तिरहुत प्रमंडलः बिहार का वो इलाका जिसे लालू-नीतीश मिलकर भी जीत नहीं पाए

बिहार का तिरहुत प्रमंडल बीजेपी का मजबूत दुर्ग माना जाता है. यह ऐसा इलाका है, जहां नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव मिलकर भी बीजेपी को मात नहीं दे सके थे. महागठबंधन बिहार की सियासी जंग भले ही जीतने में कामयाब रहा था, लेकिन तिरहुत प्रमंडल में बीजेपी का भगवा रंग फीका नहीं पड़ा था. ऐसे में इस बार की चुनावी रणभूमि में तो नीतीश कुमार ही एनडीए की अगुवाई कर रहे हैं, जिसके चलते तेजस्वी यादव के लिए इस इलाके में कड़ी चुनौतियों का सामना करना होगा. 

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लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार (फाइल फोटो) लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार (फाइल फोटो)

कुबूल अहमद

  • नई दिल्ली ,
  • 29 सितंबर 2020,
  • अपडेटेड 3:22 PM IST
  • बिहार के तिरहुत प्रमंडल में तेजस्वी यादव को चुनौती
  • 2010 में आरजेडी को तिरहुत इलाके में एक सीट थी
  • तिरहुत प्रमंडल में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है

बिहार विधानसभा चुनाव की सियासी जंग को फतह करने के लिए राजनीतिक दलों ने पूरी ताकत झोंक दी है. बिहार का तिरहुत प्रमंडल बीजेपी का मजबूत दुर्ग माना जाता है. यह ऐसा इलाका है, जहां नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव मिलकर भी बीजेपी को मात नहीं दे सके थे. महागठबंधन बिहार की सियासी जंग भले ही जीतने में कामयाब रहा था, लेकिन तिरहुत प्रमंडल में बीजेपी का भगवा रंग फीका नहीं पड़ा था. ऐसे में इस बार की चुनावी रणभूमि में तो नीतीश कुमार ही एनडीए की अगुवाई कर रहे हैं, जिसके चलते तेजस्वी यादव के लिए इस इलाके में कड़ी चुनौतियों का सामना करना होगा. 

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तिरहुत प्रमंडल में छह जिले आते हैं, जिनमें मुजफ्फरपुर, पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण, सीतामढ़ी, शिवहर और वैशाली शामिल है. इस इलाके में करीब 46 विधानसभा सीटें आती हैं. 2015 के विधानसभा चुनाव में इस इलाके में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी. तिरहुत प्रमंडल की 46 सीटों में से बीजेपी 18, आरजेडी 17, जेडीयू 5, एलजेपी 2 और कांग्रेस को 2 सीटें मिली थी. हालांकि, आरजेडी, जेडीयू और कांग्रेस एक साथ थी. 

वहीं, 2010 के विधानसभा चुनाव नतीजे को देखें तो जेडीयू और बीजेपी साथ मिलकर लड़े थे. तब मामला पूरी तरह से एकतरफा था. जेडीयू-बीजेपी ने मिलकर तिरहुत प्रमंडल की 46 में से 42 सीटें जीतने में सफल रही थीं. बीजेपी ने 20, जेडीयू ने 22 और आरजेडी को महज एक सीट मिली थी. जबकि बाकी सीटें अन्य के खाते में गई थी. इस बार के विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी और जेडीयू के साथ जीतन राम मांझी और एलजेपी भी शामिल हैं, जिसके चलते तेजस्वी यादव को इस इलाके में जीती हुई सीटों को बचाए रखने की बड़ी चुनौती होगी. 

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मुजफ्फरपुर में आरजेडी को चुनौती
मुजफ्फरपुर जिले में 10 विधानसभा सीटें आती हैं. इनमें गायघाट, औराई, मीनापुर, बोचहां, कुढ़नी, सकरा, मुजफ्फरपुर, बरुराज, पारू और साहेबगंज विधानसभा सीटें हैं. 2015 के चुनाव में आरजेडी सबसे ज्यादा छह सीटें जीतने में कामयाब रही थी. वहीं, बीजेपी ने तीन सीटों पर जीत दर्ज की थी जबकि जेडीयू को एक भी सीट नहीं मिली थी. 2010 की बात करें तो बीजेपी और जेडीयू ने मिलकर जिले की 9 सीटों पर जीत दर्ज की थी और आरजेडी को महज एक सीट मिली थी. 

