इंजन बंद हो गए थे, नीचे समुद्र था... फिर भी पायलट ने 120 KM दूर रनवे पर उतार दिया था प्लेन! ऐसी लैंडिंग दुनिया याद रखेगी

Air Transat Flight 236 Story: एयर ट्रांजैट फ्लाइट 236 की आपातकालीन लैंडिंग को हमेशा याद रखा जाएगा, क्योंकि इंजन खराब होने के बाद प्लेन को 39 हजार फीट ऊंचाई से भी नीचे उतार लिया गया था.

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ये प्लेन अटलांटिक महासागर के ऊपर 39,000 फीट की ऊंचाई पर उड़ रहा था. (Photo: ITG) ये प्लेन अटलांटिक महासागर के ऊपर 39,000 फीट की ऊंचाई पर उड़ रहा था. (Photo: ITG)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 04 अगस्त 2025,
  • अपडेटेड 2:07 PM IST

'Mayday, mayday, mayday... हमारे दोनों इंजन काम नहीं कर रहे हैं, अब सिर्फ ग्लाइड कर रहे हैं...' ये शब्द 28 साल के फर्स्ट ऑफिसर डिर्क डेजागर ने 24 अगस्त 2001 को आपातकालीन स्थिति में कहे थे, जब फ्लाइट के इंजन हवा में फेल हो गए थे. फ्लाइट थी एयर ट्रांजैट फ्लाइट 236, एयरबस थी A330, जो 306 लोगों को लेकर अटलांटिक महासागर के ऊपर 39,000 फीट की ऊंचाई पर उड़ रही थी. जिस जगह फ्लाइट के इंजन ने काम करना बंद कर दिया, उस जगह से सबसे करीबी रनवे करीब 120 किलोमीटर दूर था. इसके अलावा प्लेन की डेस्टिनेशन 1500 किलोमीटर दूर थी.

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ये फ्लाइट कनाडा के टोरंटो से पुर्तगाल की राजधानी लिस्बन जा रही थी. दरअसल, फ्लाइट उड़ने के करीब पांच घंटे बाद पायलटों को महसूस हुआ कि एक इंजन फ्यूल लीक के कारण बंद हो गया है. 13 मिनट बाद दूसरे इंजन ने भी काम करना बंद कर दिया. हैरानी की बात ये है कि उस रात प्लेन गिरा नहीं, बल्कि एक चमत्कार हुआ—जिसे अब “मिरेकल ऑन द अज़ोर्स” कहा जाता है. इंजन खराब होने के बाद भी अंधेरे और बर्फ जैसे ठंडे अटलांटिक के ऊपर एक सुरक्षित लैंडिंग करवाई गई. इसके साथ ही करीब 120 किलोमीटर तक प्लेन को ग्लाइड करवाया.

इसका श्रेय कप्तान रॉबर्ट पिशे और उनके सह-पायलट डिर्क डेजागर को जाता है, जिन्होंने पूरे आत्मविश्वास और संयम के साथ यह असंभव कार्य कर दिखाया. इस विकट परिस्थिति में भी 306 लोग बच गए और इस ग्लाइडर लैंडिंग ने अपने नाम वर्ल्ड रिकॉर्ड कर लिया.

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सबको लग रहा था- 'हम मरने वाले हैं'

फ्लाइट की लैंडिंग उतनी आसान नहीं थी, जितनीआपको लग रही है. उस वक्त फ्लाइट का माहौल काफी खतरनाक था और हर कोई पैनिक कर रहा था. पहले यात्रियों को ऐसी खतरनाक लैंडिंग के लिए तैयार किया गया. ज्यादातर को लग रहा था कि वे मरने वाले हैं. लेकिन फिर भी, पिचे और डेजेगर ने हाइड्रोलिक सिस्टम बंद होने, बिजली की दिक्कत, केबिन की परेशानी आदि को दरकिनार करते हुए इस असंभव काम को कर दिखाया.

फ्लाइट में सभी को बचाने के बाद कैप्टन पिचे ने कनाडा लौटने के बाद कहा था, 'जब आपके पास दूसरा इंजन नहीं होता, तो देर-सवेर आप नीचे गिर ही जाएंगे, आपको पता है... बस यही बात है. आपके पास यात्रियों की सुरक्षा के अलावा किसी और चीज के बारे में सोचने का समय नहीं होता. आपको वही करना होता है जो आपको सिखाया गया है.'

उस रात हुआ क्या था?

जब अंटलांटिक महासागर के ऊपर पता चला कि इंजन में कुछ गड़बड़ है तो उन्होंने पहले पता किया कि दिक्कत क्या है. उस समय पायलटों को यह नहीं पता था कि राइट साइड के इंजन की एक फ्यूल पाइप लीक होने लगी थी, जो हाइड्रोलिक पंप प्रणाली में दिक्कत होने की वजह से हुआ था. उस इंजन को तुरंत बंद करने के बजाय, जिससे रिसाव बंद हो जाता, पायलटों ने टैंकों के बीच फ्यूल ट्रांसफर करके फ्यूल संतुलन को ठीक करने की कोशिश की. लीक हो रहे इंजन में फ्यूल ट्रांसफर से स्थिति और खराब हो गई.

