कौन थे मुगल मंसूबों को धूल चटाने वाले लासित बोरफुकन? जानें बैटल ऑफ सराईघाट की पूरी कहानी

Lachit Borphukan: लासित को युद्ध कला, अस्‍त्र-शस्‍त्र और युद्धनीति का पूरा ज्ञान था. उन्‍हें अहोम राजा चक्रध्‍वज सिंह ने अपने साम्राज्‍य का सेनापति बनाया और सोलाधार बोरुआ, घोड़ा बोरुआ और सिमूलगढ़ किले का सेनापति जैसी कई उपाधियां दीं.

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Lachit Borphukan Lachit Borphukan

रविराज वर्मा

  • नई दिल्‍ली,
  • 25 नवंबर 2022,
  • अपडेटेड 12:23 PM IST

Lachit Borphukan: असम के इतिहास में लासित बोरफुकन का नाम बेहद महत्‍वपूर्ण है. अहोम राज्‍य के सेनापति बोरफुकन ने मुगलों के खिलाफ अदम्‍य साहस के साथ लड़ाई लड़ी और जीत भी हासिल की. उन्‍हें उनकी वीरता और कुशल नेतृत्‍व क्षमता के लिए याद किया जाता है. गुवाहाटी पर मुगलों के कब्‍जे के बाद उन्‍होंने औरंगजेब की सेना के साथ युद्ध लड़ा और उन्‍हें बाहर खदेड़ दिया. इसी के चलते उन्‍हें पूर्वोत्‍तर का शिवाजी कहा जाता है. गुरुवार 24 नवंबर को प्रधानमंत्री मोदी ने उनकी 400वीं जयंती पर उन्‍हें श्रृद्धांजलि दी है.

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बने अहोम साम्राज्‍य के सेनापति
लासित का जन्‍म 24 नवंबर, 1622 को असम के प्रागज्‍योतिशपुर में हुआ. उनके पिता का नाम मोमाई तामुली बोरबरुआ था. उन्‍हें युद्ध कला, अस्‍त्र-शस्‍त्र और युद्धनीति का पूरा ज्ञान था. उन्‍हें अहोम राजा चक्रध्‍वज सिंह ने अपने साम्राज्‍य का सेनापति बनाया और सोलाधार बोरुआ, घोड़ा बोरुआ और सिमूलगढ़ किले का सेनापति जैसी कई उपाधियां दीं.

देश के लिए अपने मामा का उड़ाया सिर
राज्‍य की सुरक्षा के लिए बोरफुकन ने सीमाओं पर एक दीवार बनाने का निर्णय किया. दीवार बनाने की जिम्‍मेदारी उन्‍होंने अपने मामा को दी. खबर थी कि अगले दिन तक मुगल सेना अहोम सीमा पर पहुंचने वाली थी. ऐसे में सुबह से पहले दीवार बनकर तैयार होना जरूरी था. जब बोरफुकन निमार्ण कार्य का दौरा करने गए तो पाया कि काम आधा भी नहीं हुआ था. इसके अलावा खुद उनके मामा और सैनिकों ने भी यह मान लिया था कि समय से दीवार बन ही नहीं पाएगी. बोरफुकन इस रवैये से बेहद नाराज़ हुए और अपने मामा का सिर धड़ से अलग कर दिया. इसके बाद उन्‍होंने अपने सैनिकों में ऐसा जोश भरा कि दीवार सु‍बह से पहले बनकर तैयार हो गई.

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सराईघाट का युद्ध
17वीं शताब्दी की शुरूआत में अपने साम्राज्य का विस्तार करने के इच्छुक मुगलों और असम के अहोमों के बीच कई झड़पें हुईं. अहोमों का राज्य असम में ब्रह्मपुत्र घाटी तक फैला हुआ था और लगभग 600 वर्षों से उनका शासन था. 1671 में गुवाहाटी में ब्रह्मपुत्र के तट पर लड़ी गई सराईघाट की लड़ाई के दौरान बोरफुकन अहोम सेना के कमांडर थे. इस लड़ाई में बोरफुकन ने अपने अदम्‍य जज्‍़बे के दम पर मुगल बादशाह औरंगजेब के सेनापति राम सिंह को अपनी सेना समेत असम से बाहर खदेड़ दिया.

मुगल हमले के खिलाफ बोरफुकन ने कमाल की रणनीति अपनाई. वे जानते थे कि मुगलों की नौसेना कमजोर है. उन्‍होंने अपने राज्‍य की सीमाएं सुरक्षित कीं और राम सिंह को ब्रह्मपुत्र नदी के रास्‍ते से आने को मजबूर किया. मुगल सेना ने सराईघाट पर अहोम किलेबंदी में सेंध लगाई और अंदर घुसने का प्रयास किया. यहीं पर बोरफुकन अपनी अहोम सेना के साथ उनपर टूट पड़े और उनका मुंहतोड़ जवाब दिया. 

इस लड़ाई से पहले बोरफुकन काफी बीमार हो गए थे. मगर अपने फर्ज की खातिर वे बीमारी में भी दुश्‍मन के खिलाफ लड़ाई में उतरे. उनके जज्‍़बे ने अहोम सेना में ऐसा जोश भरा कि उन्‍होंने मुगलों को मानस नदी तक पीछे खदेड़ दिया. जंग में अहोमों की जीत हुई और बोरफुकन अपनी सीमा बचाने में कामयाब हुए.

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