कहते हैं जोड़ियां स्वर्ग में बनती हैं और धरती पर शादी की डोर में बंधती हैं. युवा डॉक्टर जोड़ी सिद्धार्थ और मोनिका के लिए जन्म-जन्म के बंधन में बंधने की ये कहानी इस साल वेलेंटाइन डे पर शुरू हुई. डॉ. सिद्धार्थ ने सोचा भी नहीं था कि यूरोप में हनीमून के 14 दिन बिताने के बाद उन्हें 14 दिन पुणे में क्वारंटाइन (सबसे पृथक) में भी रहना पड़ेगा.
लेकिन डॉ. सिद्धार्थ ने क्वारंटाइन को जिस तरह से लिया वो तारीफ के काबिल है. उन्होंने दिखाया कि क्वारंटाइन कोई हौवा नहीं, बल्कि खुद के साथ-साथ अपने करीबियों के स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए भी कितना जरूरी है.
पुणे में MCh यूरोलॉजी की पढ़ाई कर रहे डॉ. सिद्धार्थ जय सिंह ने बताया, हम हनीमून के लिए फ्रांस, स्विट्जरलैंड और नीदरलैंड्स गए. जब वहां से लौटे तो पुणे आकर मुझे हल्के लक्षण महसूस हुए, तो मुझे क्वारंटीन में रहने की सलाह दी गई. मैंने इस पर खुद को बाकी दुनिया के लोगों से कट कर रहने में देर नहीं लगाई.
क्वारंटाइन में रहने का फैसला
असल में डॉ. सिद्धार्थ 5 मार्च को विदेश से मुंबई लौटे तो उनकी एयरपोर्ट पर स्क्रीनिंग हुई. इसके पांच दिन बाद पुणे में उन्हें सर्दी की शिकायत हुई. उन्होंने पुणे के अस्पताल में अपने वरिष्ठ डॉक्टरों से संपर्क किया. उनकी सलाह पर डॉ. सिद्धार्थ ने क्वारंटाइन में रहने का फैसला किया.
डॉ. सिद्धार्थ के मुताबिक, ऐसा करते वक्त आप कई चीज प्लान कर सकते हैं. हां अपने घर पर काम करने वाली मेड या कोई अन्य कर्मचारी है तो उसे भी छुट्टी देना मत भूलिए.
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डॉ. सिद्धार्थ की पत्नी डॉ. मोनिका गोवा के सरकारी अस्पताल में कार्यरत हैं. उन्हें विदेश से लौटने के बाद कोई लक्षण महसूस नहीं हुए. डॉ. सिद्धार्थ के माता-पिता भी डॉक्टर हैं और भागलपुर में अस्पताल चलाते हैं. डॉ. सिद्धार्थ इस परीक्षा की घड़ी में कहीं घबराहट में नहीं आए, बल्कि उन्होंने महसूस किया कि ये क्वारंटाइन को लेकर भ्रांतियां और मिथक तोड़ने का मौका है.
डॉ. सिद्धार्थ अपना समय बिताने के लिए हनीमून की फोटो देखते हुए यूरोप में बिताए पलों को याद करते हैं. इसके अलावा भी कई तरह से वक्त का सदुपयोग करते रहे हैं.
क्वारंटाइन से डरने की जरूरत नहीं
डॉक्टरों के प्रतिष्ठित परिवार से ताल्लुक रखने पर डॉ. सिद्धार्थ को गर्व है. उनके दादा भी डॉक्टर थे और 60 के दशक में अमेरिका जैसे देश को छोड़ अपनी जड़ों की ओर लौट आए थे. डॉ. सिद्धार्थ के माता-पिता भी विदेश में मोटे सैलरी पैकेज छोड़ भागलपुर जैसे छोटे शहर में आए और वंचित लोगों की सेवा के लिए अपनी कर्मभूमि बना लिया.
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डॉ. सिद्धार्थ के पिता डॉ. संजय सिंह ने कहा, जब हमने सुना कि उसे घर पर ही आइसोलेशन में रहने की सलाह दी गई है, तो हमने उसे ऐसा करने के लिए कहा. इस संबंध में जागरूकता फैलाना जरूरी है. क्वारंटाइन ऐसी चीज नहीं कि जिससे डरा जाए और ना ही इससे भागा जाए. ये आपको और परिवार को सुरक्षित रखने के लिए है.
कोरोना वायरस के संकट के दौरान जहां कुछ जगह से मरीजों के क्वारंटाइन छोड़कर भागने की रिपोर्ट सामने आई है. ऐसे में डॉ. सिद्धार्थ की कहानी मिसाल की तरह है. अब डॉ. सिद्धार्थ काम पर लौटकर देश की सेवा के लिए तैयार हैं. उन जैसे कर्मयोद्धा ही देश की उम्मीद हैं.
मौसमी सिंह