बंगाल: जिस सीट के लिए मचा है सबसे ज्यादा कोहराम, कैसा है वो नंदीग्राम

बंगाल की राजनीति में अपने दम पर लेफ्ट का किला ध्वस्त कर बड़ा बदलाव करने वाली ममता बनर्जी इस बार अपनी परंपरागत भवानीपुर सीट छोड़कर पूर्वी मेदिनीपुर जिले की नंदीग्राम सीट से मैदान में उतरी हैं, जिनके खिलाफ बीजेपी ने कभी उनके खास रहे शुभेंदु अधिकारी को उतारकर मुकाबले को काफी रोचक बना दिया है. यही वजह है कि नंदीग्राम सीट पर सभी की निगाहें लगी हुई हैं. 

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ममता बनर्जी और शुभेंदु अधिकारी ममता बनर्जी और शुभेंदु अधिकारी

aajtak.in

  • नई दिल्ली ,
  • 31 मार्च 2021,
  • अपडेटेड 5:35 PM IST
  • नंदीग्राम सीट पर गुरुवार को वोटिंग होनी है
  • ममता बनर्जी बनाम शुभेंदु अधिकारी की फाइट
  • नंदीग्राम सीट पर करीब 35 फीसदी मुस्लिम मतदाता

पश्चिम बंगाल की 294 विधानसभा सीटों में सबसे हाईप्रोफाइल नंदीग्राम विधानसभा क्षेत्र सुर्खियों में है, जहां गुरुवार को वोट डाले जाएंगे. बंगाल की राजनीति में अपने दम पर लेफ्ट का किला ध्वस्त कर बड़ा बदलाव करने वाली ममता बनर्जी इस बार अपनी परंपरागत भवानीपुर सीट छोड़कर पूर्वी मेदिनीपुर जिले की नंदीग्राम सीट से मैदान में उतरी हैं, जिनके खिलाफ बीजेपी ने कभी उनके खास रहे शुभेंदु अधिकारी को उतारकर मुकाबले को काफी रोचक बना दिया है. यही वजह है कि नंदीग्राम सीट पर सभी की निगाहें लगी हुई हैं. 

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नंदीग्राम सीट एक दौर से लेफ्ट के मजबूत गढ़ हुआ करता था, लेकिन नंदीग्राम के जमीन आंदोलन ने सिर्फ क्षेत्र की नहीं बल्कि प्रदेश की सियासत को ही पूरी तरह से बदलकर रख दिया है. टीएमसी का दस साल से कब्जा है, लेकिन बीजेपी के टिकट से शुभेंदु अधिकारी के उतरने से ममता बनर्जी के लिए कड़ी चुनौती खड़ी हो गई है. यही वजह है कि ममता बनर्जी दूसरे चरण के प्रचार के अंतिम तीन दिन तक नंदीग्राम में डेरा जमाए रखा जबकि प्रचार के आखिरी दिन ने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और हाल ही में बीजेपी के दामन थामने वाले मिथुन चक्रवती ने रोड शो करके शुभेंदु अधिकारी के पक्ष में माहौल बनाने की कवायद की है. 

क्या कहते हैं समीकरण
नंदीग्राम विधानसभा क्षेत्र में 70 फीसदी आबादी हिंदुओं की है जबकि शेष आबादी मुस्लिमों की है. मुस्लिम वोटर यहां निर्णायक साबित होते आए हैं. नंदीग्राम सीट पर पिछले तीन चुनावों के नतीजे को देखें तो 2006 में पहले और दूसरे नंबर पर रहने वाले दोनों ही प्रत्याशी मुसलमान थे. 2011 में भी यहां मुस्लिम उम्मीदवार को ही जीत मिली थी. और सबसे बड़ी बात कि जीत-हार का अंतर 26 फीसदी था. वहीं, 2016 में यहां से शुभेंदु जीते थे, लेकिन अंतर महज 7 प्रतिशत था.

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नंदीग्राम में 53 फीसदी महिष्य समुदाय की आबादी है. ये मुख्य तौर पर खेती-किसानी करने वाली जाति है. माना जाता है कि इनकी वजह से ही नंदीग्राम का आंदोलन सफल हुआ. बीजेपी इसी समुदाय पर नजरें गड़ाए बैठी है. राजनीतिक पंडितों की मानें तो नंदीग्राम सीट पर दलित मतदाताओं का वोट बहुत ही महत्वपूर्ण होने वाला है. ममता और शुभेंदु के लिए अब यह प्रतिष्ठा की लड़ाई बन चुकी है. साथ ही यहां अधिकारी बंधुओं के प्रभाव को कोई भी इनकार नहीं कर सकता.

