क्यों देरी से निकलता है करवाचौथ का चांद? समझिए इसके पीछे का साइंस

करवाचौथ पर पत्नियां पति की लम्बी आयु के लिए निर्जला व्रत रखती हैं और रात को चांद देखने के बाद ही अपना व्रत खोलती हैं, लेकिन इस दिन अधिकतर चांद देरी से निकलता है और स्त्रियां उसे देखने के लिए बेचैन रहती हैं. लेकिन ऐसा होता क्यों है? आइए आपको इसके पीछे का साइंस समझाते हैं.

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पूर्णिमा के बाद हर दिन चंद्रमा लगभग 50 मिनट देर से उदय होता है. (Photo: Getty Images) पूर्णिमा के बाद हर दिन चंद्रमा लगभग 50 मिनट देर से उदय होता है. (Photo: Getty Images)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 10 अक्टूबर 2025,
  • अपडेटेड 11:01 AM IST

करवा चौथ पर महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और खुशहाल जीवन की कामना के लिए निर्जला व्रत रखती हैं. पूरा दिन सूरज की रोशनी में, बिना पानी या खाना खाए, मन में अपने पति के लिए प्यार और विश्वास रखकर वे दिन बिताती हैं. इसके बाद रात को जब व्रत खोलने की बारी आती है तब चांद साधारण से ज्यादा देर से नजर आता है. इससे उनकी बेचैनी और बढ़ जाती है. यह बेचैनी सिर्फ एक भावनात्मक अनुभव नहीं है बल्कि इसका एक वैज्ञानिक कारण भी है. आइए आपको बताते हैं करवाचौथ के दिन चांद देरी से क्यों नजर आता है.

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"देर से चंद्रोदय" का क्या अर्थ है और ऐसा क्यों होता है?

असल में चंद्रमा के उदय का समय खगोलीय यांत्रिकी (Astronomical Mechanics) द्वारा निर्धारित होता है. यह विज्ञान समझाता है कि आसमान में ग्रह, चांद और सूरज कैसे चलते हैं. इस साइंस के हिसाब से चांद और धरती अपनी-अपनी कक्षा में घूमते रहते हैं.धरती थोड़ा झुकी हुई है और हर जगह का स्थान भी अलग होता है. इन्हीं कारणों से चांद के निकलने का समय हर दिन थोड़ा बदलता है.

astronomy.stackexchange के अनुसार, चांद हर दिन थोड़ा-थोड़ा करके आसमान में पूर्व दिशा की ओर बढ़ता है. यानी, वो रोज़ अपनी जगह से थोड़ा आगे खिसक जाता है. चंद्रमा पृथ्वी की परिक्रमा पूर्व दिशा में करता है. हर रात और हर दिन चंद्रमा को उस स्थिति तक पहुंचना पड़ता है जहां वह पुनः उदय होगा, जिससे आमतौर पर पिछली रात की तुलना में चंद्रोदय में देरी होती है. चंद्रमा प्रत्येक दिन लगभग 50 मिनट देरी से उदय होता है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि चांद हर रोज आसमान में करीब 13 डिग्री आगे बढ़ जाता है. इसलिए धरती को थोड़ा ज़्यादा घूमना पड़ता है ताकि चांद फिर से क्षितिज पर दिखाई दे सके.

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चंद्रोदय का समय एक दिन से दूसरे दिन में औसतन 50 मिनट आगे बढ़ जाता है और कभी-कभी यह बदलाव केवल कुछ मिनटों से लेकर 60 मिनट तक हो सकता है. पृथ्वी को अपनी धुरी पर घूमकर उस जगह पर वापस आने में लगभग 24 घंटे लगते हैं, जहां से आप चंद्रमा को पहली बार उगते हुए देखते हैं. लेकिन, इसी दौरान चंद्रमा भी पृथ्वी के चारों ओर अपनी कक्षा में काफी आगे निकल गया होता है (हर दिन लगभग 13°). इसलिए, पृथ्वी को थोड़ा और घूमना पड़ता है ताकि आप चंद्रमा को फिर से क्षितिज पर देख सकें. यही एक्स्ट्रा 50 मिनट  चंद्रोदय के समय में प्रतिदिन की वृद्धि का मुख्य कारण है.

हालांकि 50 मिनट का यह अंतर हर दिन नहीं रहता है. यह कभी ज्यादा या कभी कम भी हो सकता है. इसके दो कारण होते हैं. पहला यह कि चंद्रमा आसमान में सीधी रेखा में नहीं चलता इसलिए यह पृथ्वी से कभी दूर तो कभी पास हो जाता है. इसका मतलब है चंद्रमा पृथ्वी के चारों ओर एक पूरी तरह से गोल कक्षा में नहीं घूमता, बल्कि एक अंडाकार कक्षा में घूमता है. दूसरा है चांद की स्पीड. जब चंद्रमा पृथ्वी के सबसे करीब होता है, तो वह अपनी कक्षा में तेज़ गति से चलता है. जब चंद्रमा पृथ्वी से सबसे दूर होता है तो वह अपनी कक्षा में धीमी गति से चलता है.

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करवाचौथ के दिन देरी से क्यों निकलता है चांद?

करवा चौथ पर चंद्रमा देर से क्यों निकलता है, इसका कारण मुख्य रूप से चंद्रमा की दैनिक गति और उस दिन उसकी कक्षीय स्थिति का एक स्वाभाविक संयोग है. सिर्फ करवाचौथ ही नहीं पूर्णिमा के दिन: चंद्रमा लगभग सूर्यास्त के समय उदय होता है. करवा चौथ (चतुर्थी) के दिन करवा चौथ पूर्णिमा के 4 दिन बाद मनाया जाता है. इन 4 दिनों में, चंद्रमा के उदय होने का समय कुल मिलाकर काफी आगे बढ़ चुका होता है. यानी, करवा चौथ पर चंद्रमा अपने आप ही पूर्णिमा की तुलना में लगभग 200 मिनट (या 3 घंटे 20 मिनट) देर से उदय होता है. हालांकि यह देरी जगह पर भी निर्भर करती है. 

कहां जल्दी तो कहीं देरी से क्यों नजर आता है चांद

अगर आप ऐसी जगह हैं जहां चारों तरफ ऊंची इमारतें या पहाड़ हैं, तो भले ही गणना के हिसाब से चांद निकल चुका हो. आपको वो दिखाई नहीं देता. चांद तब ही दिखेगा जब वो उन इमारतों या पहाड़ों से ऊपर उठ जाएगा. इसलिए आपको लगता है कि चांद देर से निकला. चांद का कहीं जल्दी दिखना और कहीं देरी से, इसके एक कारण धरती के चारों तरफ जो हवा का घेरा (वायुमंडल) भी है. यह एक बड़े, अदृश्य शीशे या लेंस की तरह काम करता है. जब चांद क्षितिज के पास होता है तब यह हवा उसकी रोशनी को थोड़ा मोड़ देती है. इसलिए चांद हमें अपनी असली जगह से थोड़ा ऊपर दिखाई देता है. हमें लगता है कि चांद थोड़ा पहले निकल आया,
जबकि वो असल में अभी पूरा ऊपर नहीं आया होता.

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