पूर्वी चंपारण में बीजेपी का वर्चस्व
पूर्वी चंपारण जिले में 12 विधानसभा क्षेत्र आते हैं. इनमें रक्सौल, सुगौली, नरकटिया, हरसिद्धि, गोबिंदगंज, केसरिया, कल्याणपुर, पीपरा, मधुबन, मोतिहारी, चिरैया और ढाका विधानसभा सीट है. यह बीजेपी का सबसे मजबूत दुर्ग माना जाता है और पिछले दो चुनाव से यहां कमल ही खिल रहा है. 2015 के चुनाव में जिले की 12 सीटों में से बीजेपी को सात और आरजेडी को चार सीटें मिली थी जबकि एलजेपी को एक सीट मिली थी. 2010 में बीजेपी और जेडीयू ने मिलकर क्लीनस्वीप किया था. बीजेपी ने 6 सीटें और जेडीयू ने 5 सीटें जीती थी जबकि आरजेडी खाता भी नहीं खोल सकी थी. 

पश्चिमी चंपारण: आरजेडी का खाता नहीं खुला
पश्चिमी चंपारण जिले में नौ विधानसभा सीटें आती हैं, जिनमें बाल्मीकिनगर, बेतिया, लौरिया, रामनगर, नरकटियागंज, बगहा, नवतन, चनपटिया और सिकरा सीट शामिल हैं. 2015 के चुनाव लालू-नीतीश साथ रहते हुए भी बीजेपी को मात नहीं दे सके थे. पश्चिमी चंपारण की 9 में से पांच सीटें बीजेपी जीतने में कामयाब रही थी जबकि जेडीयू को महज एक सीट मिली थी. हालांकि, कांग्रेस को यहां दो सीटों पर जीत मिली थी और एक एलजेपी के खाते में गई थी. वहीं, 2010 के विधानसभा चुनाव में जेडीयू को तीन और बीजेपी को चार सीटें मिली थी. 

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सीतामढ़ी: आरजेडी के लिए चुनौती
सीतामढ़ी जिले में छह विधानसभा सीटें आती हैं, जिनमें बथनाहा, परिहार, सुरसंड, बाजपट्टी, सीतामढ़ी और रुन्नौसैदपुर सीट शामिल है. पिछले दो चुनाव से सीतामढ़ी में गठबंधन की सियासत हावी रही है. 2015 के चुनाव में आरजेडी तीन, बीजेपी दो और जेडीयू एक सीट जीतने में कामयाब रही थी. वहीं, 2010 के चुनाव में बीजेपी और जेडीयू तीन-तीन सीटें जीतने में कामयाब रही जबकि आरजेडी खाता भी नहीं खोल सकी थी. इस बार फिर आरजेडी के लिए अपनी सीटें बचाए रखने की चुनौती है. 

वैशाली में आरजेडी का वर्चस्व
वैशाली जिले के आठ विधानसभा सीटें आती हैं, जिनमें हाजीपुर, पातेपुर, मनहार, राघोपुर, राजापाकर, महुआ, वैशाली और लालगंज सीट शामिल है. 2015 के चुनाव में महागठबंधन को छह सीटों मिली थीं. इस दौरान आरजेडी ने चार सीटों पर जीत हासिल की थी. जबकि जेडीयू को दो सीटें मिली थीं और बीजेपी और एलजेपी को एक-एक सीट मिली. 2010 के चुनाव नतीजे को देखें तो एनडीए ने क्लीनस्वीप किया था. जेडीयू ने पांच और बीजेपी ने तीन सीटें जीती थी. 

शिवहर में जेडीयू का कब्जा
शिवहर जिला जेडीयू का मजबूत गढ़ माना जाता है. यहां दो विधानसभा सीटें आती हैं, जिनमें शिवहर और बेलसंड सीट शामिल है. 2015 के चुनाव में यहां की दोनों सीटों पर जेडीयू ने जीत दर्ज की थी और 2010 में जेडीयू का कब्जा रहा. बीजेपी यहां खाता भी नहीं खोल सकी थी. इस बार शिवहर में आरजेडी बनाम जेडीयू के बीच सीधी लड़ाई मानी जा रही है. 

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