शाम ढल रही थी, आसमान को ढक लेने के लिए फलक से अंधेरे की चादर चल पड़ी थी और इस चादर पर टंके हुए थे जुगनू सी लौ लिए कुछ सितारे. आंखें इस पूरे दृश्य को अपने कोर में सजा पातीं कि एक सितारा धीरे-धीरे बड़ा होने लगा और इतना बड़ा और इतना चमकदार कि अब फलक पर छा रहा अंधेरा पीली जगमगाहट में कहीं खो गया था और खो जाने और छा जाने के इसी क्रम में बैकग्राउंड से गूंज पड़ा एक गीत...
दिन ढल जाये हाय, रात ना जाय
तू तो न आए तेरी, याद सताये, दिन ढल जाये
ऐसी ही रिम-झिम, ऐसी फ़ुवारें, ऐसी ही थी बरसात
खुद से जुदा और, जग से पराये, हम दोनों थे साथ
फिर से वो सावन, अब क्यूं न आये
दिन ढल जाये हाय ...
इस गीत को सुनते ही फलक की जगमगाहट में खोए दर्शकों की आंखें स्टेज पर जा लगीं जहां से ये मधुर गीत सुनाई दे रहा था. इस गीत को गा रहे नवोदित कलाकार देवानंद, मंच पर उनके सामने मौजूद थीं अभिनेत्री और रंगमंच कलाकार सोहेला कपूर, जिनके हाथों में कुछ दस्तावेज थे और इनमें बंद था हिंदी सिनेमा के फलक पर रोमांस, नाजुकी और तहजीब वाले अभिनय को जीवंत करने वाले अभिनेता का जीवन, जिन्होंने शुरुआत भले ही श्वेत-श्याम के दौर से की, लेकिन वक्त के साथ इस सिनेमा में इतनी रंगीनियत भरते गए कि उनके लिए गीतकार और कवि गोपाल दास नीरज ने लिखा...
शोखियों में घोला जाये, फूलों का शबाब
उसमें फिर मिलायी जाये, थोड़ी सी शराब
होगा यूं नशा जो तैयार
हां... होगा यूं नशा जो तैयार, वो प्यार है...
यहां बात हो रही हिंदी फिल्मों के मशहूर, अपने दौर में रूमानियत और फैशन आइकन रहे स्टार देवानंद की, सोहेला कपूर ने उनकी जिंदगी के पन्नों को कहानी की तरह सामने रखा और सुनने वालों को विभोर कर दिया. स्टोरी टेलिंग, यानी कहानी कहना मंच की सबसे पुरानी विधा है, बल्कि यह मंच की नहीं हमारी परंपरा की सबसे प्राचीन विधा है. बीते कुछ सालों में इसमें नए-नए और खूबसूरत प्रयोग भी हुए हैं, जिसमें 'कहानी कहने की यह रीति' और चमक उठी है.
ऑडियो विजुअल इफेक्ट्स और डॉक्यूमेंट्री, इंटरव्यू स्टाइल के साथ कदमताल करते हुए अब इसमें किस्सों बेहतरीन तरीके से जोड़ा जा सकता है और अभिनेता देवानंद व उनके दोनों भाइयो के जीवन को अपनी प्रस्तुति 'आनंद ही आनंद' के जरिए लोगों के सामने रखते हुए तकनीक के इस सुंदर पहलू का खूब इस्तेमाल किया. बीच-बीच में माकूल जगहों पर कहानी को आगे बढ़ाने के लिए और प्रस्तुति में संगीत का रस भरने के लिए उनकी ही मशहूर फिल्मों के गीतों का प्रयोग किया गया, जिसका असर ये था कि दर्शकों ने कहानी सुनी, जीवन को जाना-समझा और मंच से गीतों की आवाज आती तो गुनगुनाने भी लगते.
