बॉलीवुड फिल्मों में अल्फा, टैंगो, चार्ली तो सुना होगा... सेना में ऐसे शब्दों का क्या मतलब होता है?

दुर्गम इलाकों में ड्यूटी कर रहे आर्मी के जवानों के लिए किसी भी ऑपरेशन के दौरान रेडियो कम्युनिकेशन काफी अहम होता है और यहां होने वाली एक शब्द की गलती भी बहुत बड़ा नुकसान कर सकती है. इसी को ध्यान में रखते हुए ऐसी शब्दावली तैयार की गई है.

Advertisement
आर्मी के कोड वर्ड्स का क्या मतलब होता है आर्मी के कोड वर्ड्स का क्या मतलब होता है

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 07 फरवरी 2025,
  • अपडेटेड 3:54 PM IST

आर्मी पर आधारित बॉलीवुड की फिल्मों में अक्सर आपने सैन्य किरदार निभाने वाले एक्टर्स को कोडिंग में बात करते देखा होगा. इनमें अल्फा, ब्रावो, चार्ली, डेल्टा जैसे शब्द खूब इस्तेमाल किए जाते हैं. यहां तक कि साल 2005 में अजय देवगन और बॉबी देओल की एक फिल्म का नाम ही 'टैंगो चार्ली' था. लेकिन किसी ऑपरेशन के दौरान इस्तेमाल होने वाले इन शब्दों का क्या मतलब होता है? सेना ऐसे शब्दों को टेलीकम्युनिकेशन के लिए क्यों यूज करती है. आपको विस्तार से बताते हैं.

Advertisement

रेडियो कम्युनिकेशन में जरूरी

'लल्लनटॉप' को दिए इंटरव्यू में करगिल युद्ध के हीरो लेफ्टिनेंट जनरल योगेश कुमार जोशी (रिटायर) ने बताया कि हमारी एक इन्फेंट्री बटालियन में चार राइफल कंपनी होती हैं अल्फा, ब्रावो, चार्ली और डेल्टा. फिर एक हेड क्वार्टर कंपनी होती है. उन्होंने बताया कि ये नाम अंग्रेजी हुकूमत के दौर के नहीं हैं बल्कि पूरी दुनिया में सेना की कंपनियां इन शब्दों का इस्तेमाल पहले भी करती रही हैं और आज भी कर रही हैं.

कंपनी के नामों के अलावा भी इन कोड वर्ड्स का अलग मतलब होता है. दरअसल, ड्यूटी के दौरान सैनिकों को एक-दूसरे से बात करने के लिए रेडियो कम्युनिकेशन का चाहिए होता है और इसी दौरान एक कंपनी या कोई अफसर दूसरी कंपनी से बातचीत के लिए इन शब्दों का इस्तेमाल करता है. देश के दुर्गम इलाकों में ड्यूटी कर रहे आर्मी के जवानों के लिए किसी ऑपरेशन के दौरान रेडियो कम्युनिकेशन काफी अहम होता है और यहां होने वाली एक शब्द की गलती भी बहुत बड़ा नुकसान कर सकती है.

Advertisement

फोनेटिक अल्फाबेट मिला है नाम

ऐसे में कम शब्दों में सामने वाले को अपना साफ मैसेज देने की कोशिश की जाती है. क्योंकि दुर्गम इलाकों में सैटेलाइट फोन भी कभी-कभी सिग्नल खो देते हैं और आपस में कम्युनिकेशन बड़ी मुश्किल से हो पाता है. अंग्रेजी अक्षर जैसे E-C या P-B एक ही तरह का साउंड करते हैं तो मैसेज में गलती की गुंजाइश बनी रहती है, इसी से बचने के लिए इन कोड वर्ड्स को तैयार किया गया है.

इन कीवर्ड्स को फोनेटिक अल्फाबेट का नाम दिया गया है, जिनमें चार्ली, अल्फा, ब्रावो के अलावा ईको, गोल्फ, विक्टर जैसे कई शब्द आते हैं. ऐसे शब्दों के इस्तेमाल का फायदा ये है कि अगर कोई दुश्मन हमारे कम्युनिकेशन को सुन भी ले तो वह कुछ समझ नहीं पाएगा. सुरक्षा एजेंसियों में काम करने वाले जवान अलग-अलग परिवेश और भाषा क्षेत्र से आते हैं, ऐसे में उनके बोलने का लहजा भी अलग होता है. इसी वजह से ऐसी एक मानक शब्दावली बनाई गई है जिससे हर कोई एक ही तरीके से आसानी से मैसेज पास कर पाए और सुनने वाले रिसीवर को मैसेज भी क्लियर हो जाए.

उदाहरण के तौर पर इसमें A से Alpha, B से Bravo, C से Charlie, D से Delta और L से Lima होता है. साथ ही इन शब्दों के उच्चारण के लिए भी व्याकरण तय है. ताकि अलग-अलग पृष्ठभूमि और भाषा क्षेत्र से आने वाले लोग एक ही तरह से इन कोड वर्ड्स का प्रयोग करें.  

Advertisement

NATO में भी ऐसे शब्दों का इस्तेमाल

भारतीय सेना ही नहीं NATO में भी इसी फोनेटिक अल्फाबेट का इस्तेमाल होता है. सिक्योरिटी जर्नल की रिपोर्ट मुताबिक नाटो ने एक जैसी ध्वनि वाले शब्दों और गलत मैसेज से बचने के लिए इन अल्फाबेट का प्रयोग शुरू किया था. यहां तक कि एविएशन इंडस्ट्री और इमरजेंसी सर्विस में भी इनका यूज किया जाता है. इसी कड़ी में साल 1955 में इंटरनेशनल सिविल एविएशन ऑर्गनाइजेशन ने (ICAO) ने एक बुकलेट बनाई थी ताकि दुनियाभर में ऐसी शब्दावली प्रयोग में लाई जा सके.

साल 1956 में NATO ने भी इस बुकलेट के एडवांस वर्जन को इस्तेमाल करना शुरू किया ताकि सभी सदस्य देशों में फोनेटिक अल्फाबेट का चलन बढ़े और कम्युनिकेशन को आसान बनाया जा सके. हालांकि इससे पहले भी प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध के मिलिट्री ऑपरेशन के दौरान इस तरह की कोडिंग का प्रयोग हुआ था. लेकिन तब उसका कोई एक मानक नहींं था आगे इसमें और सुधार किया गया साथ ही ग्लोबल प्रैक्टिस के लिहाज से अब इसे अपडेट किया गया है.

---- समाप्त ----

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement