चार हाथ, आठ पैर और पंखों वाला घोड़ा... कौन है नरसिंह भगवान को जीतने वाला ये अनोखा पौराणिक जीव

शरभ, हिंदू पौराणिक कथाओं में एक अनोखा चरित्र है, जिसे भगवान शिव के क्रोधपूर्ण अवतार के रूप में जाना जाता है. यह आठ पैरों वाला, आंशिक रूप से शेर और आंशिक रूप से पक्षी का प्राणी है, जो शिव पुराण और अन्य ग्रंथों में वर्णित है. शरभ की प्रतिमाएं और नक्काशियां प्राचीन भारतीय मंदिरों में पाई जाती हैं, जो इन मंदिरों की कलात्मक और धार्मिक परंपरा का हिस्सा हैं.

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शिवजी का एक नाम शरभ भी है, यह उनका सबसे क्रोधी अवतार है शिवजी का एक नाम शरभ भी है, यह उनका सबसे क्रोधी अवतार है

विकास पोरवाल

  • नई दिल्ली,
  • 30 अप्रैल 2025,
  • अपडेटेड 11:48 AM IST

श्रीलंका में एक प्राचीन मंदिर है, श्री मुन्नेश्वरम मंदिर. इस मंदिर की दीवारों पर एक दैवीय नक्काशी यूं ही अपनी ओर आकर्षित करती है. नक्काशी में क्या दिख रहा है? इसमें दिख रहा है एक अजीब से जीव, जिसका पूरा शरीर किसी एक जानवर की तरह का नहीं बल्कि कई जंगली पशुओं जैसा है. 

शर्भेस्वर का स्वरूप कैसा है?
इसका शरीर घोड़े की तरह है, लेकिन इसके आठ पैर हैं, जो चार-चार के क्रम में आगे और पीछे हैं. घोड़े के धड़ के ऊपर से निकली मानवीय गर्दन है, लेकिन इसका चेहरा चपटा है और शेर की तरह है. इसकी पूंछ पर सर्पिल आकार की है, शरीर पर सर्प लिपटे हैं. मस्तक पर चांद दिख रहा है, एक हाथ में त्रिशूल, एक में गदा, एक में अंकुश दिख रहा है. घोड़े के दो विशाल पंख हैं. सर्प, त्रिशूल और चांद का होना इस जीव का जुड़ाव शिवजी से दिखाता है. यह शिवजी का सबसे भयानक और क्रोधी स्वरूप शरभ है, जिसकी पूजा शर्भेस्वर नाम से की जाती है. 

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अब आप इसके पैरों की ओर देखिए. आगे के चार पैरों से एक और अजीब जीव दिख रहा है. ध्यान से देखने पर हम इसे पहचान सकते हैं, क्योंकि ये कोई और नहीं विष्णु के अवतार नरसिंह हैं, जो आधे मनुष्य और आधे शेर के अवतार में थें, लेकिन नरसिंह इस बड़े जीव के पैरों में क्यों हैं? 


 
जब अपने क्रोध पर नियंत्रण न रख पाए नरसिंह
असल में यही कहानी है और यही रहस्य का केंद्रीय भाव भी है.  हुआ यूं कि हिरण्यकश्यप को मारने के बाद भी नरसिंह का क्रोध शांत नहीं हुआ और वह अनियंत्रित गु्स्से में चारों ओर तोड़फोड़ मचाने लगे. उन्होंने धरती को नष्ट कर देना चाहा और जो भी सामने पड़ा उसे मार डालना चाहा. यानी नरसिंह, जो खुद एक बुराई को खत्म करने आया था, वह खुद समस्या बनने लगा था. इस समस्या का निपटारा करने के लिए कदम उठाया शिवजी ने. इस कथा का जिक्र विष्णु धर्मेत्तर पुराण में मिलता है. 

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शिवजी ने पहले वीरभद्र को भेजा, लेकिन नरसिंह ने एक मुक्के से ही वीरभद्र को जमीन दिखा दी. अब शिव को खुद आना था, लेकिन वह सामान्य शिव स्वरूप में नरसिंह का सामना नहीं कर सकते थे. इसलिए शिव ने भी एक भयंकर अवतार लिया. ऐसा जानवर, जिसके 8 पैर, चार हाथ, शरीर घोड़े का, जिस पर पंख भी थे और इसका भी चेहरा शेर की ही तरह था. पुराणों में इसे शिव का शरभ अवतार बताया गया है. 

शरभ अवतार ने किया भगवान विष्णु के क्रोध कंट्रोल
इस शरभ ने एक छलांग लगाई और चढ़कर नरसिंह बने विष्णु की छाती पर चढ़ गया. तब उन्होंने अपने एक-एक हाथ से नरसिंह के दोनों हाथ पकड़े, चार पैरों से धड़ को जकड़ा और पीछे के चार पैरों से नरसिंह के पैर दबा कर जकड़ लिए. अब शरभ, नरसिंह को लेकर आकाश में उड़ चला. नरसिंह ने गुस्से में शरभ का गला दबोचने की कोशिश की, तब शरभ ने अपने नाखूनों से नरसिंह को चीर दिया और उसके सिंह कपाल को धड़ से उखाड़ लिया. इससे नरसिंह का स्वरूप नष्ट हो गया और फिर महाविष्णु अपने शांत स्वरूप में सामने आ गए. 