सितारे जगमगा उठे, चिराग जगमगा उठे
बस अब न मुझको टोकना, न बढ़ के राह रोकना
अगर मैं रुक गई अभी, तो जा न पाऊंगी कभी
यही कहोगे तुम सदा, के दिल अभी नहीं भरा
जो खत्म हो किसी जगह, ये ऐसा सिलसिला नहीं
अभी नहीं, अभी नहीं, नहीं नहीं नहीं नहीं
अभी न जाओ छोड़कर, के दिल अभी भरा नहीं
'अभी न जाओ छोड़कर, कि दिल अभी भरा नही.' इस गीत को सुनकर वहीं पास बैठी एक वृद्धा ने इसे अपनी ही आवाज में गुनगुनाया और अपने साथी से कहा- सच, कितना सुकून है न इस गीत में. उनकी इस भावना की कद्र करते हुए गीत अपनी अगली कड़ी के साथ पूरा हुआ तो हॉल तालियों से गूंज उठा. इस तरह एक रेडिसन होटल प्लाजा की एक संगीतमयी शाम नॉस्टैल्जिया, कला और कालजयी किरदार की तमाम कहानियों से सजी-धजी बीतने लगी.
सोहेला कपूर अपनी इस बहुचर्चित प्रस्तुति 'आनंद ही आनंद' के जरिए दर्शकों को भारतीय सिनेमा के स्वर्णिम युग में ले गईं, जहां आनंद बंधुओं – चेतन, देव और विजय (गोल्डी) आनंद के जीवन की झलकियां सजी हुई थीं.
दर्शक मंत्रमुग्ध होकर, लगभग सम्मोहित, आनंद बंधुओं की अद्भुत सहभागिता, उनके बलिदानों और उस रचनात्मक ऊर्जा को याद करते रहे, जिसने देव आनंद को हिंदी सिनेमा का एक अमर प्रतीक बनाया. 'आनंद ही आनंद' उनकी जीवनी सीरीज लिव्स लिव्ड का हिस्सा, है और यह 105 मिनट की ऐसी प्रस्तुति है जिसमें रंगमंच, संगीत और फिल्मी इतिहास तीनों के एक साथ दर्शन होते हैं. सोहेला की कथावाचन, जिसमें गर्मजोशी, हास्य के ही साथ सिनेमाई गंभीरता भी थी, उसने इस रोचक शाम को और रचनात्मक बना दिया. यह केवल एक प्रदर्शन नहीं था; यह भारतीय सिनेमा के इतिहास को आकार देने वाले एक परिवार की विरासत को एक हृदयस्पर्शी श्रद्धांजलि रही. रेडिसन होटल प्लाजा, दिल्ली एयरपोर्ट के प्रबंध निदेशक नितिन कपूर ने कहा, “यह हमारा सौभाग्य है कि हम एक ऐसा मंच बना रहे हैं जहां हमारा आतिथ्य, विरासत को सहेजने और उन्हें अपनाने की ओर भी हाथ बढ़ा रहा है.
इस अवसर पर सोहेला कपूर ने कहा, “यह प्रस्तुति मेरे दिल के बहुत करीब है क्योंकि यह केवल इतिहास नहीं है. यह मेरा परिवार है. आनंद बंधु न केवल असाधारण कलाकार थे, बल्कि असाधारण व्यक्तित्व भी थे. 'आनंद ही आनंद' के जरिए मेरी कोशिश है कि दर्शक उनकी जादुई दुनिया, उनके संघर्षों, उनकी सफलताओं को आज के दौर में महसूस करें और जीकर देखें. इसके साथ ही यह भी सोचें कि दशकों बाद भी वे इतने लोकप्रिय क्यों हैं? कात्यायनी और थ्री आर्ट्स क्लब (1943 में स्थापित ऐतिहासिक रंगमंच ग्रुप) की संयुक्त रचना, यह प्रस्तुति सोहेला कपूर और अनुराधा दर के बीच की अद्भुत सहभागिता को भी सामने रखती है.
विकास पोरवाल