Edible Oil Consumption: तेल के अंधाधुंध इस्तेमाल से 'फेल' हुई सेहत, इकोनॉमी पर भी बढ़ा खतरा 

नीत‍ि आयोग की एक र‍िपोर्ट आने वाले द‍िनों की एक भयावह तस्वीर की तरफ इशारा कर रही है. खाद्य तेलों में भारत कैसे आत्मन‍िर्भर बनेगा? इसे लेकर सरकार च‍िंत‍ित है. इसी च‍िंता से न‍िपटने के ल‍िए घरेलू स्तर पर खाद्य तेलों का उत्पादन बढ़ाने का प्लान है

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सेहत ओर इकोनॉमी का निकला तेल सेहत ओर इकोनॉमी का निकला तेल

ओम प्रकाश

  • नई दिल्ली,
  • 28 जनवरी 2025,
  • अपडेटेड 3:48 PM IST

भारत में खाद्य तेलों की खपत में इतनी तेजी से इजाफा हो रहा है क‍ि उससे देश की सरकार भी परेशान हो गई है. बाहरी खानपान और आहार पैटर्न में बदलाव से खाद्य तेलों के उपभोग में अप्रत्याश‍ित वृद्ध‍ि दर्ज हुई है. इससे देश के सामने दोहरी चुनौती पेश आ रही है. पहली चुनौती यह क‍ि खाने वालों की सेहत खराब हो रही है और दूसरी यह क‍ि इससे देश की इकोनॉमी का भट्ठा बैठ रहा है, यानी अर्थव्यवस्था की सेहत भी खतरे में पड़ रही है. प्रत‍ि व्यक्त‍ि खाद्य तेलों की खपत मानक से लगभग डबल होने को है. तेल के इस बेमेल उपभोग की वजह से 1950 से अब तक प्रत‍ि व्यक्त‍ि उपभोग लगभग छह गुना बढ़ गया है. साल 2022-23 में प्रत‍ि व्यक्त‍ि सालाना खपत 20.3 किलोग्राम तक पहुंच गई है, जो 1950-60 के बीच में महज 3.4 किलोग्राम ही थी. 

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साठ के दशक में हम अपनी जरूरत का ज्यादातर खाद्य तेल अपने घरेलू उत्पादन से पूरा करते थे और उसकी गुणवत्ता पर दूर-दूर तक कोई सवाल नहीं था. अब हमने खाने वाले तेलों का इस्तेमाल इतना बढ़ा द‍िया है क‍ि हमारी 57 फीसदी जरूरत इंडोनेश‍िया, मलेश‍िया, रूस, यूक्रेन और अर्जेंटीना जैसे देशों से आयात करके पूरी करनी पड़ रही है. उसमें भी सेहत के ल‍िए खतरनाक माने जाने वाला पाम आयल सबसे ज्यादा आ रहा है, ज‍िसकी गुणवत्ता की कोई गारंटी नहीं है. अब सवाल यह पैदा होता है क‍ि क्या हम खाद्य तेल खाने के मानक से अनजान हैं या फ‍िर हमें अपनी सेहत की फ‍िक्र ही नहीं है? हम तो यही मानते हैं क‍ि सेहत के प्रत‍ि आप सब सजग होंगे, लेक‍िन आपको यह पता ही नहीं होगा क‍ि दरअसल साल में एक व्यक्त‍ि को अध‍िकतम क‍ितना तेल खाना चाह‍िए. 

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अध‍िकतम क‍ितना तेल खाना चाह‍िए 

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) के मुताब‍िक सालाना प्रत‍ि व्यक्त‍ि 12 किलोग्राम ही खाद्य तेल खाना चाह‍िए. हालांक‍ि व‍िश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने थोड़ी और ढील दी है. उसने 13 किलोग्राम प्रत‍ि व्यक्ति प्रत‍ि वर्ष खपत का मानक तय क‍िया है. इसका मतलब साफ है क‍ि अगर आप इससे अध‍िक खाद्य तेल का सेवन करते हैं तो न स‍िर्फ अपनी सेहत के साथ खेल रहे हैं, बल्क‍ि देश की इकोनॉमी को भी नुकसान पहुंचा रहे हैं. क्योंक‍ि खाद्य तेलों के आयात के ल‍िए सरकार को कमाया हुआ डॉलर खर्च करना पड़ता है. 

