राजस्थान के झालावाड़ में एक स्कूल ढहने से कई बच्चों की मौत हो गई और कई छात्र घायल बताए जा रहे हैं. स्कूल की छत जर्जर हालत में थी, कई दिनों में बारिश का पानी भी छत से टपक रहा था. अगर सही समय पर ध्यान दिया होता और आज मासूम बच्चे सरकार की खामियों का शिकार नहीं होते. यह हाल राजस्थान का ही नहीं बल्कि झारखंड का भी है. यहां के भी कई सरकारी स्कूल पर इस कगार पर हैं कि कभी भी उनकी छत गिर सकती है.
झारखंड में स्कूलों की हालत कितनी बेकार है इस गंभीरता का अंदाजा NH -33 यानी रांची पटना रोड पर स्थित सरकारी उर्दू मिडिल स्कूल की जर्जर स्थिति को देखते लगाया जा सकता है. इस स्कूल में 321 ज्यादा विद्यार्थी पढ़ते हैं. भवन के हालात बेहद जर्जर हैं. स्कूल की लोकेशन ऐसी जगह है जहां से अधिकारियों और नेताओं का आना जाना लगा रहता है. हालांकि न तो सरकार ने तमाम कोशिशों के बाद इसका संज्ञान लिया है और न ही अधिकारियों ने. आवेदन और SOS लगातार भेजे जा रहे हैं.
स्कूल में पढ़ने में डरते हैं बच्चे
भवन अपनी बदहाली को खुद ही चीख चीख कर बयान कर रहा है. टूटी खिड़कियां, दीवार से निकले छड़, हर दूसरे दिन गिरने वाले मलबे, दीवारों पर सीलन और दीवारों पर मौजूद क्रैक अपनी स्थिति की गवाही खुद ब खुद देते हैं. पढ़ने वाले बच्चे जो गवाह रहे है मलबे के गिरने का वो भयभीत हैं. उन्होंने बताया कि उनकी मानसिक स्थिति कैसी होती है जब वो साइंस या फिर मैथ्स पढ़ रहे होते हैं. जब दिमाग और दिल पढ़ाई में नहीं लगेगा तो आखिर चैप्टर क्या समझ में आएगा, इसका अंदाजा भी लगाया जा सकता है.
सरकार को कई बाद स्कूल के हालत के बारे में अवगत कराया जा चुका है
स्कूल के शिक्षक कहते हैं कि तमाम बाते पत्र के माध्यम से सरकार को लिखा गया है. लगातार उनके संज्ञान में लाया गया है लेकिन अभी तक कोई नतीजा नहीं निकला. लिहाजा बच्चे भय के माहौल में पढ़ने को मजबूर हैं. ऐसे ही कुछ हालाक झारखंड के ओरमांझी के मायापुर में स्थित एक और स्कूल के हैं.
यहां भी 40 साल पुरानी स्कूल भवन की स्थिति ठीक नहीं है. स्कूल के रूफ पे इतनी पानी जमता है कि छत टपक रही है और भवन डैमेज हालात में है. यहां भी बच्चों और स्कूल के शिक्षक ने अपनी परेशानियों को बताया है. लोगों का कहना है कि राजस्थान जैसी स्थिति यहां भी न बने इसके लिए ऐसे स्कूलों को चिह्नित कर सरकार को तुरंत एक्शन में आना चाहिए.
सत्यजीत कुमार