'देश के 70% कानूनों को समझना नहीं आसान, इन 3 राज्यों के कानून सबसे सरल'

थिंकटैंक 'सेंटर फॉर सिविल सोसायटी (सीसीएस)' और 'मरकैटस सेंटर, जॉर्ज मैसन यूनिवर्सिटी' द्वारा किए गए अध्ययन के मुताबिक सूचना का अधिकार अधिनियम-2005 देश के उन शीर्ष 10 कानूनों में शामिल है जिन्हें पढ़ना सबसे ज्यादा मुश्किल है. 

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Center for Civil Society study about national laws Center for Civil Society study about national laws

अजीत तिवारी

  • नई दिल्ली,
  • 16 अप्रैल 2021,
  • अपडेटेड 10:04 PM IST

कानूनों का तरीके से पालन हो सके इसके लिए उनका स्पष्ट होना पहली शर्त होती है. लेकिन देश के मौजूदा कानूनों में से 70 फीसदी कानून ऐसे हैं जिन्हें पढ़ना और समझना आम जनता के लिए टेढ़ी खीर है. यह निष्कर्ष थिंकटैंक 'सेंटर फॉर सिविल सोसायटी (सीसीएस)' और 'मरकैटस सेंटर, जॉर्ज मैसन यूनिवर्सिटी' द्वारा देश के मौजूदा कानूनों के गुणात्मक विश्लेषण के आधार पर निकल कर आया है.

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कानूनों के गुणात्मक विश्लेषण के इस कार्य में केंद्र स्तर के कुल 876 कानूनों का अध्ययन किया गया जिसमें से 608 कानूनों को पढ़ने के लिहाज से मुश्किल, अधिक मुश्किल और बेहद मुश्किल वर्ग का पाया गया. इसके अलावा राज्यों के स्कूली शिक्षा कानूनों का भी विश्लेषण किया गया. विश्लेषण में पाया गया कि व्यक्ति को स्कूली शिक्षा से संबंधित कानूनों को समझने के लिए कम से कम कॉलेज से ग्रेजुएशन होना अत्यंत आवश्यक है.

संविधान निर्माता और देश के प्रथम कानून मंत्री डा. भीमराव अम्बेडकर की जयंती के मौके पर सीसीएस के शोध विभाग ने कानूनों के गुणात्मक विश्लेषण संबंधी अपने अध्ययन और उसके निष्कर्षों को जारी किया. अध्ययन के मुताबिक सूचना का अधिकार अधिनियम-2005 देश के उन शीर्ष 10 कानूनों में शामिल है जिन्हें पढ़ना सबसे ज्यादा मुश्किल है. 

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मिजोरम और दिल्ली के कानून सबसे ज्यादा कठिन
इसके अलावा ज्यादातर राज्यों के स्कूली शिक्षा कानूनों को पढ़ना आम नागरिकों के लिए मुश्किल काम है और इन्हें समझने के लिए कॉलेज से ग्रेजुएशन लेवल की शिक्षा आवश्यक है. रिपोर्ट के मुताबिक मिजोरम के कानूनों को समझना सबसे कठिन है और इसके बाद दिल्ली और पुंडुचेरी का स्थान है.

मणिपुर, तेलंगाना और हिमाचल के कानून सबसे सरल

कानूनों की सरलता के हिसाब से शीर्ष तीन राज्य मणिपुर, तेलंगाना और हिमाचल प्रदेश हैं. अध्ययन के बारे में बताते हुए सीसीएस के एसोसिएट डायरेक्टर एड. प्रशांत नारंग ने बताया कि, भारत में जीवन जीने की सुगमता (ईज़ ऑफ लिविंग), व्यवसाय करने की सुगमता (ईज़ ऑफ बिजनेस), स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता (क्वालिटी ऑफ स्कूल एजुकेशन) को मापने के लिए सूचकांक है.

उन्होंने बताया कि हमें कानूनों की गुणवत्ता का आकलन करने के लिए एक सूचकांक की आवश्यकता है. मरकैटस के सहयोग से किया गया हमारा नवीनतम अध्ययन, भारत में कानून के बनने के दौरान के विभिन्न पहलुओं की समीक्षा करता है.

 

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