दुनिया की सबसे बड़ी फर्नीचर कंपनी IKEA के भारत में 3,000 कर्मचारी हैं. इनमें से करीब एक चौथाई कर्मचारी पार्ट टाइम रोल (Part Time Job) पर काम कर रहे हैं. ये सप्ताह में सिर्फ दो दिन काम करते हैं. IKEA के पार्ट टाइम कर्मचारियों में ज्यादातर छात्र और महिलाएं हैं, जो अपनी जरूरत के अनुरूप काम करती हैं. इस तरह देश में एक गिग वर्कर (Gig Worker) आकार ले रहा है. गिग वर्कर को काम के आधार पर पैसे मिलते हैं, ये स्वतंत्र रूप से ऑनलाइन काम करते हैं.
असाइनमेंट बेस्ड रोल
स्वीडिश फर्नीचर रिटेलर IKEA की कंट्री पीपल एंड कल्चर मैनेजर परिणीता सेसिल लाकड़ा ने 'आज तक' की सहयोगी वेबसाइट बिजनेस टुडे को बताया- 'आज हमारे पास दुकानों में लगभग 25 फीसदी पार्ट-टाइम असाइनमेंट बेस्ड रोल हैं. यह यूनिट के आधार पर अलग-अलग होता है. उदाहरण के लिए बेंगलुरु में 40 फीसदी पार्ट-टाइमर काम कर रहे हैं'.
थर्ड पार्टी पे-रोल पर नहीं
उसने कहा कि पार्ट-टाइमर कर्मचारी IKEA इंडिया के कर्मचारी हैं. कोई भी थर्ड पार्टी पे-रोल पर नहीं है. उनकी सैलरी कॉन्ट्रैक्ट बेस्ड काम के घंटों के आधार पर है. कर्मचारी अपनी सुविधा के अनुसार इसे चुन सकते हैं. इसके अलावा फुल टाइम कर्मचारी की तरह ही उन्हें मेडिकल और इंश्योरेंस का लाभ मिलता है. पार्ट टाइम कर्मचारी स्टोर और ऑफिस दोनों तरह के रोल में काम करते हैं. ये कर्मचारी सेल्स, लॉजिस्टिक, कस्टमर इंटरेक्शन जैसे डिपार्टमेंट में काम करते हैं.
स्टूडेंट्स और महिलाएं
कुछ कर्मचारी शायद सप्ताह में 16 घंटे, 24 घंटे या 30 घंटे काम कर रहे हैं. कुछ केवल वीकेंड में ही काम करना पसंद कर रहे हैं. लकड़ा ने कहा कि सहकर्मी अपने निजी जीवन के बैलेंस के आधार पर इन विकल्पों में से एक का चयन करते हैं. उन्होंने कहा कि पार्ट-टाइम कर्मचारियों में अधिकतर छात्र और महिलाएं हैं. उनके कारण यह हो सकते हैं कि वे पढ़ाई कर रहे हैं और बाकी समय में कुछ और कर रहे हैं.
कहीं और कर सकते हैं काम
लकड़ा ने कहा कि हमारे कॉन्ट्रैक्ट के असाइमेंट के अलावा वो कोई अन्य काम कर सकते हैं. इसके लिए वो स्वतंत्र हैं. हालांकि, इतना ध्यान रखना होता है कि दूसरा काम हमारे साथ किए उनके कमिटमेंट को प्रभावित न करे. हमने देखा है कि अगर हमारे पार्ट-टाइमर्स, जब कोई दूसरा काम करना चाहते हैं, तो हमारे पास आते हैं और पूछते हैं कि क्या वे कहीं और जाने की बजाय हमारे साथ अधिक घंटे काम कर सकते हैं.
लकड़ा कहती हैं कि भारतीय वर्कफोर्स के बीच खासतौर पर कोविड महामारी के बाद गिग और फ्रीलांस वर्क की स्वीकृति धीमी ही सही लेकिन बढ़ी है. उन्होंने कहा कि फ्लेक्सिबिलिटी सहकर्मियों के साथ-साथ बिजनेस के लिए भी अच्छा है. मैं देख रही हूं कि एक जेनरेशन तेजी से वर्कफोर्स में प्रवेश कर रही है. उनका जीवन केवल उनके काम से परिभाषित नहीं होता है बल्कि वे जीवन के नए अर्थ भी तलाश रहे हैं.
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