भारत का पूर्वी राज्य पश्चिम बंगाल बहुत पुराने समय से कला और संस्कृति का संरक्षक प्रांत रहा है. गीत-संगीत, अभिनय, साहित्य और खेल जैसी विधाओं में यहां का लोहा दुनिया ने माना ही है, इसके साथ ही कला यानी पेंटिंग की कई अलग-अलग विधाओं ने भी यहीं जन्म लिया है और दुनिया भर में मशूहर हुई हैं. ब्रिटिश काल में यहां कंपनी पेंटिंग अस्तित्व में आई. इससे पहले मुर्शिदाबाद चित्रकला का अपना अलग इतिहास रहा है. कालीघाट पेंटिंग और पट्टचित्र कला के कहने ही क्या, सभी अपनी-अपनी जगह बेमिसाल हैं.
खास बात ये है कि इन पेंटिंग विधाओं में जो चित्र तैयार किए गए, वह कई दफा अपने आप में एक कहानी को समेटे हुए हैं. ये कहानी सिर्फ कोई काल्पनिक कथा नहीं बल्कि अपने आप में एक इतिहास है. ऐसी ही एक पेंटिंग है 'एलोकेशी' की. इस पेंटिंग के पीछे जो कहानी छिपी है, एक समय में इस घटना से ब्रिटिश हुकूमत के हाथ-पांव फूल गए थे. इस पेंटिंग के पीछे छिपी कहानी को तारकेश्वर स्कैंडल के नाम से जाना जाता है.
तारकेश्वर स्कैंडल पर कई चित्र बने
इस तारकेश्वर स्कैंडल पर कई चित्रकारों ने चित्र बनाए हैं, जिन्हें 'एलोकेशी पेंटिंग' के नाम से जाना जाता है. कालीघाट, बंगाल पेंटिंग और पट्टचित्र विधा में भी ये चित्र बनाए गए हैं. एलोकेशी एक विवाहित नवयुवती थी. अवैध संबंधों के चलते उसके पति ने उसकी हत्या कर दी थी. वहीं, जिससे उसके अवैध संबंध थे वह एक महंत था. इस घटना ने न सिर्फ उस समय के समाज को झकझोरा बल्कि औपनिवेशिक सरकार और उसकी न्याय व्यवस्था को भी हिलाकर रख दिया.
यह कहानी है 16 साल की एलोकेशी की. एलोकेशी का जन्म कुरमुल गांव में हुआ था, जो उस समय ब्रिटिश शासित बंगाल का हिस्सा था. एलोकेशी की शादी एक उच्च कुलीन ब्राह्मण, नोबिन चंद हुई थी. नोबिन कलकत्ता में एक सरकारी प्रिंटिंग प्रेस में नौकरी करता था. जब भी उसे छुट्टी मिलती, वह अपनी पत्नी से मिलने गांव आता था.
नोबिन और एलोकेशी का जीवन खुशहाल था. लेकिन नोबिन को एक कमी खलती थी, उसे एक बेटे की चाह थी, जो उसका वारिस बन सके. एलोकेशी भी अपने पति की इस इच्छा को पूरा करना चाहती थी. 1872 में उसने तारकनाथ मंदिर के पुजारी, महंत मधवचंद्र गिरी, से संपर्क किया. वह चाहती थी कि महंत का आशीर्वाद लेकर वह मां बन सके. महंत ने उसे अपने संरक्षण में ले लिया और वादा किया कि जल्द ही उसकी गोद भर जाएगी. लेकिन यह मुलाकात एक भयानक त्रासदी की शुरुआत बन गई.
पति ने कर दी थी पत्नी की हत्या
24 मई 1873 को नोबिन अपनी पत्नी से मिलने कुरमुल आया. लेकिन तीन दिन बाद, 27 मई को, उसने एक मछली काटने वाले चाकू से अपनी 16 साल की पत्नी एलोकेशी की गला रेतकर हत्या कर दी. हत्या के बाद, नोबिन ने स्थानीय पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया. उसने रोते हुए कहा, “मुझे जल्दी फांसी दे दो! यह दुनिया मेरे लिए जंगल बन गई है. मैं अपनी पत्नी के साथ अगले जन्म में मिलना चाहता हूं.” उसे श्रीरामपुर के मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया, जिसने उसे जेल भेज दिया.
1870-75 के बंगाल के अपराध आंकड़ों के अनुसार, तारकेश्वर हत्याकांड ने इतनी सुर्खियां बटोरीं कि हर ओर इसकी ही चर्चा होती थी. इसमें एक प्रभावशाली पुजारी, महंत माधवचंद्र गिरी, का नाम शामिल था, इसलिए इस केस की प्रसिद्धि और तेजी से बढ़ी. हुगली सत्र न्यायालय, श्रीरामपुर में “क्वीन बनाम नोबिन चंद्र बैनर्जी” का मुकदमा शुरू हुआ. इसे स्थानीय अखबारों ने “तारकेश्वर हत्याकांड” (तारकेश्वर स्कैंडल) का नाम दिया. नोबिन के वकील थे वोमेश चंद्र बनर्जी, जिन्होंने नोबिन का केस मुफ्त में लड़ा.
