क्या मदरसे का छात्र NEET एग्जाम में शामिल हो सकता है? मदरसा एक्ट पर सुनवाई के दौरान CJI ने पूछा ये सवाल

इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा यूपी मदरसा एक्ट को असंवैधानिक घोषित करने के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपीलें दायर की गई हैं. यूपी सरकार ने एक्ट का समर्थन करते हुए कहा कि केवल उन प्रावधानों की समीक्षा होनी चाहिए जो मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं. इसके बाद CJI ने पूछा कि क्या मदरसा का छात्र NEET में शामिल हो सकता है.

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UP Government on Madrasa Act UP Government on Madrasa Act

संजय शर्मा

  • नई दिल्ली,
  • 22 अक्टूबर 2024,
  • अपडेटेड 1:44 PM IST

इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में आई अपीलों पर सुनवाई शुरू हो चुकी है. हाईकोर्ट के इस फैसले में यूपी मदरसा एक्ट को असंवैधानिक घोषित किया गया था. इस मामले की सुनवाई के दौरान, सुप्रीम कोर्ट में यूपी सरकार ने मदरसा एक्ट के पक्ष में अपनी बात रखी और उसका समर्थन किया. यूपी सरकार की तरफ से पेश हो रहे वकील ASG नटराजन ने दलील दी कि मदरसा एक्ट के केवल उन प्रावधानों की समीक्षा होनी चाहिए जो मौलिक अधिकारों के ख़िलाफ़ हैं और एक्ट को पूरी तरह खारिज करना उचित नहीं है.

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CJI- क्या मदरसा बोर्ड का छात्र नीट में शामिल हो सकता है?

यूपी सरकार की पैरवी करते हुए ASG के एम नटराजन ने कहा कि यूपी मदरसा एक्ट को पूरी तरह से रद्द करना गलत होगा. यह विधायी शक्ति का मामला नहीं बल्कि मौलिक अधिकारों के उल्लंघन का मामला है. इसके लिए पूरे कानून को रद्द करने की जरूरत नहीं है. एक्ट के केवल उन्ही प्रावधानों का परीक्षण किया जाना चाहिए जो मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं. जबकि सरकारी आदेश के तहत मदरसा स्कूलों को अन्य स्कूलों के समान ही माना गया है. CJI ने पूछा कि क्या मदरसा का कोई भी छात्र NEET की परीक्षा में शामिल हो सकता है? यूपी सरकार के वकील ने कहा कि इसके लिए छात्र को फिजिक्स, कैमेस्ट्री, बायोलॉजी ( PCB ) से पास होने की ज़रूरत होती है.

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सोमवार को सुनवाई के दौरान क्या बोले सीजेआई?

राज्य सरकार से सहायता प्राप्त मदरसों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करना राज्य का अनिवार्य कर्तव्य है. मदरसा बोर्ड तो केवल नियामक है. सुप्रीम कोर्ट ने मदरसा बोर्ड को लेकर उठे विवाद पर सोमवार को सुनवाई के दौरान कहा कि राज्य का यह कर्तव्य है कि वह सरकारी सहायता से चल रहे मदरसों में धार्मिक शिक्षा के साथ गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करे. ताकी छात्र मदरसे से पास होने के बाद एक 'सम्मानजनक' जीवन जी सकें.

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम 2004 को असंवैधानिक ठहराया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि हाई कोर्ट ने उस अधिनियम को असंवैधानिक क्यों ठहराया, जबकि यह मुख्य रूप से एक नियामक कानून था.

चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने पूछा कि अधिनियम बहुत स्पष्ट है. यह सेवा की शर्तों, नियमों के निर्माण आदि को निर्धारित करता है. यह मुख्य रूप से एक नियामक कानून है तो इसे किस आधार पर असंवैधानिक बताया गया? हाईकोर्ट ने माना था कि एक धर्मनिरपेक्ष राज्य के पास धार्मिक शिक्षा के लिए बोर्ड बनाने या केवल एक विशेष धर्म और उससे जुड़े दर्शन के लिए स्कूल शिक्षा बोर्ड स्थापित करने की शक्ति नहीं है.

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इससे पहले पांच अप्रैल को मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस जे बी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के उस फैसले पर रोक लगाकर करीब 17 लाख मदरसा छात्रों को राहत दी थी. बता दें कि हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004 को 'असंवैधानिक' और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन करने वाला करार दिया गया था.

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