फांसी होने से पहले भगत सिंह ने इन्हें कहा था, 'आप बेहद भाग्यशाली हैं'

जानिए किस कारण भगत सिंह और उनके दो साथी सुखदेव और राजगुरु को तय समय से पहले फांसी दे दी गई थी.

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भगत सिंह भगत सिंह

aajtak.in

  • नई दिल्ली ,
  • 23 मार्च 2020,
  • अपडेटेड 9:26 AM IST

आज ही का वो दिन था. जब भारत के सबसे बड़े क्रांतिकारी ने देश के खातिर अपनी जान गंवा दी थी. जी हां यहां हम बात कर रहे हैं स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह की. इसी दिन उनके दो साथी सुखदेव और राजगुरु ने भी अपनी जान गंवाई थी.

बता दें, देश के सबसे बड़े क्रांतिकारी भगत सिंह की जिंदगी किसी को भी प्रेरणा दे सकती है. आज भी उनका हर एक विचार रोंगटे खड़े कर सकता है. पर आज हम आपको उनकी फांसी से जुड़ी ऐसी बातें बताते हैं, जिसके बारे में कम ही लोग जानते हैं.

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इसलिए खुश थे भगत सिंह

भगत सिंह जानते थे कि देश के लिए उन्हें अपनी जान कुर्बान करनी होगी. कहा जाता है 1 साल और 350 दिनों में जेल में रहने के बावजूद, भगत सिंह काफी खुश थे.आप जानकर हैरान हो जाएंगे,उन्हें खुशी इस बात की थी, कि वह देश के लिए कुर्बान हो जा रहे हैं.

जब तीनों को फांसी देना तय किया गया था, जेल के सारे कैदी रो रहे थे. इसी दिन भगत सिंह के साथ ही राजगुरु और सुखदेव की फांसी भी तय थी.

फांसी से पहले इनकी जीवनी पढ़ रहे थे भगत सिंह

जहां एक ओर भगत सिंह खुश थे वहीं दूसरी ओर देश में प्रदर्शन हो रहे थे. लाहौर में भारी भीड़ इकठ्ठा होने लगी थी. अंग्रेज जानते थे कि तीनों की फांसी के दौरान उग्र प्रदर्शन होगा, जिसे रोकने के लिए मिलिट्री लगाई हुई थी.

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देश में किसी भी तरह का ऐसा बवाल न हो जिसे रोकना मुश्किल हो जाए, इसलिए भगत सिंह और उनके दो साथियों को तय दिन से एक दिन पहले ही फांसी पर लटका दिया गया था.

कब था फांसी का दिन

तीनों की फांसी का दिन 24 मार्च तय किया गया था. लेकिन फांसी एक दिन पहले ही दी गई थी. सतलुज नदी के किनारे गुप-चुप तरीके से इनके शवों को ले जाया गया.

गुप्त रखी गई थी फांसी

तय समय से फांसी दी जानी थी, ऐसे में पूरी फांसी की प्रक्रिया को गुप्त रखा गया था. उस दौरान कम ही लोग शामिल थे. इनमें यूरोप के डिप्टी कमिश्नर भी थे. जितेंदर सान्याल की लिखी किताब 'भगत सिंह' के अनुसार, फांसी के तख्ते पर चढ़ने के बाद, गले में फंदा डालने से ऐन पहले भगत सिंह ने डिप्टी कमिश्नर की और देखा और मुस्कुराते हुए कहा, "मिस्टर मजिस्ट्रेट, आप बेहद भाग्यशाली हैं कि आपको यह देखने को मिल रहा है कि भारत के क्रांतिकारी किस तरह अपने आदर्शों के लिए फांसी पर भी झूल जाते हैं."

आखिरी समय में पढ़ी थीं ये किताबें

भगत सिंह को किताबें पढ़ने का काफी शौक था. उनकी किताबों को लेकर दीवानगी हैरान करने वाली है. वह अपनी जिंदगी के आखिरी समय तक नई-नई किताबें पढ़ते रहे. जब भी किताबें पढ़ते तो साथ में कुछ- कुछ लिखकर नोट्स भी बनाया करते थे. वह जब तक जेल में कई किताबें उन्होंने पढ़ी.

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जब उन्हें फांसी दी जाने थी, उस समय वह लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे. जेल में रहने वाले पुलिसवालों ने उन्हें बताया कि उनकी फांसी का समय हो चुका है. भगत सिंह बोले, 'ठहरिये, पहले एक क्रांतिकारी दूसरे क्रांतिकारी से मिल तो ले'. अगले एक मिनट तक किताब पढ़ी. फिर किताब बंद कर उसे छत की और उछाल दिया और बोले, 'ठीक है, अब चलो.'

अंग्रेज सरकार दिल्ली की असेम्बली में ‘पब्लिक सेफ़्टी बिल’ और ‘ट्रेड डिस्प्यूट बिल’ पास करवाने जा रही थी. ये दो बिल ऐसे थे जो भारतीयों पर अंग्रेजों का दबाव और भी बढ़ा देते.फायदा सिर्फ अंग्रेजों को ही होना था. इससे क्रांति की आवाज को दबाना भी काफी हद तक मुमकिन हो जाता. अंग्रेज सरकार इन दो बिलों को पास करवाने की जी-तोड़ कोशिश कर रही थी. वो इसे जल्द से जल्द लागू करना चाहते थे.

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