नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर (NSA) अजीत डोभाल ने एक वर्ष तक पाकिस्तान में आईबी के गुप्त जासूस के रूप में काम किया, जिसके बाद उन्होंने इस्लामाबाद में भारतीय उच्चायोग में एक अधिकारी के रूप में छह साल तक काम किया. इस दौरान उनके बेटे शौर्य डोभाल भी अपने पिता के साथ रहे और पाकिस्तान के स्कूलों में पढा़ई की. द लल्लनटॉप को दिए हुए इंटरव्यू में शौर्य डोभाल ने बताया कि पाकिस्तान की स्कूली किताबों में क्या पढ़ाया जाता है.
शौर्य डोभाल ने बताया कि पाकिस्तानी बच्चों को पढ़ाया जाता है कि उनका इतिहास 1947 से शुरू हुआ है. इससे पहले क्या हुआ, यह उनको नहीं पढ़ाया जाता क्योंकि इससे पहले पाकिस्तान को कोई ऐसा इतिहास नहीं है. उन्होंने आगे बताया कि किताबों में हमेशा ये पढ़ाया जाता है कि हिंदूओं से मुस्लिम कितने श्रेष्ठ हैं. वहां के बच्चों के मन में यह गलत धारणा है कि 1947 से पहले वो हिंदुस्तान के हुक्मरान थे. शौर्य ने आगे कहा, 'उनका इतिहास मुहम्मद बिन क़ासिम के आने का बाद शुरू होता है. और वो लोग इसी को पाकिस्तान का इतिहास मानते हैं. उनको इंडस वैली के अंदर सिर्फ हड़प्पा मोहनजोदड़ो के बारे में पढ़ाया जाता हैं और उसी को फिर छठी और सातवीं शताब्दी के मुहम्मद बिन क़ासिम से जोड़ दिया जाता हैं. बीच में गुप्ता डायनेस्टी, मौर्य डायनेस्टी के बारे में कुछ नहीं पढ़ाया जाता है.'
पाकिस्तान में कैसे बीते 7 साल?
शौर्य डोभाल ने आगे बताया कि, 'मेरे पिताजी दूतावास में थे तो मैं 7 साल इस्लामाबाद रहा. उस समय अफगान क्राइसेिस (सोवियत अफगान युद्ध) चल रहा था. और पंजाब में क्राइसिस शुरू होने वाला था. पाकिस्तान इन सबमें व्यस्त था. तो भारतीय राजनयिकों और भारतीय फैमिलीज़ के लिए कोई हाई सिक्योरीटी नहीं थी. मैंने पाकिस्तान में अलग-अलग स्कूलों में पढ़ाई की.
पाकिस्तान में रहना भारत के किसी भी हिस्से में बड़े होने जैसा था. फर्क सिर्फ इतना है कि आप 50 अन्य बच्चों के बीच एकमात्र भारतीय हैं और वो सब आपके खिलाफ हैं. इसलिए आप दो चीजें सीखते हैं. पहला आप अपने देश से प्यार करना शुरू करते हैं और दूसरा कि आप अकेले लड़ना सीखे लेते हैं. और यही मेरे साथ हुआ. वहां रहना क्रिकेट मैच जैसा भी था. जैसे 49 लड़के एक तरफ और मैं एक तरफ. तो अपने आप राष्ट्रवाद पैदा हो जाता है. अकेले लड़ने की क्षमता भी खुद ही आ जाती है.'
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