MP का वो गांव जहां परंपरा के नाम पर पैरों तले कुचली जाती है जिंदगी!

जबसे ये इंसानी दुनिया धऱती पर आबाद है. तब से आस्था ऐसे आसमान की तरह है. जिससे बरकत और नेमत बरसती है. आस्था की अस्मत भी इसी में महफूज है. लेकिन इंसान जब आस्था की रौशनी छोड़ कर अंधविश्वास के अंधेरों में भटक जाता है तो आस्था भी शर्मसार हो जाती है.

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ये परंपरा इस गांव में बरसों से चली आ रही है ये परंपरा इस गांव में बरसों से चली आ रही है

परवेज़ सागर / शम्स ताहिर खान

  • उज्जैन,
  • 09 नवंबर 2018,
  • अपडेटेड 2:19 PM IST

परम्परा या रवायत क्या है? कायदे से देखिए तो ये महज़ एक प्रैक्टिस है. जो किसी एक ने शुरू की. किसी और ने उसकी नकल की और फिर वो रवायत बन गई. बिना इस बात की परवाह किए कि क्या सही है क्या गलत. लॉजिक लगाने की गुंजाइश जिसमें नहीं होती उसे ही परंपरा समझ लीजिए. जिस तरह ये ज़रूरी नहीं है कि हर परंपरा गलत हो. उसी तरह ये भी ज़रूरी नहीं है कि हर परंपरा सही हो. देश भर में ऐसी कई परंपराएं मौजूद हैं, जिनके पैरों तले रौंदी जा रही है इंसानियत.

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वो कहते हैं कि गाय उनके ऊपर से गुज़र जाती है और उन्हें पता भी नहीं चलता है. उनका कहना है कि यहां हर मन्नत पूरी होती है. कभी खाली नहीं जाती. ये रीत सदियों से चली आ रही है. उनके बच्चे भी इसे चलाएंगे. बहुत से लोग अंधविश्वास कहते हैं मगर हमारी श्रद्धा है.

इसके बाद सारी बहस को यहीं खत्म कर दीजिए. क्योंकि आस्था और श्रद्धा के मामले में सवाल नहीं किए जाते. वरना आपको अधर्मी कह दिया जाएगा. ज़ाहिर है हमारे देश में आस्था और धर्म को सर आंखों पर रखा जाता है. मगर सोच के देखिए सड़क पर आपके बगल से गुज़रती गाय थोड़ा सा सिर भी हिला दे. तो खौफ की वजह से आपका यकीन पल भर में बदल जाता है. सिहरन दौड़ जाती है बदन में. तो फिर यहां क्यों नहीं.

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तो सारी जद्दोजहद का निचोड़ ये है कि आपके जिस्म के ऊपर से पांव रखकर अगर गाय गुज़र जाए. तो समझिए आपका सालों पुराना उधार चुकता हो गया. शादी या बच्चा नहीं हो रहा है तो हो जाएगा. नौकरी नहीं है तो लग जाएगी. कुल मिलाकर मन्नत कैसी भी हो यहां पूरी हो जाएगी. यहां लोग मानते हैं कि इससे सारी परेशानी दूर हो जाती हैं. सारी मन्नते पूरी हो जाती हैं.

अब इस परंपरा को इस पर यकीन करने वालों की नज़रों से देखिए तो इनकी दलील है कि जब जन्म देने वाली मां के पांव के नीचे जन्नत हो सकती है. तो फिर जिस गौ माता के शरीर में 33 करोड़ देवी देवताओं का वास हो तो क्या वो मन्नत को पूरा नहीं कर सकती. आस्था हो तो मुमकिन है. इसीलिए शुरू में ही आपसे साफ कह दिया गया था कि आस्था और श्रद्धा के मामले में सवाल नहीं करते.

अब आइये समझते हैं कि ये परंपरा आखिर है क्या. दरअसल मध्य प्रदेश के उज्जैन ज़िले में एक गांव है भीडावद. परंपरा के मुताबिक दिवाली के दूसरे दिन यहां गोवर्धन पूजा होती है. खास इस मौके पर यहां एक परंपरा प्रचलित है. इस परंपरा के मुताबिक चार हज़ार की आबादी वाले इस गांव में उन आठ लोगों का चुनाव किया जाता है, जिन्हें मन्नत मांगनी है. ये चुनाव मन्नत के मेयार के मुताबिक किया जाता है. पूजा अर्चना के बाद सुबह-सुबह इन चुने गए लोगो का जुलूस निकला जाता है. और फिर गांव में बीच चौराहे पर उन्हें लिटा दिया जाता है. जिसके बाद शुरू होता है गांव की सजी धजी गायों का इन पर से गुज़रने का सिलसिला.

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इस परंपरा के मुताबिक माता भवानी के मंदिर में मन्नत मांगने वालो को 5 दिन पहले ही घर छोड़ कर माता के दरबार में आना होता है. 5 दिन श्रद्धा भाव से मंदिर में रहने के बाद उन्हें मां गौरी यानी गायों के आशीर्वाद के लिए तैयार कर के ज़मीन पर लिटा दिया जाता है. हालांकि गाय के पैरों से सिर में चोट न लगे इसलिए इन लोगों के सिर को कंबल से ढक दिया जाता है. अब इसे आस्था कहना है या अंधविश्वास ये आप तय कर लीजिए मगर इसे मानने वालों के लिए ये दिल के बहुत करीब है. शायद इसी वजह से ये परंपरा यहां बरसों से चली आ रही है.

गांव वालों का कहना है कि उनकी इस परंपरा से अब तक तो कोई ज़ख्मी नहीं हुआ है और आगे भी नहीं होगा. शायद इनके इसी यकीन ने इस परंपरा को वक्त के साथ कमजोर नहीं पडने दिया. लोगों की आस्था अब भी इस जानलेवा प्रथा पर बनी हुई है. इनके मुताबिक गाय माता का अगर एक पैर भी इन पर पड़ गया तो इनकी सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाएंगी. और गौरी माता का आशीर्वाद हमेशा बना रहेगा.

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