'सरकार प्रॉपर्टी पर 50% लेती है टैक्स, इसलिए लोग नहीं खरीद पाते हैं घर'

आम आदमी के लिए घर खरीदना एक सपना क्यों बना हुआ है, इस पर टाटा रियल्टी के सीईओ संजय दत्त ने बड़ा बयान दिया है. उन्होंने कहा कि प्रॉपर्टी की आधी कीमत तो सरकारी टैक्स के रूप में ही चली जाती है.

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आम आदमी  की पहुंच से क्यों दूर है घर?(Photo-ITG) आम आदमी की पहुंच से क्यों दूर है घर?(Photo-ITG)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 17 सितंबर 2025,
  • अपडेटेड 11:15 AM IST

भारत में सस्ते घरों के रास्ते में सबसे बड़ी रुकावट सरकार खुद है. यह बात टाटा रियल्टी के मैनेजिंग डायरेक्टर और सीईओ, संजय दत्त ने इंडिया टुडे साउथ कॉन्क्लेव में कही. उन्होंने बताया कि किसी भी प्रॉपर्टी की कीमत का करीब 50% हिस्सा सरकारी टैक्स और चार्ज में चला जाता है, जिसकी वजह से घर खरीदना आम आदमी के लिए बहुत महंगा हो जाता है.
 
टाटा रियल्टी के एमडी और सीईओ संजय दत्त ने बताया कि सरकार को सबसे पहले इस समस्या को ठीक करना चाहिए. दत्त ने इस बात पर जोर दिया कि जीएसटी के अलावा भी कई तरह के छिपे हुए टैक्स लगाए जाते हैं. अभी निर्माणाधीन किफायती घरों पर जीएसटी सिर्फ 1% है, जबकि बाकी घरों पर 5% है. लेकिन यह तो बस शुरुआत है.

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सस्ते घरों की राह में सबसे बड़ी रुकावट 

घर खरीदने वालों को स्टांप ड्यूटी (5-8%), रजिस्ट्रेशन चार्ज, नगर निगम शुल्क, विकास उपकर (development cess) और अतिरिक्त फ्लोर एरिया के लिए प्रीमियम भी देना पड़ता है. इंडस्ट्री के अनुमान बताते हैं कि बड़े शहरों में जमीन प्रीमियम, अप्रूवल, कंप्लायंस और इंफ्रास्ट्रक्चर चार्जेस को जोड़ने के बाद, किसी भी प्रोजेक्ट की कुल लागत का 30-50% हिस्सा सरकार के पास चला जाता है.

इसके अलावा, संजय दत्त ने जमीन की ऊंची कीमतों को भी एक बड़ी समस्या बताया, जो बड़े शहरों में किसी भी प्रोजेक्ट की लागत का 50-85% तक हो सकती है. उन्होंने कहा कि रेलवे, रक्षा मंत्रालय, पोर्ट ट्रस्ट और नगर निगम जैसे सरकारी निकायों के पास बहुत सारी खाली जमीन पड़ी है, जिसका इस्तेमाल घर बनाने के लिए किया जा सकता है. दत्त ने सरकार से आग्रह किया कि वे इन जमीनों को इस्तेमाल में लाएं, उन्हें किफायती घरों के लिए सस्ता करें और फिर निजी बिल्डरों को टैक्स में छूट के साथ घर बनाने की अनुमति दें.

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सस्ते घरों के रास्ते में और भी हैं रुकावटें, महंगे लोन और खराब इंफ्रास्ट्रक्चर

संजय दत्त के मुताबिक, 'सिर्फ ऊंचे टैक्स और महंगी जमीन ही समस्या नहीं हैं. घर बनाने के लिए लोन लेना भी महंगा है और शहरों में इंफ्रास्ट्रक्चर भी बहुत अच्छा नहीं है. उन्होंने सवाल उठाया, "शहर से 50 किलोमीटर दूर सस्ते घर बनाने का क्या फ़ायदा, जब लोगों के पास आने-जाने की सुविधा ही न हो?'

उन्होंने बताया कि भले ही सरकार डेवलपर्स को टैक्स में छूट दे रही है, लेकिन ज़मीनी हकीकत अलग है. घर बनाने के लिए पूंजी (capital) महंगी है, जमीन की कमी है, और शहरों में पब्लिक ट्रांसपोर्ट और सड़कें भी सही नहीं हैं. इन सब वजहों से किफायती घरों की योजनाएं या तो रुक जाती हैं, या फिर ऐसी जगह बनती हैं, जहां लोगों का काम पर आना-जाना मुश्किल होता है.

खरीदारों को अपनी प्रॉपर्टी की आधी कीमत सरकारी फीस के तौर पर चुकानी पड़ती है और डेवलपर्स भी महंगी जमीन और पूंजी की लागत से परेशान हैं. इन बातों को देखते हुए, दत्त ने साफ-साफ कहा कि जब तक सरकार खाली पड़ी ज़मीन का इस्तेमाल नहीं करती और टैक्स को कम नहीं करती, तब तक किफायती घर आम आदमी की पहुंच से दूर ही रहेंगे.

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