बॉलीवुड ने बीते लगभग 110 से ज्यादा वर्षों में सिनेमा के रुपहले पर्दे को एक से बढ़कर एक मनोरंजक हिंदी फिल्में दी हैं. इन फिल्मों की कहानियां, इनके सीन, डॉयलाग, स्टाइल स्टेटमेंट और यहां तक कि फैशन ने भी लोगों पर असर डाला और उसे चलन के तौर पर आगे बढ़ाया. खैर, फिल्में आती गईं, स्टाइल बदलते गए, फैशन भी पुरानी बात हुई, लेकिन जिस एक बात ने सिनेमा के इस गुलशन में आज भी ताजगी बना रखी है वह है, हिंदी सिनेमा के, सुरों में पिरोये, सदियों से मन की आवाज बनने वाले और एक आदमी के जज्बात को भिगोने वाले गीत.
कात्यायनी और थ्री आर्ट्स क्लब ने किया आयोजन
गीतों का ये सफर कैसा रहा है और गीतों ने कैसे आम आदमी के मन को भिगोया है इसी कहानी को गीतों के माध्यम से ही पेश करने का बीड़ा उठाया कात्यायनी और थ्री आर्ट्स क्लब ने. दिल्ली का इंडिया हैबिटेट सेंटर का सभागार संगीत की मधुर गूंज से सराबोर हो उठा, जब 'गीतों का सफर – ग्रामोफोन से प्लेलिस्ट तक' नाम से आयोजित हुई एक शाम ने हिंदी सिनेमा के स्वर्णिम युग की उन मधुर धुनों की याद दिला दी, जो समय के साथ आज भले ही पुराने करार दिए जाते हैं, लेकिन उनके भाव, उनमें बसी मुहब्बत और उनमें बसे अहसास आज भी तरोजाता है.
कितनी दिलचस्प बात है कि न एक समय था जब बड़े-बड़े नाजुक गोलाकार काले रिकार्ड्स प्लेट को एक ग्रामोफोन सेट पर रखदिया जाता था और मधुर तराना गूंजने लगता था. दिन बदले, साल बीते और नई टेक्नॉलजी के साथ कई-कई मीडियम आए, जिन्होंने गीतों के सुनने-सुनाने के शौक को न सिर्फ जिंदा रखा बल्कि आसान बनाते गए.
डिजिटल प्लेलिस्ट के जमाने में भी पुराने गीत
आज भले ही डिजिटल प्लेलिस्ट का जमाना है, लेकिन इसमें भी आत्मा गीतों के सुर ही हैं, जिन्होंने हर दौर में श्रोताओं के दिलों को छुआ और उनकी यादों को संजोया. इन्हीं गीतों की संगीतमय प्रस्तुति में निधिकांत पाण्डेय ने दी, जिनकी प्रभावी आवाज में कहानी को दर्शकों के सामने परोसने का खूबसूरत तरीका गीतों की इस कहानी में चार चांद लगा रहा था, हर शब्द के साथ गीत के भाव जीवंत होते जा रहे थे.
उनके शब्दों ने हिंदी सिनेमा के गीतों की कहानी को इस तरह पिरोया कि हर श्रोता उस दौर में खो गया. इस कहानी का मेयार और भी ऊंचा हुआ जब देवानंद झा और अंजिला गुनगानी ने अपनी सुरीली आवाज में उन गीतों की लाइव प्रस्तुति दी. कभी रोमांटिक धुनों में डुबोते हुए, तो कभी पुराने गीतों की रूहानी सैर पर चलते हुए, दोनों ने संगीत के जादू को बिखेरा. इस कार्यक्रम की परिकल्पना और निर्माण अनुराधा दर और अभिनेत्री, नाटककार सोहेला कपूर ने किया था, जिनकी कल्पना में उपजी गीतों के सफर की कहानी साकार होकर सामने थी.
ऐसे शुरू हुआ गीतों का सफर
अभिनेत्री सोहेला कपूर ने कहा, 'यह केवल गीतों का कार्यक्रम नहीं, बल्कि उस संगीत का उत्सव है, जिसने हमारे सिनेमा और जीवन दोनों को एक नई धड़कन दी.” वहीं, अनुराधा दर ने इस यात्रा के पीछे की प्रेरणा को साझा करते हुए बताया, “गीतों का सफर का विचार अचानक तब जन्मा, जब हम ऐसे कई कार्यक्रमों की सफल प्रस्तुतियों के बाद सोच रहे थे कि अब आगे क्या? तभी मैंने सोहेला से कहा‘गीतों का सफर’ कैसा रहेगा? मैंने कुछ पंक्तियां लिखीं और निधिकांत ने उन्हें जीवंत कर दिया. इस तरह यह यात्रा शुरू हुई, एक खयाल से, शब्दों तक और फिर संगीत तक. ठीक वैसे ही, जैसे गीतों का अपना सफर होता है.”
यह कार्यक्रम हर दशक के गीतों को मंच पर जीवंत करने का एक अनूठा प्रयास था. हर गीत ने श्रोताओं को न केवल मनोरंजन किया, बल्कि उनकी यादों को भी ताजा किया. यह संगीतमय यात्रा हर उस व्यक्ति के लिए एक उपहार थी, जो हिंदी सिनेमा के गीतों से प्रेम करता है. राजधानी के संगीत प्रेमी श्रोता और दर्शक 'गीतों के सफर-2' में शामिल हो सकते हैं. इंडिया हैबिटेट सेंटर में 17 अक्टूबर शाम 7 बजे एक बार फिर ऐसी ही खूबसूरत महफिल जमने वाली है. 'गीतों का सफर' ने न केवल संगीत प्रेमियों के दिलों को छुआ, बल्कि यह भी साबित किया कि संगीत की कोई सीमा नहीं होती. यह एक ऐसी यात्रा थी, जिसने हर श्रोता को अपने भीतर झांकने और अपनी यादों से जुड़ने का अवसर दिया.
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