V A Sundaram: पढ़ाई छोड़ चुना स्‍वाधीनता का रास्‍ता, जानें BHU के लिए चंदा जुटाने वाले वी ए सुदंरम की कहानी

V A Sundaram Birthday: जब सुंदरम ने अप्रैल 1915 में महात्मा गांधी को मद्रास में भाषण देते हुए सुना, तो उन्होंने तुरंत अपनी पढ़ाई छोड़ने और एक शिष्य के रूप में गांधी का अनुसरण करने का फैसला किया. 19 साल की उम्र में वह पढ़ाई छोड़ स्‍वाधीनता संग्राम में कूद पड़े.

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aajtak.in

  • नई दिल्‍ली,
  • 02 फरवरी 2023,
  • अपडेटेड 9:29 AM IST

V A Sundaram Birthday: वी ए सुंदरम का जन्म 02 फरवरी 1896 को कोयम्बटूर में हुआ था. वह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में एक कार्यकर्ता, महात्मा गांधी के सहयोगी, मदन मोहन मालवीय के विश्वासपात्र और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के एक धन एकत्र वाले सचिव थे. उनका काम कम्‍यूनिकेशन और जनसंपर्क पर केंद्रित था. 

अपनी पढ़ाई के बीच ही वह भारतीय स्वतंत्रता के विचार से प्रभावित हुए और पहली बार दिसंबर 1914 में मद्रास में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की एक बैठक में शामिल हुए. जब सुंदरम ने अप्रैल 1915 में महात्मा गांधी को मद्रास में भाषण देते हुए सुना, तो उन्होंने तुरंत अपनी पढ़ाई छोड़ने और एक शिष्य के रूप में गांधी का अनुसरण करने का फैसला किया.

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19 वर्षीय युवक के उत्साह से प्रभावित होकर, गांधी उसे अहमदाबाद ले गए, जहां सुंदरम को गांधीजी के नये स्थापित साबरमती आश्रम के पहले शिष्‍यों में से एक बनना था. गांधीजी का आश्रम अनुशासन और खान-पान की व्यवस्था सुंदरम के लिए बहुत कठिन साबित हुई. वह कुपोषण से पीड़ित हो गए जिसके चलते 9 महीने बाद उन्‍होंने आश्रम छोड़ दिया.

इसके बाद गांधी ने उन्हें दक्षिण भारत में विभिन्न गतिविधियों के लिए एक क्षेत्रीय कार्यकर्ता के रूप में नियुक्त किया. खिलाफत आंदोलन के दौरान राष्ट्रव्यापी हड़ताल का आह्वान करते हुए अक्टूबर 1919 के गांधी के परिपत्र पत्र में भारत के 28 प्रमुख स्वतंत्रता कार्यकर्ताओं को संबोधित किया गया था, जिसमें वी. ए. सुंदरम भी शामिल थे.

सुंदरम ने तमिलनाडु के प्रमुख स्वतंत्रता कार्यकर्ताओं, सी. राजगोपालाचारी, सी. विजयराघवचारी, और सर सुब्रमनिया अय्यर के साथ घनिष्ठ और सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए. उनके मार्गदर्शन में और गांधी के समर्थन के साथ, वह 1925 के वैकोम सत्याग्रह, 1930 के नमक सत्याग्रह, और 1930-1931 के सविनय अवज्ञा अभियानों में शामिल हुए. 1931 में वह जेल भी गए जिसके चलते वह पूरे देश में लोकप्रिय हुए. 11 मार्च 1967 में उनकी मृत्‍यु हो गई.

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