करीब साढ़े तीन साल पहले जून 2013 में आसमान से आई एक आफत ने उत्तराखंड में हजारों लोगों की जानें ले ली थी और सैकड़ों को अपने साथ बहा कर ले गई थी. ऐसे लोगों की कोई कमी नहीं है, जो आज भी अपनों के लौट आने का इंतजार कर रहे हैं. चमत्कार की उम्मीद कर रहे हैं. पर आप जानते हैं उन खोए लोगों की हकीकत क्या है? पहाड़ों में वो कहां-कहां कैसे और किन हालात में बिखरे पड़े हैं?
उत्तराखंड के पहाड़ कंकाल उगल रहे हैं
केदार नाथ के कपाट तो बंद हो गए, लेकिन साढ़े तीन साल बाद भी श्रद्धालुओं के कंकाल केदार घाटी की खिड़की से झांक रहे हैं. इस उम्मीद में कि कोई तो आए उनको मुक्ति देने. सरकार और पुलिस ने तो लाशों में अटकी जमा पूंजी लूटी और घाटी में धकेल दिया. केदारनाथ में आई आपदा को साढ़े तीन साल के दौरान केदारपुरी का तो कायाकल्प हो गया, लेकिन ऐसे हजारों लोग जो अपनी काया गंवा बैठे, उनका उद्धार कब होगा इसका जवाब किसी के पास नहीं है. घाटी में जगह-जगह फैले कंकाल अपनी करुण कथा खुद ही कहते हैं.
केदार घाटी पहुंची 'आज तक' की टीम
साढ़े तीन साल पहले आए जलप्रलय का खौफ अब भी लोगों का पीछा नहीं छोड़ता. डरते-कांपते लोग जय बाबा केदार का जाप करते आगे बढ़ते जाते हैं. कोई रुकना नहीं चाहता क्योंकि जगह-जगह बोर्ड लगे हैं कि आगे पत्थर गिरने का खतरा है. सावधानी से आगे बढ़ें. कंकालों की करुण कथा सुनने के लिए 'आज तक' की टीम ने केदार घाटी का चप्पा-चप्पा छाना. टीम को उन कंकालों की कथा का सुराग भी लगा. इस कथा के अनाम पात्रों के साथ जाने -हचाने पात्रों की करतूतें भी पता चलीं. ऐसे खलनायकों में खाकी वाले भी शामिल हैं और खादी वाले भी, लेकिन अब जैसे-जैसे वक्त बीतता जाता है किसी दुर्गम, अपरिचित और बेहद ऊंचे पहाड़ों से गुजरती पगडंडी के किनारे पड़े कंकालों की सिसकियां तो सुनाई पड़ जाती हैं.
एसडीआरएफ की टीम को मिले 32 कंकाल
त्रियुगी नारायण की कठिन चढ़ाई के रास्ते में ऊबड़-खाबड़ पगडंडियों और बर्फीली हवाओं के थपेड़ों के बीच हरे घास के ढलानों वाले बुग्यालों में कुछ कंकाल एसडीआरएफ की टीम को मिले थे. उनका अंतिम संस्कार भी कर दिया गया. एसडीआरएफ की टीम ने त्रियुगीनारायण से केदारनाथ के सबसे दुर्गम रास्ते पर 32 कंकालों की खोज की थी. दरअसल साढ़े तीन साल पहले जो आसमानी आफत आई थी तब जान बचाने के लिए जिधर मौका मिला लोग उधर भागे और इसी चक्कर में कई तो खुद मौत के मुंह में ही चले गए और बहुत सारे ऐसी जगह पहुंच गए, जहां इंसानों का आना-जाना ही नहीं था.
संजय शर्मा / सुरभि गुप्ता