तमिलनाडु के पंचामलाई की पहाड़ियों में बना एक छोटा सा सीमेंट का घर, घर के बाहर कभी चूल्हे पर खाना बनाती लड़की, कभी खेतों में काम करती वही लड़की, देखने में बिल्कुल साधारण सी ये लड़की जो घर के सारे काम संभालते हुए भी किताबों का साथ नहीं छोड़ती है, जो सारी परेशानियों को अपने हौसले से पस्त करते हुए आगे बढ़ती है, जिसके पढ़ाई करने के जुनून ने उसे कभी रुकने नहीं दिया. तमाम परेशानियों के साथ उस लड़की का एक आदिवासी होने के बाद भी आगे बढ़ते रहना अपने आप में उसे सबसे खास बनाता है. ये कहानी है तमिलनाडु के पंचामलाई की पहाड़ियों में रहने वाली दिहाड़ी मजदूर की 18 साल की एक आदिवासी बेटी रोहिणी की.
एक आदिवासी इलाके से निकलकर NIT Trichy तक का सफर तय करने वाली रोहिणी किसी प्रेरणा से कम नहीं हैं. रोहिणी हर उस शख़्स के लिए एक मिसाल के तौर पर उभरी हैं जो न जाने कितने ही अनगिनत सपने देखते हैं. जो अपने अच्छे भविष्य के लिए करना तो बहुत कुछ चाहते हैं लेकिन अपनी संसधानों के अभाव और आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के चलते आगे नहीं बढ़ पाते. रोहिणी ऐसे सभी लोगों के लिए मार्गदर्शक की तरह हैं कि जिनके हौसले बुलंद हैं, जिनका विश्ववास अटूट है और पूरे दृढ़निश्चय के साथ आगे बढ़ने की कोशिश करते हैं.
जेईई मेन्स की तैयारी के दौरान भी की दिहाड़ी मजदूरी
गरीब आदिवासी परिवार से आने वाली रोहिणी के लिए गांव से NIT तक सफर इतना आसान नहीं था. पिता दिहाड़ी मजदूरी करते हैं, जिसकी वजह से परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है. मुश्किल से घर का खर्चा चलता है. इस वजह से रोहिणी भी कभी-कभी दिहाड़ी मजदूरी के लिए जाती थीं. जेईई मेन्स की तैयारी के दौरान भी वह दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम करती थीं. अपनी मेहनत से न सिर्फ जॉइंट एंट्रेंस एग्जाम (JEE) में अच्छा स्कोर किया बल्कि NIT में भी सीट पक्की कर ली है. वह अपने आदिवासी समुदाय से एनआईटी में पढ़ने वाली पहली सदस्य होंगी.
समाचार एजेंसी ने रोहिणी के हवाले से बताया, "मेरे माता-पिता दिहाड़ी मजदूर हैं और मैंने भी परीक्षा की तैयारी के दौरान दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम किया. क्योंकि मैंने अच्छी पढ़ाई की थी, इसलिए मुझे त्रिची एनआईटी में सीट मिल गई."
NIT जाने वाली राज्य की पहला आदिवासी छात्रा
रोहिणी ने चिन्ना इलुपुर के सरकारी आदिवासी आवासीय विद्यालय से पढ़ाई की है. वह अपने माता-पिता के साथ चिन्ना इलुपुर गांव में रहती हैं. उनके पिता मथियाझागन केरल में मजदूर के तौर पर काम करते हैं, जबकि उसकी मां वसंती चिन्ना इलुपुर में खेत मजदूर है. रोहिणी अपने राज्य से पहली आदिवासी छात्रा हैं जिन्होंने NIT Trichy जैसै प्रतिष्ठित कॉलेज में दाखिले के लिए सीट हासिल की है.
तमिलनाडु सरकार ने भरी पूरी पढ़ाई की फीस
अपनी कामयाबी के लिए रोहिणी तमिलनाडु सरकार का आभार व्यक्त करती हैं. रोहिणी बताती हैं कि सरकार से मिले सहयोग के कारण ही रोहिणी आज इस मुकाम पर पहुंची हैं. रोहिणी बताती हैं कि उन्होंने अपनी पूरी पढ़ाई एक आदिवासी सरकारी स्कूल से की जिसका सारा खर्च तमिलनाडु सरकार ने उठाया. अपने हेडमास्टर और स्कूल स्टाफ के सहयोग के कारण ही रोहिणी पढाई में अच्छा प्रदर्शन कर सकीं. तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के.स्टालिन को धन्यवाद देते हुए रोहिणी ने बताया कि मुख्यमंत्री से मिले निरंतर सहयोग ने ही उनके NIT Trichy में पढ़ने के सपने को साकार किया.
सोशल मीडिया पर छाई रोहिणी की मेहनत
रोहिणी की कामयाबी कहानी सोशल मीडिया पर काफी पसंद की जा रही है. रोहिणी की मेहनत, लगन और हौसले के लिए लोग उन्हें तरह-तरह की 'उपाधियां' दे रहे हैं जैसे- "Pride of Tamil Nadu", कुछ लोग रोहिणी को "गौरवशाली भारतीय नारी का प्रतीक " भी कह रहे हैं.
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