प्रॉपर्टी बेचने का बना रहे हैं प्लान, मोटा मुनाफा पाने के लिए जान लें ये 5 जरूरी बातें

अक्सर लोग प्रॉपर्टी बेचने में जल्दबाजी करते हैं, जिससे उनको मुनाफे की जगह घाटे का सामना करना पड़ता है इसलिए जरूरी है कि प्रॉपर्टी बेचने से पहले कुछ अहम बातें जान लें, जिससे आगे चलकर कोई परेशानी न हो.

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प्रॉपर्टी बेचकर कैसे पाएं बंपर रिटर्न? (Photo-ITG) प्रॉपर्टी बेचकर कैसे पाएं बंपर रिटर्न? (Photo-ITG)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 22 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 11:36 AM IST

भारत में प्रॉपर्टी खरीदना और बेचना, दोनों ही बड़े आर्थिक फैसलों में से एक होता है. कोई निवेशक अपनी संपत्ति को इसलिए बेचता है ताकि वह मार्केट के 'हाई रेट' का लाभ उठा सके, तो कोई अपनी व्यक्तिगत जरूरतों या नई संपत्ति खरीदने के लिए अपनी पुरानी प्रॉपर्टी बेचता है. लेकिन वजह चाहे जो भी हो, जोश में आकर बिना तैयारी के प्रॉपर्टी बेचना आपको बड़े नुकसान में डाल सकता है. मार्केट एक्सपर्ट्स के अनुसार, डील फाइनल करने से पहले कुछ बुनियादी बातों का ध्यान रखना अनिवार्य है.

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कैपिटल गेन टैक्स (Capital Gains Tax) का गणित समझें

प्रॉपर्टी बेचने से होने वाली कमाई पर सरकार टैक्स लेती है, इसे 'कैपिटल गेन टैक्स' कहा जाता है, अगर आप खरीदी गई प्रॉपर्टी को 2 साल से पहले बेचते हैं, तो होने वाला लाभ आपकी आय में जुड़ता है और आपके स्लैब के अनुसार टैक्स लगता है. 2 साल के बाद बेचने पर लाभ पर 12.5% या पुराने नियमों के तहत टैक्स लगता है. इनकम टैक्स एक्ट की धारा 54 के तहत, अगर आप घर बेचकर दूसरा घर खरीदते हैं, तो आप टैक्स में छूट पा सकते हैं.

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सही वैल्युएशन जरूरी

कई बार लोग भावनात्मक जुड़ाव के कारण प्रॉपर्टी की कीमत बहुत ज्यादा रख देते हैं, जिससे खरीदार नहीं मिलते, वहीं, कुछ लोग जल्दी में इसे मार्केट रेट से कम पर बेच देते हैं. अपनी प्रॉपर्टी का सर्कल रेट पता करें. सेल डीड की वैल्यू सर्कल रेट से कम नहीं हो सकती, मार्केट वैल्यू जानने के लिए आसपास हाल ही में हुए सौदों का पता लगाएं.

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कागजी कार्रवाई और 'नो ड्यूज'

खरीदार सबसे पहले प्रॉपर्टी के कागज देखता है. सुनिश्चित करें कि आपके पास, टाइटल डीड है कि नहीं यह साबित करता है कि आप ही मालिक हैं.वहीं एन्कम्ब्रेन्स सर्टिफिकेट यह दिखाता है कि प्रॉपर्टी पर कोई लोन या कानूनी विवाद नहीं है. वहीं हाउस टैक्स, बिजली बिल और सोसाइटी मेंटेनेंस का 'नो ड्यूज सर्टिफिकेट' (NOC) तैयार रखें. अगर यदि प्रॉपर्टी पर होम लोन चल रहा है, तो बैंक से क्लोजर प्रक्रिया की बात करें.

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टीडीएस (TDS) का नियम

इनकम टैक्स नियमों के अनुसार, अगर प्रॉपर्टी की कीमत 50 लाख रुपये से अधिक है, तो खरीदार को भुगतान करते समय 1% TDS काटना होता है और उसे सरकारी खजाने में जमा करना होता है. एक विक्रेता के रूप में यह सुनिश्चित करना आपकी जिम्मेदारी है कि खरीदार आपको 'TDS सर्टिफिकेट' (Form 16B) दे, ताकि आप अपनी आईटीआर में इसका क्लेम कर सकें.

मार्केटिंग और फर्स्ट इम्प्रेशन

प्रॉपर्टी को सही खरीदार तक पहुंचाने के लिए उसे 'प्रेजेंटेबल' बनाएं, छोटी-मोटी टूट-फूट, पेंट या लीकेज को ठीक करवाएं, इससे प्रॉपर्टी की वैल्यू 5-10% बढ़ सकती है. ऑनलाइन पोर्टल के साथ-साथ स्थानीय ब्रोकरों से संपर्क करें, अच्छी तस्वीरों के साथ ऑनलाइन लिस्टिंग करने से खरीदार जल्दी मिलते हैं.

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