साइंस की दुनिया में अनोखे अविष्कार करने वाले महान वैज्ञानिकों में से एक बड़ा नाम भारतीय नाम भी है. ये नाम है साइंटिस्ट प्रोफेसर सी.वी. रमन का. चाहे वो कैंसर का इलाज हो या चांद पर पानी की खोज, उनके द्वारा किए अनुसंधान आज भी दुनिया के काम आते हैं. भारत रत्न सर सीवी रमन महान वैज्ञानिक ही नहीं इस देश के अनमोल रत्न थे और हमेशा रहेंगे. इन्हीं के सम्मान में हर साल 28 फरवरी को नेशनल साइंस डे मनाया जाता है. आइए उनकी जर्नी और उनके द्वारा की हुई खोज के बारे में जानते हैं.
बचपन से ही विज्ञान में खास रुचि रखते थे सीवी रमन
सी.वी. रमन का जन्म मद्रास प्रेसिडेंसी के तिरुचिरापल्ली गांव में एक शिक्षक के घर हुआ था. बचपन से ही उनका दिमाग तेज था और वे हमेशा से साइंस से जुड़ी चीजों में रुचि रखते थे. उनको हर चीज जानने की उत्सुकता रहती थी. अपने छोटे भाई-बहनों के साथ भी वो हमेशा विज्ञान के छोटे-मोटे प्रयोग करते रहते थे. वो पढ़ाई में इतने अच्छे थे कि उन्होनें 10वीं कक्षा में टॉप भी किया था, जिसके बाद वे सीधा प्रेसिडेंसी कॉलेज, मद्रास गए और वहां उन्होंने अपनी स्नातक की डिग्री प्राप्त की. उनकी पहली उपलब्धि साल 1904 की है जब उन्हें फिजिक्स एवं इंग्लिश के लिए मेडल दिया गया था.
सीवी रमन ने 18 वर्ष की उम्र में अपना पहला पेपर लिखा था, इस दौरान वे अपनी मास्टर्स की पढ़ाई कर रहे थे. रिसर्च पेपर उन्होंने उस जमाने की टॉप मैग्जीन में छपवाया, जिसके बाद ब्रिटेन के जाने-माने साइंटिस्ट बैरन रेले (John William Strutt, 3rd Baron Rayleigh) ने उसे पढ़ा. ये भी फिजिक्स के एक महान साइंटिस्ट थे. रमन का रिसर्च पेपर पढ़ने के बाद उन्होंने वापस पत्र लिखकर उसकी प्रशंसा की थी.
क्यों 28 फरवरी को मनाते हैं साइंस डे
28 फरवरी साल 1930 के दिन रमन ने अपनी पहली खोज की थी. इसलिए इसी दिन भारत में नेशनल साइंस डे मनाया जाता है. यह वही खोज है जिसके लिए रमन को नोबेल पुरुस्कार मिला था. आइए उनकी इस महान खोज के बारे में जानते हैं.
समुद्र का रंन नीला क्यों होता है. यह आम वाक्य हर कोई एक दूसरे से पूछता था. पूछते-पूछते यह मान लिया गया कि आसमान का रंग नीला तो पानी का भी रंग नीला. लेकिन इस सवाल को गंभीर तरीके से लिया सर सीवी रमन ने और भीड़ से हटकर इस बात का पता लगाने में लग गए और लगातार 7 सालों तक रिसर्च करने के बाद 28 फरवरी 1928 को उन्होंने Raman Effect की खोज की.
क्या है रमन इफेक्ट
खोज में उन्होंने पता लगाया कि प्रकाश की किरण जब एक धूल-मुक्त पारदर्शी रासायनिक मिश्रण से गुजरती है तो बीम की दूसरी दिशा में प्रकाश का छोटा सा अंश उभरता है. इस बिखरे हुए प्रकाश का ज्यादातर हिस्सा तरंगदैर्ध्य अपरिवर्तित रहता है. हालांकि छोटा सा अंश मूल प्रकाश की तरंगदैर्ध्य की तुलना में अलग तरंगदैर्ध्य वाला होता है. रमन की खोज के कारण इस चीज के बारे में दुनिया को पता चला है. जब प्रकाश की किरणें अलग अलग चीजों से टकराती हैं या उनमें से होकर गुजरती है, तो तरंगों के बिखरने के बाद उन पर व उनकी गति पर क्या असर होता है, उनकी खोज यह सब बताती है, इसी खोज को Raman Effect कहा जाता है.
चांद पर पानी की खोज में काम आए सीवी रमन
सी. वी. रमन की खोज रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी असल में स्पेक्ट्रोस्कोपी पदार्थ द्वारा प्रकाश और अन्य विकिरण के अवशोषण और उत्सर्जन का अध्ययन है. इसका इस्तेमाल आज दुनियाभर की केमिकल लैब में हो रहा है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, मिशन चंद्रयान के दौरान चांद पर पानी का पता लगाने के लिए भी रमन स्पेकट्रोस्कोपी का ही योगदान था. 82 वर्षीय सी.वी. रमन का निधन 21 नवंबर 1970 को बेंगलुरु में हुआ था.
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