मुस्लिम वोटों का प्रभाव
नंदीग्राम सीट पर मुस्लिम वोटर निर्णायक साबित होते आए हैं. नंदीग्राम सीट पर पिछले तीन चुनावों के नतीजे को देखें तो 2006 में पहले और दूसरे नंबर पर रहने वाले दोनों ही प्रत्याशी मुसलमान थे.  2011 में भी यहां मुस्लिम उम्मीदवार को ही जीत मिली थी. और सबसे बड़ी बात यह है कि जीत-हार का अंतर 26 फीसदी था. वहीं, 2016 के विधानसभा चुनाव में शुभेंदु अधिकारी ने इस सीट पर सीपीआई के अब्दुल कबीर शेख को 81 हजार 230 वोटों से मात दी थी. उस वक्त शुभेंदु को यहां कुल 1 लाख 34 हजार 623 वोट मिले थे. 

नंदीग्राम विधानसभा सीट पर 30 फीसदी के आसपास मुस्लिम आबादी है. ऐसे में मुस्लिम मतदाता इस सीट पर काफी निर्णायक भूमिका अदा करते रहे हैं. मुस्लिम वोटों के समीकरण को देखते हुए माना जा रहा था कि लेफ्ट-कांग्रेस गठबंधन किसी मुस्लिम प्रत्याशी पर दांव लगा सकती हैं, क्योंकि पिछले तीन चुनाव में सीपीआई मुस्लिम कैंडिडेट पर दांव लगाती रही है. हालांकि, लेफ्ट ने मीनाक्षी मुखर्जी पर भरोसा जताया है. ऐसे में टीएमसी और बीजेपी के बीच सीधी टक्कर में मुस्लिम मतदाता का झुकाव ममता बनर्जी के पक्ष में हो सकता है. 

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नंदीग्राम आंदोलन
पिछले दशकों की राजनीति में नंदीग्राम आंदोलन को हथियार बना कर ही वर्तमान सीएम ममता बनर्जी ने लेफ्ट को अपदस्थ करने में सफलता पाई थी. 2007 में तात्कालीन सीएम बुद्धदेव भट्टाचार्य के नेतृत्व में पश्चिम बंगाल की लेफ्ट सरकार ने सलीम ग्रूप को 'स्पेशल इकनॉमिक जोन' नीति के तहत नंदीग्राम में एक केमिकल हब की स्थापना करने की अनुमति प्रदान करने का फैसला किया था.

राज्य सरकार की योजना को लेकर उठे विवाद के कारण विपक्ष की पार्टियों ने भूमि अधिग्रहण के खिलाफ आवाज उठाई. टीएमसी, जमात उलेमा-ए-हिंद और कांग्रेस के सहयोग से भूमि उच्छेद प्रतिरोध कमिटी (BUPC) का गठन किया गया और सरकार के फैसले के खिलाफ आंदोलन शुरू किया गया. इस आंदोलन का नेतृत्व तात्कालीन विरोधी नेत्री ममता बनर्जी कर रही थीं और उनके सिपहसलार बनकर शुभेंदु अधिकारी उभरे थे. 

बीस साल बाद टीएमसी से शुभेंदु जीते

बता दें कि नंदीग्राम सीट पर 1996 में कांग्रेस के देवीशंकर पांडा के बाद 2016 में टीएमसी से शुभेंदु अधिकारी जीतने वाले हिंदू नेता थे. इस बीच यहां से जीतकर विधायक बनने वाले सभी मुस्लिम थे. 2006 के विधानसभा चुनाव में  भाकपा के इलियास मोहम्मद विजयी हुए. उन्हें 69,376 वोट मिले थे. इलियास ने टीएमसी के एसके सुफियान को हराया था. 2011 में नंदीग्राम सीट से फिरोजा बीबी को टीएमसी के टिकट पर जीत मिली थी. 2009 के उपचुनाव में इस सीट पर टीएमसी की फिरोजा बीबी विजयी हुईं. 

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नंदीग्राम में धुर्वीकरण का खेल

दरअसल, नंदीग्राम विधानसभा क्षेत्र कई मामलों में राज्य के अन्य क्षेत्रों से पिछड़ा है और कई मामलों में अन्य क्षेत्रों से आगे है. पिछले दस सालों में यहां बड़े पैमाने पर मत्स्य पालन का काम शुरू हुआ है. किसान खेतों को तालाब में बदल चुके है, जिनमें चिंगड़ी (झींगे) का उत्पादन होता है. रेयापाड़ा से खाल (नहर) के किनारे आगे बढ़ने पर कई जगहों पर हालिया खोदे गए तालाब दिखाई देते हैं, जिनमें से कुछ में मत्स्य पालन होता है कुछ सूख गए हैं. इसके बावजूद दोनों ही पार्टियां नंदीग्राम में ध्रुवीकरण का सियासी खेल खेलती नजर आ रही हैं.  

शुभेंदु को घेरने के लिए ममता के खास सिपहसालार राज्यसभा सांसद दोला सेन व पूर्व मंत्री पूर्णेन्दु बसु इलाके में डेरा डाले हुए हैं तो बीजेपी की ओर से धर्मेंद्र प्रधान एक सप्ताह से डेरा जमाए हुए हैं. इस तरह से कुल मिलाकर पूर्व मेदिनीपुर जिले में हलदी नदी के किनारे स्थित नंदीग्राम सीट पर इस बार कांटे की टक्कर होती नजर आ रही है.  


 

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