श्रीराम चरित मानस लिखते हुए संत गोस्वामी तुलसीदास ने एक चौपाई लिखी...
'हरि अनंत हरि कथा अनंता, कहहिं सुनहिं बहु बिधि सब संता'
संत तुलसीदास ने इस एक चौपाई में यह बता दिया कि भगवान और उनकी लीलाएं, व उनकी कहानियां अनंत हैं. उनका कोई ओर-छोर नहीं हैं. संत लोग एक ही कथा को अलग-अलग तरीकों से कहते हैं.
यह बात भी ठीक ही है कि पौराणिक कथाएं और ईश्वर से जुड़ी कहानियों का कोई एक तरीका या एक स्वरूप नहीं है, बल्कि उसे वाकई अलग-अलग तरीकों से कहा जाता है और तरीका ही क्यों, कई बार तो प्रसंग भी बदल जाते हैं, लेकिन हर कथा का निष्कर्ष एक ही निकलता है. वह है अच्छाई की जीत, बुराई की हार. पाप का खात्मा, धर्म की स्थापना.
इसी तरह कवि रसखान ने भी अपनी एक रचना में लिखा कि ईश्वर या परमसत्ता जो भी तत्व है, उसे कोई पूरी तरह पहचान नहीं सका है. सभी उसे अनादि, अनंत, अखंड, अभेद बताकर ही रह जाते हैं, लेकिन ठीक-ठीक व्याख्या नहीं कर पाते हैं.
लेकिन, भक्तों का हृदय और उनके भाव जो चाहें वह करा लें. उनका समर्पण बड़े से बड़े पहाड़ को झुका देता है. आप उत्तर से दक्षिण तक चलते चले जाइए, हर जगह अलग-अलग कलेवर में रामकथा मिलेगी, लेकिन कहानियों और रचनाओं की इस भीड़ में एक ऐसी रचना भी है जो अलग ही तरीके लोगों को आकर्षित करती है.
दक्षिण के एक प्रसिद्ध भक्त कवि ने श्रीहरि के दो अवतारों की कथा यानी श्रीराम और श्रीकृष्ण की महागाथा बड़े ही संक्षेप में और वह भी एक साथ कह डाली है. उनकी कृति अद्भुत और आश्चर्यजनक है.
इस अद्भुत कृति का नाम राघवयादवीयम है. इसे लिखने वाले महान प्राचीन कवि श्रीवेंकटाध्वरि हैं. अपनी इस रचना में कवि ने श्रीराम और श्रीकृष्ण दोनों के ही जीवन चरित्र का अद्भुत वर्णन किया है. श्रीवेंकटाध्वरि का जन्म कांचीपुरम के एक गांव अरसनीपलै में हुआ था. उनकी कुल 14 रचनाएं हैं जिनमें से "राघवयादवीयम्" और "लक्ष्मीसहस्त्रम्" सबसे अधिक प्रसिद्ध हैं. कहते हैं कि कवि जन्म से अंधे थे, लेकिन विलक्षण काव्य प्रतिभा के धनी थे.
ऐसे मिली लिखने की प्रेरणा
श्रीवेंकटाध्वरि श्रीवेदांत देशिक के शिष्य थे. वेदांत देशिक ने ही श्री रामनुजमाचार्य द्वारा स्थापित रामानुज सम्प्रदाय को वेडगलई धारा के जरिए आगे बढ़ाया. जन्मांध होने के बावजूद वेंकट कवि कुशाग्र बुद्धि के धनी थे. वेदान्त देशिक ने "पादुका सहस्रम्" नामक रचना की थी. यह चित्रकाव्य कृति प्राचीन साहित्य की अनुपम देन है. वेंकट कवि इनके शिष्य बने और काव्यशास्त्र में महारत हासिल की. कवि ने 14 ग्रन्थों की रचना की. इसमें भी 'लक्ष्मीसहस्रम्' सर्वाधिक महत्वपूर्ण है. इस काव्य ग्रंथ के भक्तिपूर्ण गायन से उन्हें नेत्र ज्योति मिल गई थी. इसके बाद ही उन्होंने राघवयादवीयम कृति की रचना की.
