Advertisement

कोरोना

खांसी की दवा में मिला केमिकल जो बढ़ा सकता है कोरोना के फैलने का खतरा!

aajtak.in
  • 04 मई 2020,
  • अपडेटेड 8:55 AM IST
  • 1/9

कोरोना वायरस को रोकने के लिए दुनियाभर के वैज्ञानिक और डॉक्टर अलग-अलग तरह की दवाइयों की जांच कर रहे हैं. इनमें से कुछ एनजाइटी (अवसाद) और एलर्जी के लिए भी हैं. इन दवाइयों को जांचने का मकसद ये है कि कोरोना मरीजों में वायरस के प्रभाव को खत्म करने में इनकी ताकत का अंदाजा लगाया जा सके. लेकिन खांसी से पीड़ित कोरोना वायरस के मरीजों के लिए एक खास प्रकार की खांसी की दवा का उल्टा असर हो सकता है. इससे वायरस तेजी से फैल सकता है.

  • 2/9

ये खांसी की दवा शरीर के अंदर कोरोना वायरस के फैलाव को बढ़ावा दे सकती है. 30 अप्रैल को साइंस मैगजीन नेचर में ये रिसर्च रिपोर्ट प्रकाशित हुई है. वैज्ञानिकों ने जब लैब में इंसानों की कोशिकाओं पर इस खांसी की दवा की जांच की तो पता चला कि एक रसायन की वजह कोशिका में वायरस तेजी से फैल रहा है. (फोटोः AFP)

  • 3/9

कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के सैन-फ्रांसिस्को स्कूल ऑफ फॉर्मेसी के रिसर्चर ब्रायन सोईसेट ने कहा कि जांच में पता चला है कि जिस खांसी की दवा यानी खफ सीरप में डेक्स्ट्रोमिथोर्फन (Dextromethorphan) रसायन है, वो कोरोना वायरस के मरीजों की दिक्कत को बढ़ा रहा है. इस रसायन की मदद से वायरस शरीर के अंदर ज्यादा तेजी से फैल सकता है.

Advertisement
  • 4/9

ब्रायन ने कहा कि हम ये नहीं कह रहे कि सभी लोग डेक्स्ट्रोमिथोर्फन रसायन वाले कफ सीरप लेना बंद कर दें. लेकिन जिन्हें कोरोना वायरस है उन्हें इस रसायन के कॉम्बिनेशन वाली खांसी की दवा से बचना चाहिए. क्योंकि हमें प्रयोगशाला में स्पष्ट रूप ये देखने को मिला है कि मंकी सेल यानी वीरो सेल पर डेक्स्ट्रोमिथोर्फन रसायन है, उसपर कोरोना वायरस तेजी से फैल रहा है.  (फोटोः AFP)

  • 5/9

ब्रायन ने बताया कि लैब में जो रिजल्ट दिखाई दे रहे हैं अगर वहीं इंसानों के शरीर में दिखने लगे तो मुसीबत बहुत ज्यादा बढ़ सकती है. अभी कोरोना वायरस के ऊपर डेक्स्ट्रोमिथोर्फन रसायन का और कितना असर होता है, इसकी बड़े पैमाने पर जांच करने की जरूरत है. (फोटोः एपी)

  • 6/9

ब्रायन और उनकी टीम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गठित वैज्ञानिकों की उस टीम का हिस्सा हैं जो कोरोना वायरस के प्रोटीन और इंसानों में पाए जाने वाले प्रोटीन और मंकी सेल्स (Monkey Cells) के बीच संबंध को समझ रहे हैं. (फोटोः रॉयटर्स)

Advertisement
  • 7/9

मंकी सेल यानी अफ्रीका में पाए जाने वाले बंदरों की विशेष प्रजाति से लिए गए खास प्रकार की कोशिकाएं जो प्रयोगशालाओं में दवाओं के असर और वायरसों के हमले को जांचने के लिए रखी जाती हैं. इसे वीरो सेल (Vero Cells) भी कहा जाता है.

  • 8/9

मंकी सेल की खोज 27 मार्च 1962 में जापान की शीबा यूनिवर्सिटी के यासूमूरा और कावाकिता ने की थी. तब से लेकर आज तक जब भी वायरसों और दवाओं के लैब में जांच की बात आती है. तब मंकी सेल्स का उपयोग किया जाता है. (फोटोः रॉयटर्स)

  • 9/9

ब्रायन ने कहा कि इंसानी फेफड़ों में पाई जाने वाली कोशिकाएं बहुत तेजी से प्रोटीन निकालती है. जिससे वायरस आकर्षित होता है. फेफड़े की कोशिकाओं की तरह मंकी सेल भी प्रोटीन निकालता है, इसपर पहले हमने वायरस ड़ाला. फिर उसके फैलने की गति देखी. इसके बाद डेक्स्ट्रोमिथोर्फन रसायन डाला तो देखा कि वायरस ज्यादा तेजी से फैल रहा है. (फोटोः रॉयटर्स)

Advertisement
Advertisement
Advertisement