गलत तरीके से हुआ वैक्सीनेशन तो हो सकती है ब्लड क्लॉटिंग: स्टडी

वयस्कों को दी जा रही कोविड-19 वैक्सीन को अगर सही तकनीक से नहीं लगाया जा रहा है तो शरीर में ब्लड क्लॉटिंग हो सकती है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किए गए हालिया अध्ययनों में यह बात सामने आई है.

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वैक्सीनेशन के बाद सामने आए हैं ब्लड क्लॉटिंग के केस (सांकेतिक तस्वीर-Reuters) वैक्सीनेशन के बाद सामने आए हैं ब्लड क्लॉटिंग के केस (सांकेतिक तस्वीर-Reuters)

मिलन शर्मा

  • नई दिल्ली,
  • 03 जुलाई 2021,
  • अपडेटेड 3:36 PM IST
  • गलत टीकाकरण से जम सकता है थक्का
  • म्यूनिख यूनिवर्सिटी की सामने आई रिपोर्ट
  • वैक्सीनेशन के बाद ब्लड क्लॉटिंग के कई केस

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किए गए हाल के अध्ययनों से यह पता चला है कि वयस्कों को कोविड-19 के टीके लगाने के लिए अगर गलत इंजेक्शन तकनीक अपनाई गई है तो टीकाकरण के बाद रक्त के थक्के जम सकते हैं. जर्मनी की म्यूनिख यूनिवर्सिटी और इटली के एक इंस्टीट्यूट के संयुक्त क्लिनिकल ट्रायल में यह बात सामने आई है. 

स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि अगर इंजेक्शन देने की तकनीक गलत है, तो टीका रक्त प्रवाह में इंजेक्ट हो सकता है, न कि मांसपेशी में. अगर ऐसा है तो खून के थक्के जमने की आशंका ज्यादा है. केरल के कोच्चि में कोविड-19 महामारी से निपटने के लिए इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की टास्क फोर्स के सदस्य डॉक्टर राजीव जयदेवन का भी यही मानना है. 

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उनका कहना है कि अगर इंजेक्शन की नोक मांसपेशियों में पर्याप्त गहराई तक नहीं पहुंचती है, या वह रक्त वाहिका से टकराती है तो ऐसी स्थिति में यह ब्लड स्ट्रीम में इंजेक्ट हो सकती है. ऐसा कम होता है अगर वैक्सीन किसी प्रशिक्षित हेल्थ वर्कर ने लगाया हो. 

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किन कोविड टीकों के बाद हुई क्लॉटिंग?

डॉक्टर जयदेवन का कहना है कि जब ऐसा होता है, तो टीका ठीक से अवशोषित नहीं होता है, और यह त्वचा और मांसपेशियों के बीच स्थित चमड़े के नीचे की परत के जरिए रक्त वाहिकाओं को हिट कर सकता है. स्पुतनिक वी, जॉनसन एंड जॉनसन और एजेड एडेनोवायरस टीके लगाने के बाद दुनियाभर में ब्लड क्लॉटिंग के मामले सामने आए थे. वहीं स्पुतनिक वी के टीकाकरण के बाद ऐसी घटनाएं नहीं सामने आई हैं.

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जर्मनी की म्यूनिख यूनिवर्सिटी और इटली के एक इंस्टीट्यूट के अध्ययन में भी यह बात सामने आई है कि अगर एडेनोवायरस टीके अगर ब्लड स्ट्रीम में लगाए जा रहे हैं तो ऐसी मुश्किलें सामने आ सकती हैं. यह स्टडी एस्ट्राजेनेका और फाइजर जैसी वैक्सीन लगवाने वाले लोगों पर की गई थी, जिन्हें अलग तरीके से वैक्सीनेट किया गया था.

महिला या पुरुष, किसे ज्यादा जोखिम?

क्या महिला और पुरुषों के शरीर में होने वाली ब्लड क्लॉटिंग में अंतर है. अब तक सामने आई स्टडी के मुताबिक वैक्सिन लगने के बाद क्लॉटिंग के मामले महिलाओं में ज्यादा देखने को मिले हैं. इसकी वजह क्या है, अब तक ज्ञात नहीं है. डॉक्टर राजीव से जब यही सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि महिलाओं के शरीर में डेल्टोइड मांसपेशी सघन होती है. 

इसका मतलब है कि उनके पास वसा की सघन परत पुरुषों की तुलना में होती है. इसका मतलब है कि मांस तक पहुंचने के लिए वैक्सीन महिलाओं को ठीक तरीके से लगानी चाहिए. आमतौर पर महिला और पुरुषों को लगाने के लिए सेम लेंथ की निडिल का इस्तेमाल किया जाता है. ऐसे में मांस तक निडिल का न पहुंच पाना, महिलाओं में ज्यादा हो सकता है.

क्या वैक्सीन की दूसरी डोज में है ज्यादा खतरा?

अब तक की स्टडी के मुताबिक कोरोना वैक्सीन की दूसरी डोज में ब्लड क्लॉटिंग के मामले बेहद कम आए हैं. ब्लड क्लॉटिंग की आशंका दूसरी डोज में 10 गुनी कम है. दरअसल कोरोना के पहले डोज से पहले शरीर वायरस से लड़ने में पूरी तरह से सक्षम भी नहीं होता है. डेनमार्क  स्टेटन्स सीरम इंस्टीट्यूट ने वैक्सीनेशन को लेकर विशेष गाइडलाइन जारी की है कि किस तरह से वैक्सीन लगानी चाहिए. थक्का जमने से कैसे बचाव करें, इसके बारे में विस्तार से इस गाइडलाइन में बताया गया है.

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