यीपूएससी रिजल्ट 2023 में इस साल एक हजार 16 छात्रों का चयन हुआ है. इस परीक्षा में मृणालिका राठौड़ 125वीं रैंक लेकर आईं हैं. मृणालिका का रिजल्ट सामने आती है पूरे गांव मे खुशी का महौल बन गया था. मृणालिका जब अपने गांव पहुंची तो उन्हें घोड़ी पर बिठाकर गाजे-बाजे के साथ जुलूस निकाला गया और लोगोंं ने खूब शुभकामनाएं दीं.
यूपीएससी क्लियर करने के बाद गांव में हुआ भव्य स्वागत
मृणालिका राठौड़ आईएएस बनकर अपने पैतृक गांव राजस्थान के मोडीकालां पहुंची तो वहां के सरपंच शिवपाल सिंह मातवा ने घोड़ी मंगवाई और मृणालिका को उसके ऊपर बिठवाकर पूरे गांव में जुलूस निकाला. स्वागत कार्यक्रम के दौरान अपने संबोधन में मृणालिका ने बताया कि उन्होंने यह परीक्षा हिंदी मीडियम से दी थी. हिंदी मीडियम को लेकर रिसोर्सेज कम हैं लेकिन, अगर उम्मीदवार डिमांड करें ते रिसोर्सेज को बढ़ाया भी जा सकता है. मृणालिका ने आगे कहा कि ऐसा नहीं है कि मौजूदा स्टूडेंट अच्छी रैंक नही ला सकते हैं. यूट्यूब पर वीडियो देखिए और टाइटल क्लियर कीजिए. यूपीएससी में मेरा मानना है कि मीडियम का कोई लेना देना नहीं है.
महिलाओं के लिए उदाहरण पेश करना चाहती हैं मृणालिका
मृणालिका ने आगे कहा कि ऐसा कोई काम नहीं है, जो हम और आप नहीं कर सकते हैं. यदि व्यक्ति कुछ करने की ठान लेता है तो वह आसान हो जाता है. जो भी तैयारी कर रहे हैं, उनको यही कहना चाहती हूं कि समय के अनुकूल मेहनत करें तो सफलता जरूर मिलेगी. मेरी इच्छा थी समाज के लिए एक महिला होने के नाते एक अच्छा उदाहरण पेश करूं, ताकि और भी महिलाएं प्रेरित हो सकें. आईएएस के लिए तो माता-पिता हमेशा मोटिवेट करते थे. सीनियर सेकेंडरी पास करते ही दिल्ली की लेडी श्रीराम कॉलेज यही सोचकर गई थी कि आईएएस बनना है, मगर वहां जाकर मैं सोशल वर्क में इनवॉल्व हो गई थी.
ऑफिसर बनूंगी तो ज्यादा वैल्यू होगी- मृणालिका
मृणालिका ने आगे बताया कि कॉलेज के पास "चहल" नाम से एक कम्युनिटी प्रोजेक्ट था, जहां मैं पढ़ाया करती थी. मैं इन गतिविधियों में इतना व्यस्त हो गई थी कि आईएएस बनने के बारे में सोच भी नहीं सकती थी. तब मैंने महसूस किया कि जिस तबके से मैं आती हूं, अगर मैं ऑफिसर बनूंगी तो ज्यादा वैल्यू होगी. अभी जो मैं बदलाव लाने का प्रयास कर रही हूं, एक ऑफिसर बनने के बाद ज्यादा प्रभावी कार्य कर सकूंगी. शुरू में इसके लिए मैनेजमेंट काफी डिफिकल्ट था. मेरे पहले 4 प्रिलिम्स क्यों नही निकले, इसका कारण शायद सही टाइम मैनेजमेंट न होना भी एक कारण हो सकता है. आईएएस नौकरी एक सेवा करने का माध्यम है. जब भी मेरे लिए कोई काम होगा तो उसे बेहतर तरीके से करूंगी. यदि कोई काम आउट ऑफ़ द वे भी है और मेरे कोड ऑफ कंडक्ट में है तो पूरी कोशिश रहेगी कि मैं उसे करूं.
तैयारी करते समय घंटों को काउंट नहीं किया
मेरी आरएएस में बिल्कुल भी रुचि नहीं थी, फिर भी मैंने दो बार परीक्षा दी, मगर प्रिलिम्स भी नही निकाल पाई. इस बार जब मैं यूपीएससी मेन्स देकर आई तो 5 दिन बाद आरएएस का प्री भी दिया, मगर वो नही निकल पाया. किस्मत भी बहुत ज्यादा काम आती है. मैंने तैयारी करते हुए कभी घंटो को काउंट नही किया, क्योंकि मैं कहीं न कहीं व्यस्त रहती थी. मैंने कंटेंट को कवर करने पर ज्यादा फोकस किया. मैंने 5 सालों में बनाए नोट्स को ही रिवाइज किया है. मेरी सफलता में परिजनों एवं दोस्तों का अहम रोल रहा है.
केशाराम गढ़वार