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आगे और खराब होंगे हालात 

नीत‍ि आयोग की एक र‍िपोर्ट आने वाले द‍िनों की एक भयावह तस्वीर की तरफ इशारा कर रही है. खाद्य तेलों में भारत कैसे आत्मन‍िर्भर बनेगा? इसे लेकर सरकार च‍िंत‍ित है. इसी च‍िंता से न‍िपटने के ल‍िए घरेलू स्तर पर खाद्य तेलों का उत्पादन बढ़ाने का प्लान है. इसी थीम पर नीत‍ि आयोग ने एक र‍िपोर्ट तैयार की है, जो बताती है क‍ि भारत में 2028 तक प्रत‍ि व्यक्त‍ि खाद्य तेलों की सालाना खपत 25.3 किलोग्राम और 2038 तक 40.3 किलोग्राम तक पहुंच जाएगी. 

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ऐसे में अगर आपको अपनी सेहत और राष्ट्र की इकोनॉमी की च‍िंता है तो अपने खाद्य तेल सेवन को समय रहते कंट्रोल कर‍िए, वरना हालात बहुत खराब होंगे. विशेषज्ञों का मानना है कि खाद्य तेलों के ज्यादा इस्तेमाल से हार्ट डिजीज, एसिडिटी, वजन बढ़ना, मोटापा, ब्लड प्रेशर और हाई कोलेस्ट्रॉल जैसी समस्याएं आम होती जा रही हैं. ज‍िसकी वजह से लोगों को अपनी कमाई का एक बड़ा ह‍िस्सा दवाओं पर खर्च करना पड़ रहा है. 

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कब क‍िस रफ्तार से बढ़ी मांग  

भारत में खाद्य तेलों की मांग प्रति व्यक्ति खपत के नजर‍िए से लगातार बढ़ती जा रही है. जैसे-जैसे समृद्ध‍ि बढ़ रही है, जीवनशैली बदल रही है, वैसे-वैसे खाद्य तेलों का खर्च बढ़ रहा है. 

साल 1960-61 और 1980-81 के बीच प्रत‍ि व्यक्त‍ि सालाना खाद्य तेल खपत में 1.2 गुना वृद्धि हुई. 1960-61 में इसकी खपत 3.2 किलोग्राम प्रत‍ि वर्ष से बढ़कर 1980-81 में 3.8 किलोग्राम प्रत‍ि वर्ष हो गई. 

वर्ष 1980-81 और 2000-01 के बीच खाद्य तेलों के प्रत‍ि व्यक्त‍ि खपत में 2.2 गुना तक इजाफा हुआ. 1980-81 में 3.8 किलोग्राम प्रत‍ि वर्ष से बढ़कर यह 2000-01 में 8.2 किलोग्राम हो गई. 

साल 2000-01 से हाल के समय में खाद्य तेलों की प्रत‍ि व्यक्त‍ि सालाना खपत में 2.4 गुना तक इजाफा हुआ. 2000-01 में 8.2 किलोग्राम प्रत‍ि वर्ष से बढ़कर यह 2020-21 में 19.7 किलोग्राम तक पहुंच गई. 
 (नीत‍ि आयोग की र‍िपोर्ट)  

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खाद्य तेल आयात और खर्च 

केंद्रीय कृष‍ि मंत्रालय की एक र‍िपोर्ट बताती है क‍ि 2022-23 में भारत ने अपनी जरूरत का 57 फीसदी खाद्य तेल को आयात क‍िया, ज‍िस पर करीब 1,67,270 करोड़ रुपये खर्च करने पड़े. जबक‍ि 2019-20 में खाद्य तेलों का आयात ब‍िल इसके आधे से भी कम था. तब हमने इसके आयात पर 68,558 करोड़ रुपये खर्च क‍िए थे. 

मंत्रालय के अनुसार 2022-23 में में भारत में खाद्य तेलों की खपत 292 लाख मीट्र‍िक टन थी, जबक‍ि हमारा घरेलू उत्पादन महज 126.9 लाख मीट्र‍िक टन था. ऐसे में हमें 165 लाख मीट्र‍िक टन आयात करना पड़ा. ज‍िसमें 103.9 लाख मीट्र‍िक टन पाम ऑयल, 39.6 लाख मीट्र‍िक टन सोयाबीन तेल और 21.45 लाख मीट्र‍िक टन सूरजमुखी तेल शाम‍िल था.

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