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अब इंजन में फ्यूल नहीं बचा था और राइट साइड का इंजन जल्द ही बंद हो गया. पायलटों ने फ्यूल इमरजेंसी घोषित कर दी और फ्लाइट को पुर्तगाली अज़ोरेस के टेरसीरा द्वीप पर स्थित सैन्य-नागरिक हवाई अड्डे लाजेस एयर बेस पर उतारने की कोशिश शुरू की. इसके बाद दूसरा इंजन भी खराब हो गया. इंजन खराब होने से इलेक्ट्रिसिटी पावर भी खत्म हो गई और अब प्लेन ग्लाइडर बन गया था.

ऐसे करवाई गई लैंडिंग

डबल इंजन फेल होने के वक्त, फ्लाइट करीब 39,000 फीट की ऊंचाई पर थी. उस ऊंचाई से हर 27 से 31 किलोमीटर में ऊंचाई 1000 फीट कम हो रही थी. इसे कंट्रोल करना भी मुश्किल था, क्योंकि रडर, रिवर्स थ्रस्टर्स और फ्लैप (जो फ्लाइट को धीमा करने, स्टीयरिंग करने और स्थिर करने में मदद कर सकते थे) सब काम नहीं कर रहे थे. पायलटों को अपने ग्लाइड वाले रास्ते को नियंत्रित करने के लिए केवल विमान के आगे के हिस्से को ऊपर या नीचे नियंत्रित करने पर निर्भर रहना पड़ा.

पिचे ने लाजेस की ओर धीरे-धीरे लेकिन स्थिर गति से उतरना शुरू किया. पायलटों ने मैन्युअल रूप से प्लेन को कंट्रोल किया. उन्होंने इंजन थ्रस्ट या आधुनिक ऑटोपायलट की मदद के बिना लैंडिंग करवाई. केबिन का दबाव कम हो गया और ऑक्सीजन मास्क लगा दिए गए. फ्लाइट अटेंडेंट यात्रियों को समुद्र में संभावित लैंडिंग के लिए तैयार कर रहे थे. नीचे समुद्र अशांत था, अंधेरा था और आस-पास कोई जहाज नहीं था. पानी में उतरना एक विकल्प था, लेकिन इसे जोखिम भरा माना जा रहा था.

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लहराते हुए आया नीचा

जैसे ही विमान लाजेस एयर बेस के पास पहुंचा, पिचे को 250 टन के वाइड-बॉडी जेट को बिना थ्रस्ट के उतारने का काम सौंपा गया. इंजन बंद थे, ऐसे में विमान जल्दी ही गति खो सकता था. इसलिए कैप्टन पिचे ने तेज स्पीड से लैंडिंग की कोशिश की. उस वक्त लैंडिंग गियर तो नीचे आ गया, लेकिन नोज़ गियर पूरी तरह से नहीं बढ़ा. पिचे ने स्पीड बनाए रखी और सुनिश्चित किया कि विमान अभी भी काफी दूर तक ग्लाइड कर सके. फिर कैप्टन पिचे ने 360-डिग्री टर्नअराउंड किया. ऐसा करने में, विमान की हाइट भी कम हो गई. फिर, S शेप से फ्लाइट को नीचे उतारा.

उस वक्त तक रनवे पर पूरी तैयारी थी और इमरजेंसी टीमें वहां मौजूद थीं. यूटीसी समयानुसार सुबह 6.45 बजे, ए-330 विमान लाजेस के रनवे 33 पर जोर से उतरा, एक बार उछला, लेकिन 3,300 मीटर लंबे रनवे पर ही रहा. 2,000 मीटर से ज्यादा की दूरी तय करने के बाद विमान रुक गया, ब्रेक, स्पॉइलर, फ्लैप और रिवर्स थ्रस्ट सब बेकार हो गए. यह बिना बिजली के 120 किलोमीटर से ज्यादा की दूरी तय कर चुका था. विमान में सवार सभी 306 लोग आपातकालीन लैंडिंग में बच गए, केवल दो को मामूली चोटें आईं.

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जांच के बाद सामने आया कि ईंधन लीक मॉन्ट्रियल में हुई एक मरम्मत गलती के कारण हुआ था. गलत पार्ट एक अलग मॉडल के इंजन के लिए था, जिसे इस जहाज में लगा दिया गया था. हालांकि, पायलटों को लोगों की जान बचाने के लिए सराहा गया, लेकिन यह भी माना गया कि अगर समय रहते फ्यूल लीक पकड़ा गया होता तो ये आपात स्थिति आती ही नहीं.

(Report- Sushim Mukul)

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