आज से 73 साल पहले 15 अगस्त 1947 को देश को आजादी मिली थी. ये दिन पूरी दुनिया में भारत के स्वतंत्रता दिवस के तौर पर जाना जाता है. लेकिन, आप ये जानकर हैरान होंगे इसी देश में कहीं पर 18 अगस्त को भी स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है. जानें, इसके पीछे की रोचक कहानी.
ये थी वजह
बात 12 अगस्त 1947 की है. तब ऑल इंडिया रेडियो पर खबर आई कि भारत को आजादी मिल गई है. साथ ही बंटवारे की खबर भी आई. इस खबर में जिक्र आया पश्चिम बंगाल के नदिया जिले का, खबर के मुताबिक यहां के नदिया जिले को पाकिस्तान में शामिल किया जा रहा था. रेडियो पर आई इस खबर के बाद हिंदू बहुल नदिया के इलाके में विद्रोह शुरू हो गया.
पश्चिम बंगाल के नदिया जिले को लेकर ये प्रशासनिक गलती हुई थी. ये गलती थी उस अधिकारी को जिसे भारत और पाकिस्तान के बंटवारे की सीमा रेखा तय करने की जिम्मेदारी दी गई थी. अंग्रेज अफसर सर रेडक्लिफ ने पहली बार में गलत नक्शा बना दिया था जिससे नदिया जिले को पाकिस्तान में शामिल दिखा दिया गया. इस तरह नदिया जिले को पूर्वी पाकिस्तान में शामिल कर दिया गया था.
बता दें कि आजादी से पहले नदिया में पांच सब डिविजन कृष्णानगर सदर, मेहरपुर, कुष्टिया, चुआडांगा और राणाघाट आते थे. बंटवारे में ये इलाके जो वर्तमान में शहर हैं, पूर्वी पाकिस्तान में शामिल कर दिए गए थे. इस खबर के फैलने के बाद नदिया में दंगे भड़क उठे. आक्रोशित लोगों के प्रदर्शन से दो दिनों तक बवाल मचा रहा. ज्यादातर लोग ब्रिटिश हुकूमत के फैसले के विरोध में सड़क पर उतर आए थे. यहां महिलाओं ने दो दिनों तक घरों में चूल्हे तक नहीं जलाए. एक तरह से यहां दो धर्मों के बीच युद्ध जैसे हालात बन गए थे.
उधर नदिया जिले के मुस्लिम पाकिस्तान में शामिल किए जाने की खबर को लेकर उत्साहित हो गए थे. पहले नदिया जिले को पूर्वी पाकिस्तान में शामिल किए जाने को लेकर खबर आई थी. यही नहीं मुस्लिम लीग के कुछ नेताओं ने अपने समर्थकों के साथ कृष्णानगर पब्लिक लाइब्रेरी पर पाकिस्तानी झंडे फहरा दिए थे. यहां नेताओं ने रैलियां निकालीं और पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगने लगे. इससे हालात और भी बिगड़ चुके थे.
ब्रिटिश हुकूमत को बदलना पड़ा फैसला
इलाके में बिगड़ते हालात अब काबू से बाहर थे. आम जनता का विद्रोह इतना बढ़ गया कि ब्रिटिश हुकूमत को अपना फैसला वापस लेना पड़ गया. हुआ यूं कि नदिया जिले में विद्रोह की खबर जब देश के अंतिम वायसराय लोर्ड माउंटबेटन तक पहुंची तो उन्होंने रेडक्लिफ को तत्काल अपनी गलती सुधारने के आदेश दिए. अब रेडक्लिफ ने नक्शे में कुछ बदलाव किए और नदिया जिले के राणाघाट, कृष्णानगर, और करीमपुर के शिकारपुर को भारत में शामिल किया गया. हालांकि इस सुधार प्रक्रिया में कुछ वक्त लग गया. इस तरह पूरी कागजी कार्रवाई के बाद नदिया जिला 17 अगस्त की आधी रात को भारत में शामिल हुआ. वो इसी दिन भारत का हिस्सा बन पाए यहां के लोगों में उत्साह और इलाके में खुशियां मनाई जानें लगीं.
फिर इतिहास में दर्ज हो गया जिला
हिन्दुस्तान में शामिल होने के फैसले के बाद 18 अगस्त को कृष्णानगर लाइब्रेरी से पाकिस्तान का झंडा उतार दिया गया. अब यहां पर भारतीय तिरंगा फहराया गया. पूरे देश में जहां 15 अगस्त को ही तिरंगे का जश्न मना लिया गया था, वहीं यहां तिरंगा फहराने की तारीख बदल गई. उस वक्त के कानून के मुताबिक राष्ट्रध्वज के सम्मान में आम नागरिक सिर्फ 23 जनवरी, 26 जनवरी और 15 अगस्त को ही झंडा फहरा सकते थे. लेकिन यहां के लोगों ने 18 अगस्त को झंडा फहरा दिया था.
सवाल उठा तो दे दी चुनौती
18 अगस्त को आजादी हासिल करने के नदिया जिले के संघर्ष को यादगार बनाने के लिए स्वतंत्रता सेनानी प्रमथनाथ शुकुल के पोते अंजन शुकुल ने 18 अगस्त को ही स्वतंत्रता दिवस मनाने को चुनौती दे दी. उनके लंबे संघर्ष के बाद साल 1991 में केंद्र सरकार ने उन्हें 18 अगस्त को नदिया में झंडा फहराने की इजाजत दे दी. तब से हर साल नदिया जिले और उसके अंतर्गत आने वाले शहरों में 18 अगस्त को आजादी का जश्न मनाया जाता है. 18 अगस्त के दिन यहां लोग पूरे धूमधाम से किसी त्योहार की तरह इस दिन को मनाते हैं. यहां झंडारोहण भी इसी दिन किया जाता है.
मानसी मिश्रा