नोबिन की ओर से दलील दी गई कि उसे अचानक ही गुस्सा आ गया था और उसने जो किया वह उकसावे में आ गया. बनर्जी ने कहा कि नोबिन को पता चला कि उसकी पत्नी का महंत के साथ अवैध संबंध था. जब उसने एलोकेशी से पूछा, तो उसने अपनी गलती कबूल कर ली. दोनों ने फैसला किया कि एलोकेशी को उसके माता-पिता के घर से हटा लिया जाए, क्योंकि महंत का उन पर प्रभाव था. लेकिन जब इस योजना की जानकारी एलोकेशी के पिता ने महंत को दे दी, तो महंत के गुंडों ने उन्हें रोक दिया. गुस्से में नोबिन ने फैसला किया कि वह अपनी पत्नी को किसी और का नहीं होने देगा, और उसने उसकी हत्या कर दी.
बनर्जी ने यह भी बताया कि एलोकेशी के शव की कोई मेडिकल जांच नहीं हुई थी. क्या वह वाकई मर चुकी थी? इस सवाल ने अभियोजन पक्ष की कमजोरी को उजागर किया.
महंत पर भी चला था मुकदमा
महंत माधवचंद्र गिरी पर भी व्यभिचार का मुकदमा चला, पहले तो महंत फ्रांसीसी शासित चंदननगर भाग गया, जहां व्यभिचार अपराध नहीं था. लेकिन एक प्रभावशाली जमींदार, जॉयकृष्ण, की मदद से उसे पकड़ लिया गया. हुगली जज के सामने महंत का मुकदमा चला. अभियोजन पक्ष ने तीन सवाल उठाए:
क्या एलोकेशी नोबिन की वैध पत्नी थी?
क्या महंत और एलोकेशी के बीच शारीरिक संबंध थे?
क्या महंत को एलोकेशी की वैवाहिक स्थिति की जानकारी थी?
महंत के दरबान, गोपीनाथ सिन्हाराय, की गवाही इस मामले में अहम रही. जज ने महंत को तीन साल की सश्रम कारावास और 2,000 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई. महंत ने इसके खिलाफ हाई कोर्ट में अपील की. 15 दिसंबर 1873 को कलकत्ता हाई कोर्ट में जस्टिस मार्कबी और बर्च ने फैसला सुनाया. उन्होंने व्यभिचार के सबूतों को स्वीकार किया और महंत को दोषी ठहराया. हालांकि, कोर्ट ने हिंदू भावनाओं का ध्यान रखते हुए पति के अपनी पत्नी के शरीर पर पूर्ण अधिकार को मान्यता दी. जस्टिस बर्च ने महंत की कड़ी निंदा की और कहा कि अगर वह धर्म की आड़ में विवाहित महिलाओं को भ्रष्ट करता है, तो उसे कठोर सजा मिलनी चाहिए.
नोबिन को आजीवन कारावास की सजा मिली और उसे अंडमान द्वीप समूह भेज दिया गया. एक साल बाद, महंत को हुगली जेल से प्रेसीडेंसी जेल में स्थानांतरित कर दिया गया. तारकेश्वर हत्याकांड ने बंगाली समाज को गहरे तक प्रभावित किया. अखबारों ने महीनों तक इसकी चर्चा की. एलोकेशी से जुड़ी साड़ियां, मछली काटने वाले चाकू और पान के डिब्बे बाजार में बिकने लगे, जो 1894 तक लोकप्रिय रहे. एक सिरदर्द बाम कंपनी ने दावा किया कि उनके उत्पाद में महंत द्वारा जेल में बनाया गया तेल इस्तेमाल हुआ था.
कालीघाट और पट-चित्र कलाकारों ने इस हत्याकांड और एलोकेशी व महंत के कथित प्रेम दृश्यों को चित्रित किया, जो बहुत लोकप्रिय हुए. तीन साल बाद, नोबिन और महंत दोनों रिहा हो गए. लेकिन एलोकेशी को हमेशा के लिए अपमान सहना पड़ा. तारकेश्वर हत्याकांड केवल एक हत्या की कहानी नहीं थी. यह उस समय के समाज, औपनिवेशिक न्याय और धार्मिक प्रभाव की कहानी थी.
कोर्ट में उमड़ती थी भीड़
एक अखबार ने इस केस के दौरान कोर्ट में उमड़ी भीड़ के लिए कहा था कि, 'इस केस के दौरान कोर्ट में ऐसे भीड़ उमड़ती थी जैसे कोर्ट न हो, लुइस थिएटर हो, जहां ऑथेलो नाटक खेला जा रहा हो', समाज का एक बड़ा तबका इस केस से इस कदर जुड़ चुका था, जिसमें एक महंत के आडंबर का खुलासा पहली बार इस स्तर पर हुआ था.दूसरी तरफ, नाटकों, साहित्य, कविताओं और चित्रकला में इस कहानी को कई तरह से कहा गया. कालीघाट पेंटिंग्स में यह कहानी अमर हो गई.
विकास पोरवाल