बिहार की कैमूर जिले की रामगढ़ विधानसभा सीट प्रदेश की चर्चित सीटों में से एक है, जिस पर प्रदेश नहीं बल्कि देश के लोगों की नजर है. यहां से आरजेडी ने प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के बेटे सुधाकर सिंह को मैदान में उतारा, जिनके खिलाफ बीजेपी से मौजूदा विधायक अशोक सिंह एकबार फिर से किस्मत आजमा रहे हैं. वहीं, बसपा से पूर्व विधायक अंबिका सिंह ने मैदान में उतरकर मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया है, जिसके चलते सुधाकर सिंह को अपने पिता की सियासी विरासत को बचाए रखने के लिए कड़ी चुनौती मिलती रही है.
बता दें कि बिहार की राजपूत बहुल रामगढ़ विधानसभा सीट पर जगदानंद सिंह छह बार काबिज रहे हैं. वह पहली बार साल 1985 में लोकदल के टिकट पर जीतकर रामगढ़ का प्रतिनिधित्व किए थे. इसके बाद वो कभी पीछे मुड़कर नहीं देखे और लगातार छह बार चुनाव जीते. साल 2009 में लोकसभा चुनाव में बक्सर सीट से जीतने के बाद जगदानंद सिंह विधानसभा सदस्यता से इस्तीफा दे दिया, जिसके बाद आरजेडी के टिकट पर अंबिका सिंह ने यहां से जीत दर्ज की.
साल 2010 के चुनाव में अंबिका सिंह आरजेडी के टिकट पर उतरे, जगदानंद सिंह के बेटे सुधाकर सिंह ने बीजेपी के टिकट पर ताल ठोक दी थी. हालांकि, जगदानंद सिंह ने अपने बेटे के खिलाफ चुनाव प्रचार किया और अंबिका सिंह यादव को जीत दिलाई. 2015 में अशोक सिंह बीजेपी के टिकट पर उतरकर आरजेडी के दुर्ग को भेदने में सफल रहे हैं. बीजेपी ने इसीलिए एक बार फिर उन्हीं अशोक सिंह पर भरोसा जताया है.
जगदानंद सिंह आरजेडी के प्रदेश अध्यक्ष हैं और उनके बेटे सुधाकर सिंह रामगढ़ सीट पर अपनी पिता की विरासत को दोबारा से हासिल करने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं. वो जगदानंद सिंह के नाम पर वोट मांग रहे हैं, क्योंकि मंत्री रहते हुए उन्होंने अपने क्षेत्र में काफी काम किया था. शिक्षा, सिंचाई से लेकर तमाम विकास कार्य जगदानंद सिंह ने कराए थे.
लालू प्रसाद यादव के राज में भले ही बिहार के भीतर बिजली की हालत खस्ताहाल रही हो लेकिन रामगढ़ में बिजली रहती थी. इसीलिए वो अपने इलाके में 'बिजुरिया बाबा' के नाम से भी मशहूर हैं. रामगढ़ में उनके बेटे सुधाकर सिंह ने कोरोना काल में क्षेत्र का खूब दौरा किया और इसी का नतीजा है कि पार्टी ने उन्हें चुनाव मैदान में उतारा है. जगदानंद सिंह खुद भी रामगढ़ में बेटे को जिताने के लिए इस बार पसीना बहा रहे हैं.
हालांकि, इस बार के रामगढ़ सीट पर चुनाव काफी रोचक स्थिति में है. बीजेपी और जेडीयू एक साथ है और अशोक सिंह चुनावी मैदान में है, जो नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार के नाम पर वोट मांग रहे हैं. यूपी के सीएम योगी रामगढ़ में अशोक सिंह के पक्ष में चुनावी रैली को संबोधित कर चुके हैं. अशोक सिंह क्षेत्र में 29 साल बनाम 5 की बात कर रहे हैं. वो कहते हैं कि रामगढ़ में जो काम 29 साल में नहीं हो सका था, उसे 5 साल में कराया है.
जगदानंद सिंह के रामगढ़ सीट छोड़ने के बाद आरजेडी के टिकट पर विधायक रहे अंबिका सिंह बीएसपी से चुनावी मैदान में है. उत्तर प्रदेश के सटे बिहार के रामगढ़ इलाके में बसपा का अपना अच्छा खासा सियासी जनाधार है. यही वजह है कि अंबिका सिंह ने यहां यादव और दलित समीकरण के सहारे चुनावी मैदान में उतरे हैं. इस तरह से उनके उतरने से रामगढ़ का मुकाबला त्रिकोणीय होता नजर आ रहा है, ओवैसी और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी के गठबंधन होने के नाते कोइरी और मुस्लिम वोटों के मिलने की उम्मीद लगाए हुए हैं.
रामगढ़ विधानसभा में जीत-हार और उसे लेकर जारी सियासी दांव-पेंच में तीनों प्रत्याशियों के अपने-अपने समीकरण हैं. अशोक सिंह और सुधाकर सिंह के बीच देखना होगा कि राजपूत मतदाताओं की पहली पंसद कौन बनता है. इसी के बावजूद रामगढ़ की लड़ाई अशोक सिंह बनाम सुधाकर सिंह के बीच होती नजर आ रही है. हालांकि, यह देखना होगा कि जगदानंद सिंह की राजनीतिक विरासत पर कौन काबिज होता है?
कुबूल अहमद