फंडिंग घटते ही 'कॉकरोच स्टार्टअप' की बढ़ गई मांग, यूनिकॉर्न की जगह आखिर क्यों है इसकी डिमांड?

जिस तरह से 2022 में स्टार्टअप्स में छंटनी हुई और इनके मुनाफे लुढ़के इससे अब फंडिंग के लिए यूनिकॉर्न की जगह 'कॉकरोच स्टार्टअप' की डिमांड बढ़ गई है. निवेशक यूनिकॉर्न के मुकाबले 'कॉकरोच स्टार्टअप' (Cockroach Startups) में निवेश को तरजीह दे रहे हैं.

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मंदी की वजह से यूनिकॉर्न को झटका मंदी की वजह से यूनिकॉर्न को झटका

आदित्य के. राणा

  • नई दिल्ली,
  • 04 जनवरी 2023,
  • अपडेटेड 3:03 PM IST

भारत का स्टार्टअप इकोसिस्टम दुनिया में अमेरिका और चीन के बाद तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप इकोसिस्टम है. लेकिन 2022 में मंदी, महंगाई के असर से घटी फंडिंग का प्रकोप भारतीय स्टार्टअप सेक्टर को भी झेलना पड़ा. इससे 2021 में भारत के स्टार्टअप्स को मिली 41 अरब डॉलर की फंडिंग 2022 में घटकर 26 अरब डॉलर रह गई. साल की आखिरी तिमाही यानी अक्टूबर-दिसंबर में तो ये फंडिंग 2021 की आखिरी तिमाही के मुकाबले घटकर आधी रह गई.

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'कॉकरोच स्टार्टअप' की बढ़ गई मांग
स्टार्टअप सेक्टर में यूनिकॉर्न यानी जिन स्टार्टअप्स की वैल्यूएशन 1 अरब डॉलर या इससे ज्यादा होती है, अभी तक फंडिंग के लिए पसंदीदा विकल्प बने हुए थे. लेकिन जिस तरह से 2022 में स्टार्टअप्स में छंटनी हुई और इनके मुनाफे लुढ़के इससे अब फंडिंग के लिए यूनिकॉर्न की जगह 'कॉकरोच स्टार्टअप' की डिमांड बढ़ गई है. निवेशक यूनिकॉर्न के मुकाबले 'कॉकरोच स्टार्टअप' (Cockroach Startups) में निवेश को तरजीह दे रहे हैं.

क्या होते हैं 'कॉकरोच स्टार्टअप'?
कॉकरोच स्टार्टअप, कॉकरोच की तरह, अर्थव्यवस्था या वेंचर के हालात में बदलाव से बेपरवाह होते हैं. इन ग्रुप्स में ये तय करने की क्षमता होती है कि कहां पैसा खर्च करना है और कहां पर पैसा खर्च नहीं करना है. एक कॉकरोच स्टार्टअप, बाज़ार के हालातों और निवेश की स्थिति के बदलने के बावजूद भी बना रहता है. इसकी सबसे बड़ी वजह है कि इनमें विपरीत हालात में भी खर्च में कटौती करके कारोबार को बढ़ाने की क्षमता होती है.

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आखिर क्यों पड़ा 'कॉकरोच स्टार्टअप' नाम?
माना जाता है कि डायनासोर से 32 करोड़ साल पहले से कॉकरोच इस धरती पर रहते आ रहे हैं. कॉकरोच की खूबी है कि ये किसी भी तरह की स्थिति को सहन कर सकते हैं. यहां तक की बिना सिर के भी एक कॉकरोच 7 दिन तक जीवित रह सकता है. इसके बाद भी इनकी मौत पानी की कमी की वजह से होती है. ये बिना खाने के भी 30 दिन तक जिंदा रह सकते हैं. परमाणु विस्फोट तक में ये अपनी जान बचाने में कामयाब हो सकते हैं. इसी तरह कॉकरोच स्टार्टअप भी कम तनख्वाह, कम खर्चे और कम बजट वाले कारोबार होते हैं.

कॉकरोच और 'कॉकरोच स्टार्टअप' में समानता
तमाम मुश्किलों के बावजूद इनका ग्रोथ रेट बढ़ रहा है ठीक उसी तरह जैसे कॉकरोच की आबादी भी तेजी से बढ़ रही है. ये बाजार के हालातों में बदलाव के साथ खुद को बदलना भी बखूबी जानते हैं. इन स्टार्टअप की खूबी है कि इनमें जल्द ही कैश-फ्लो पॉजिटिव बनने की संभावना होती है. ऐसे में अगर इनके पास एक दमदार उत्पाद या सर्विस है तो इनका कारोबार मंदी से लेकर परमाणु युद्ध तक के कहर का सामना कर सकता है. हालांकि इसके लिए सबसे ज़रुरी है कि इनके पास एक मजबूत रेवेन्यू मॅाडल होना बेहद जरुरी है.

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कैसे कामयाब होते हैं 'कॉकरोच स्टार्टअप'?
'कॉकरोच स्टार्टअप' फिक्स्ड एसेट में इंवेस्ट करने से बचते हैं. मिसाल के तौर पर ये ऑफिस खरीदने या किराए पर लेने की जगह को-वर्किंग स्पेस से काम करते हैं और बचत के पैसों से स्किल्ड मैनपावर की हायरिंग करते हैं. इसके साथ ही कॉकरोच स्टार्टअप निवेश के लिए सही समय और सही हालात का इंतजार करते हैं. ये किसी भी तरह की हड़बड़ी को दिखाए बिना नकदी बर्बाद करके बाजार का फेवरेट बनने की होड़ में शामिल नहीं होते हैं. कॉकरोच स्टार्टअप का फोकस हमेशा रेवेन्यू ग्रोथ पर होता है. इसके लिए ये अपने प्रॉडक्ट या सर्विस से जल्द पैसा बनाने की कोशिश में रहते हैं. इनका ये उत्पाद या सेवा मुश्किल हालात में भी पैसा बनाने में लगा रहता है.

 

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