन्होंने हाईकमान को चेतावनी तक दे डाली. केंद्रीय नेतृत्व को हुड्डा की मांग पर राजी होना पड़ा और कुमारी शैलजा को नया प्रदेश अध्यक्ष बनाकर मामले को शांत किया गया. चुनाव प्रचार में भी हुड्डा ने कमान संभाली और केंद्रीय नेतृत्व के बजाय अपने दम पर विपक्षी बीजेपी को करारा झटका दे डाला.

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हरियाणा में भले ही हुड्डा सत्ता हासिल नहीं कर पाए हों लेकिन महाराष्ट्र में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) प्रमुख शरद पवार ने न सिर्फ अपने एजेंडे को पूरा करके दिखाया, बल्कि बीजेपी के मुंह से सत्ता छीनने का काम किया. दरअसल, महाराष्ट्र में 24 अक्टूबर को नतीजे आए और 281 सीटों वाले इस राज्य में किसी भी दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिला. बीजेपी को सबसे ज्यादा 105 सीटें मिलीं, जबकि उसकी सहयोगी शिवसेना ने 56 सीटें जीतीं. दोनों दलों के पास सरकार बनाने के लिए पर्याप्त संख्या थी, लेकिन शिवसेना ढाई-ढाई साल सीएम पद पर अड़ गई. बीजेपी ने शिवसेना की यह डिमांड नहीं मानी, जिसके बाद शिवसेना ने कांग्रेस और एनसीपी से समर्थन लेकर सरकार बना ली.

हालांकि, इस पूरी प्रक्रिया में सबसे अहम रोल शरद पवार ने ही निभाया. शरद पवार के भतीजे और एनसीपी नेता अजित पवार ने अचानक अपनी पार्टी के विधायकों का समर्थन बीजेपी को देकर देवेंद्र फडणवीस के साथ उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली. इस घटना ने महाराष्ट्र और देश की सियासत में भूचाल ला दिया. एनसीपी पर विपक्षी गठबंधन की पीठ में छुरा घोंपने जैसे आरोप लगने लगे और शरद पवार की विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़े होने लगे.

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इसके बाद शरद पवार ने कमान संभाली और सभी एनसीपी विधायकों को अपने पाले में लाकर खड़ा कर दिया. सिर्फ इतना ही नहीं, शरद पवार ने ऐसा पासा फेंका कि अजित पवार को घर वापस आना पड़ा और देवेंद्र फडणवीस की सरकार गिर गई और उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में  शिवसेना-कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन की सरकार बन गई.

हेमंत सोरेन पड़े भारी

सियासी तौर पर कांग्रेस से कहीं आगे चल रही बीजेपी झारखंड में भी मुख्य रूप में कांग्रेस को ही निशाने पर लेती रही. जबकि दूसरी तरफ कांग्रेस की सहयोगी झारखंड मुक्ति मोर्चा के हेमंत सोरेन स्थानीय पहचान और अस्मिता के नाम पर अपना प्रचार करते रहे. नतीजा ये हुआ कि बीजेपी के गैर-आदिवासी मुख्यमंत्री रघुवर दास के सामने जनता ने हेमंत सोरेन पर भरोसा जताया और बीजेपी यहां भी पिछड़ गई.

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