शरभ अवतार सात्विक से भी उपजे नकारात्मक क्रोध को कंट्रोल करने का प्रतीक है. शिवजी ने नरसिंह अवतार में अनियंत्रित हुए भगवान विष्णु को कंट्रोल करने के लिए शरभ अवतार लिया था. 

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दक्षिण भारत के कई राज्यों में प्राचीन मंदिरों में शरभ की मौजूदगी प्रतिमाओं-मूर्तियों या फिर दीवारों पर उकेरी गई नक्काशी में दिख जाती है. तमिलनाडु के कुम्भकोणम के निकट विक्रमचोलेश्वरम मंदिर जो 12वीं शताब्दी की शुरुआत (1118–1135 ई.) से संबंधित है, यहां शरभ की नक्काशी दिख जाती है.

चोल राजवंश के दौरान भी शरभ की प्रतिमाएं बनाई गईं, क्योंकि चोल राजवंश शैव मत का केंद्र रहा है और यहां शिव और उनके अलग-अलग स्वरूपों की बहुत महत्ता रही है. 

शरभ, हिंदू पौराणिक कथाओं में एक अनोखा चरित्र है, जिसे भगवान शिव के क्रोधपूर्ण अवतार के रूप में जाना जाता है. यह आठ पैरों वाला, आंशिक रूप से शेर और आंशिक रूप से पक्षी का प्राणी है, जो शिव पुराण और अन्य ग्रंथों में वर्णित है. शरभ की प्रतिमाएं और नक्काशियां प्राचीन भारतीय मंदिरों में पाई जाती हैं, जो इन मंदिरों की कलात्मक और धार्मिक परंपरा का हिस्सा हैं. शरभ अवतार को समर्पित शरभ उपनिषद में भी इसका विस्तार से वर्णन आया है, जहां इसे विशाल और शक्तिशाली प्राणी के रूप में दर्शाया गया है. कलात्मक रूप से, शरभ को सुनहरे रंग के पक्षी के शरीर, लाल आंखों, दो ऊंचे पंखों, और आठ अंगों के साथ चित्रित किया जाता है, जिसमें शेर का भयंकर चेहरा, चार हाथ, और शेर की तरह की निचली आकृति होती है (Sharabha in Shilpashastra). 

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यह रूप विशेष रूप से शिव मंदिरों में नक्काशी और प्रतिमाओं में देखा जाता है, विशेषकर दक्षिण भारत में.  शरभ का उल्लेख प्राचीन ग्रंथों जैसे महाभारत (400 ईसा पूर्व से 400 ई.) और शिव पुराण में मिलता है,

दक्षिण भारत में खास तौर पर उकेरी गई हैं शरभ की प्रतिमाएं और नक्काशी
शरभ की प्रतिमाएं मुख्य रूप से दक्षिण भारत, विशेषकर तमिलनाडु, में पाई जाती हैं, जहां शिव के भयंकर रूपों की उपासना प्रचलित है. चोल राजवंश के दौरान, शैव और वैष्णव संप्रदायों के बीच प्रतिस्पर्धा थी, और शरभ को नरसिंह को पराजित करते हुए दर्शाया गया, जो एक तरह से इस प्रतिस्पर्धा का भी प्रतीक है. 

 

मंदिर का नाम

स्थान

निर्माण काल

विवरण

विक्रमसोलीश्वरम मंदिर

कुम्भकोणम, तमिलनाडु

1118–1135 ई.

सबसे प्राचीन, चोल काल की प्रतिमा, शिव के रूप में

एरावेस्वर मंदिर, दारासुरम

दारासुरम, तमिलनाडु

12वीं शताब्दी

काले बेसाल्ट की प्रतिमा, नरसिंह को पराजित करते हुए

कम्पाहेश्वर मंदिर, तिरुभुवनम

तिरुभुवनम, तमिलनाडु

13वीं शताब्दी

अलग गर्भगृह में शरभ की प्रतिमा

 


 चेन्नकेशव मंदिर, बेलूर में शरभ की नक्काशी एक महत्वपूर्ण और जटिल कलाकृति है, जो मंदिर की बाहरी दीवार पर स्थित है और होयसाल   काल की वास्तुकला और कला की समृद्धि को दर्शाती है. यह नक्काशी न केवल सौंदर्यशास्त्र की दृष्टि से आकर्षक है, बल्कि ऐतिहासिक,   धार्मिक और सांस्कृतिक संदर्भों में भी गहरी समझ प्रदान करती है. 

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 सचेन्नकेशव मंदिर, जिसे केशव, केसव या विजयनारायण मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, 12वीं शताब्दी में होयसाल राजा विष्णुवर्धन द्वारा   बनवाया गया था. यह मंदिर हासन जिले, कर्नाटक में यगाची नदी के तट पर स्थित है और यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त   है.

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