राघवयादवीयम कृति में 30 श्लोकों लिखे हैं. इन श्लोकों आप सीधा पढ़ते हैं तो राम कथा पढ़ी जाएगी और यदि इसे उल्टा पढ़ते हैं तो श्रीकृष्ण कथा सामने आएगी. कृति के नाम में भी यह स्पष्ट होता है. राघव यानी राम, यादव यानी कृष्ण, इस तरह यह रचना दोनों ईश्वरीय चरित्रों का वर्णन करती है. का चरित्र गाने वाली है
राघवयादवीयम नाम की इस कृति को ‘अनुलोम-विलोम काव्य’ भी कहा जाता है. इसमें हैं तो केवल 30 श्लोक, लेकिन कृष्णकथा के भी 30 श्लोक जोड़ लिए जाएं तो इसमें 60 श्लोक हो जाते हैं. उदाहरण के तौर पर पुस्तक का पहला श्लोक अर्थ सहित देखिए.
वंदेऽहं देवं तं श्रीतं रन्तारं कालं भासा यः।
रामो रामाधीराप्यागो लीलामारायोध्ये वासे।।
मैं उन भगवान श्रीराम के चरणों में प्रणाम करता हूं जिनके ह्रदय में सीताजी रहती हैं तथा जिन्होंने अपनी पत्नी सीता के लिए सहयाद्रि की पहाड़ियों से होते हुए लंका जाकर रावण का वध किया तथा वनवास पूरा कर अयोध्या वापस लौटे. अब इसी के शब्दों को अक्षरशः उल्टा पढ़ते हुए देखें.
विलोम श्लोक
सेवाध्येयो रामालाली गोप्याराधी भारामोराः।
यस्साभालंकारं तारं तं श्रीतं वन्देऽहं देवम् ।।
विलोम अर्थ
मैं रुक्मिणी तथा गोपियों के पूज्य भगवान श्रीकृष्ण के चरणों में प्रणाम करता हू जो सदा ही मां लक्ष्मी के साथ विराजमान हैं तथा जिनकी शोभा समस्त रत्नों की शोभा को हर लेती है.
इसी तरह इसके कुछ और श्लोक देखें तो इनके भी अर्थ और पढ़ने का तरीका आपको हैरान कर देगा.
रामधाम समानेनम् आगोरोधनम् आस ताम्।
नामहाम् अक्षररसं ताराभाः तु न वेद या ॥ 4॥
राम की अलौकिक आभा - जो सूर्य के समान है, जिससे समस्त पापों का नाश होता है, जिससे पूरा नगर प्रकाशित था. उत्सवों वाला यह नगर, अनन्त सुखों का स्त्रोत और तारों की आभा से अनभिज्ञ था (ऊंचे भवन व वृक्षों के कारण)
यादवेनः तु भाराता संररक्ष महामनाः।
तां सः मानधरः गोमान् अनेमासमधामराः ॥ ४॥
यादवों के सूर्य, सभी को प्रकाश देने वाले, विनम्र, दयालु, गऊओं के स्वामी, अतुल शक्तिशाली के श्रीकृष्ण द्वारा द्वारका की रक्षा भलीभांति की जाती थी.
यन् गाधेयः योगी रागी वैताने सौम्ये सौख्ये असौ।
तं ख्यातं शीतं स्फीतं भीमान् आम अश्रीहाता त्रातम् ॥ 5॥
गाधीपुत्र गाधेय, यानी ऋषि विश्वामित्र, एक निर्विघ्न, सुखी, आनददायक यज्ञ करने को इक्षुक थे पर आसुरी शक्तियों से परेशान थे. उन्होंने शांत, शीतल, गरिमामय त्राता राम का संरक्षण प्राप्त किया था.
तं त्राता हा श्रीमान् आम अभीतं स्फीतं शीतं ख्यातं।
सौख्ये सौम्ये असौ नेता वै गीरागी यः योधे गायन ॥ 5॥
नारद मुनि – दैदीप्यमान, अपने संगीत से योद्धाओं में शक्ति संचारक, त्राता, सद्गुणों से भरपूर, ब्राहमणों के नेतृत्वकर्ता के रूप में विख्यात, जिन्होंने विश्व के कल्याण के लिए गायन करते हुए श्रीकृष्ण से याचना की और इसके कारण जिनकी ख्याति होती रही.
यह काव्य कृति बताती है कि भारतीय सनातनी परंपरा हमेशा से विश्व में अग्रणी रही है.
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